एक पंडित जी रामायण कथा सुना रहे थे। लोग आते और आनंद विभोर होकर जाते। पंडित जी का नियम था रोज कथा शुरू करने से पहले “आइए हनुमंत जी बिराजिए” कहकर हनुमान जी का आह्वान करते थे, फिर एक घण्टा प्रवचन करते थे।वकील साहब हर रोज कथा सुनने आते। वकील साहब के भक्तिभाव पर एक दिन तर्कशीलता हावी हो गई।उन्हें …
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बड़ी ही सुन्दर कथा है, अवश्य पढ़ें…
बड़ा ही सुन्दर कथा है, अवश्य पढ़ें… #भगवान_से_रिश्ता एक बार मथुरा के निकट एक गाँव में एक छोटी लड़की रहती थी। वृन्दावन के निकट होने के कारण वहां से बहुत लोग ठाकुर जी के दर्शन को जाते थे। जब वो छोटी बच्ची 5 साल की हुई तो उसके घर वाले बांके बिहारी जी के दर्शन के लिए जा रहे थे। …
Read More »तिरुपति बालाजी
तिरुपति बालाजी मंदिर विश्वभर के हिंदुओं का प्रमुख वैष्णव तीर्थ है। यह दक्षिण भारत में आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में है। सात पहाड़ों का समूह शेषाचलम या वेंकटाचलम पर्वत श्रेणी की चोटी तिरुमाला पहाड़ पर तिरुपति मंदिर स्थित है। भगवान वेंकटेश को विष्णु का अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु यहां वेंकटेश्वर, श्रीनिवास और बालाजी नाम से प्रसिद्ध हैं। तिरुपति …
Read More »महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
उज्जैन में शिप्रा नदी के निकट स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Mahakaleshwar Jyotirling, Ujjain) देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे प्रसिद्ध है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सच्चे मन से स्वयंभू भगवान महाकालेश्वर की पूजा-अर्चना करने वाले मनुष्य का काल भी कुछ नहीं बिगाड़ पाते। महाकालेश्वर मंदिर की आरती (Mahakaleshwar Temple Bhasma Aarti) महाकालेश्वर में प्रतिदिन सुबह होने वाली भस्म आरती के बारे …
Read More »श्रीराम जी और श्रीकृष्ण जी
श्रीसूत जी ने श्रीमद्भागवत में कहा है – ‘एते चांशकला: पुंस: कृष्णस्तु भगवान्स्वयम्’ इस वचन से यह स्पष्ट होता है कि भगवान ने यदि अपने किसी अवतार में अपने भगवान होने को साफ – साफ प्रकट किया है तो वह केवल श्रीकृष्णावतार में । अन्य अवतारों में उन्होंने इस भेद को इस प्रकार नहीं खोला । कहा जा सकता है …
Read More »हर – भगवान शिव के अवतार
शैवागम के अनुसार भगवान रुद्र के आठवें स्वरूप का नाम हर है । भगवान हर को सर्वभूषण कहा गया है । इसका अभिप्राय यह है कि मंगल और अमंगल सब कुछ ईश्वर – शरीर में है । दूसरा अभिप्राय यह है कि संहारकारक रुद्र में संहार – सामग्री रहनी ही चाहिए । समय पर सृष्टि का सृजन और समय पर …
Read More »श्रीभरत जी के विशेषतर धर्म से शिक्षा
भगवत धर्म अर्थात् भगवत सेवा (श्रीराम भक्ति) ही श्रीभरत जी की भी इष्ट – चर्या थी । यथा – साधन सिद्धि राम पग नेहू । मोहि लखि परत भरत मत एहू ।। परंतु इतना अंतर था कि श्रीलखनलाल की सेवा संयोगवस्था संबंधी अर्थात् भजनरूप की थी । उनको स्वामी की सन्निधि में – हुजूरी में सेवा वियोगावस्थासंबंधी अर्थात् स्मरणरूप की …
Read More »कलियुग का पुनीत प्रताप
कलियुग का एक पुनीत (पवित्र) प्रताप यह है कि इसमें मानसिक पुण्य तो फलदायी होते हैं, परंतु मानसिक पापों का फल नहीं होता । ‘पुनीत प्रताप’ इसलिए कहा गया है कि जिस प्रकार सत्ययुग, त्रेता और द्वापर में मानसिक पापों के भी फल जीवों को भोगने पड़ते थे उस प्रकार कलियुग में नहीं होता । यहीं कलि की एक विशेषता …
Read More »राधा – भाव
राधा भाव में उपासक और उपास्य में प्रेमाधिक्य के कारण एकरूपता हो जाती है । यही कारण था कि भगवान श्रीकृष्ण राधा जी हो जाते थे और श्रीराधा श्रीकृष्ण बन जाती थीं ।इस प्रकार का परिवर्तन परम स्वाभाविक है । उदाहरणस्वरूप गर्गसंहिता का यह श्लोक है – श्रीकृष्ण कृष्णेति गिरा वदन्त्य: श्रीकृष्णपादाम्बूजलग्नमानसा: । श्रीकृष्णरूपास्तु बभूवुरंगना – श्र्चित्रं न पेशस्कृतमेत्य कीटवत् …
Read More »भगवान की एक लीला
पुराणों में भगवान की लीलाओं का वर्णन है । परंतु आजकल इतिहास पुराण ग्रंथों पर से लोगों की श्रद्धा घटती जाती है । उनका पठन – पाठन, उनकी कथा धीरे – धीरे लोप हो रही है । यहीं कारण है कि जनसाधारण में से स्वधर्म का त्रान नष्ट हो रहा है और धार्मिक प्रवृत्ति भी मंद हो गयी है । …
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