बुद्धि दो तरह की होती है – अव्यवसायात्मिका और व्यवसायात्मिका । जिसमें सांसारिक सुख, भोग, आराम, मान आदि प्राप्त करने का ध्येय होता है, वह बुद्धि ‘अव्यवसायात्मिका’ होती है । जिसमें समता की प्राप्ति करने का, अपना कल्याण करने का ही उद्देश्य रहता है, वह बुद्धि ‘व्यवसायात्मिका’ होती है । अव्यवसायात्मिका बुद्धि अनंत होती है और व्यवसायात्मिका बुद्धि एक होती …
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