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Tag Archives: sansar

योग – वियोग

Suni Kanha Teri Bansuri

जिसके साथ हमारा संबंध है नहीं, हुआ नहीं, होगा नहीं और होना संभव ही नहीं, ऐसे दु:खस्वरूप संसार – शरीर के साथ संबंध मान लिया, यहीं ‘दु:खसंयोग’ है । यह दु:खसंयोग ‘योग’ नहीं है । अगर यह योग होता अर्थात् संसार के साथ हमारा नित्य – संबंध होता, तो इस दु:खसंयोग का कभी वियोग (संबंध – विच्छेद) नहीं होता । …

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कण- कण में है भगवान्

krshnadarshan - bhagavaan shiv ke avataar

हमलोग मान लें की भगवान् हैं। अनुभव नहीं भी हो तो शास्त्रों को सुनने से मान लें, दूसरों के कहने से मान लें। सब जगह भगवान् हैं, यह मानते हैं, किन्तु भगवान् दिखते नहीं, सब जगह संसार दिखता है, यदि सब जगह प्रत्यक्ष भगवान् दिखने लग जाय तो यह दानना है। पहले मानना होता है, पीछे जानना होता है। शब्द …

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शिव और शक्ति

shankar

शिव’ और ‘शक्ति’- ये परम शिव अर्थात् परम तत्त्व के दो रुप हैं। शिव कूटस्थ तत्त्व है और शक्ति परिणामिनी है। विविध वैचित्र्यपूर्ण संसार के रुप में अभिव्यक्त शक्ति का आधार एवं अधिष्ठान शिव है। शिव अव्यक्त, अदृश्य, सर्वगत एवं अचल आत्मा है। शक्ति दृश्य, चल एवं नाम-रुप के द्वारा व्यक्त सत्ता है। शक्ति-नटी शिव के अनन्त, शान्त एवं गम्भीर …

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