इसमे बहेती है अमर्टधारा अमर्टधारा, अमर्टधारा… कितने जन्मों से प्यासा तू कभी संभला और कभी गिरा तू गुरु वाणी ने तुजको पुकारा इसमे बहेती है… छोड़ अहम को जा तू शरण में दल दुखों की गटरी चरण में इन चरनो ने सबको है तारा इनमें बहेती है… ज़हर तेरा वो पीले क्षण में प्रलय हो जाए कर्मों के पल में …
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एक मे अनेआक,एक मे अनेआक
हर जगह उसका नज़ार है वोही तो एक सहारा है फूल मे जैसे कुशुबू समाया है, वू सब मे है समाया दिल की धधकां मे, वो गूँजता हार पल वो नास नास मे समाया भूल जाते है..2 वो कितना पास तो हमारे है वोही तो एक सहारा है साथ है अपने, वो सामने अपने..2 वो है तो, हम नही है …
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