शुकदेव को उनके पिता ने परामर्श दिया कि वे महराज जनक की शरण में जाकर दीक्षा ग्रहण करें। पिता के परामर्श से शुकदेव महराज जनक के दरबार जा पहुंचे और राजा जनक से दीक्षा देने का अनुरोध किया।
जनक ने शुकदेव की परीक्षा लेने से पहले उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनके हाथ में दूध का कटोरा दिया और उनसे कहा कि इस कटोरे को हाथ में लेकर मिथिला नगर घूमकर आओ याद रखना कटोरे या कहें मर्तबान (मर्तबान चीनी मिट्टी का गोलाकार पात्र होता है प्राचीन समय इसका प्रयोग तरल पदार्थ, अचार, मुरब्बे तथा रसायन आदि रखने के लिए किया जाता था) से दूध की एक बूंद न छलके।
शुकदेव ने आज्ञा मान ली और दूध के कटोरे को बिना छलकाए मिथिला घूमकर वापस आ गए। यह देखकर महराज जनक बहुत खुश हुए और उन्होंने शुकदेव से पूछा कि उन्होंने मिथिला घूमते हुए क्या देखा?
शुकदेव बोले मैं मिथिला घूमने के बाद भी कुछ नहीं देख पाया क्यों कि मेरा पूरा ध्यान दूध के कटोरे पर था वह किसी तरह भी न छलक पाए। जनक ने कहा यही एकाग्रता योग है। इसे जीवन भर साधते रहो, यही मेरी दीक्षा है।
In English
His father consulted Shukdev to get initiation into the refuge of Maharaj Janak. In consultation with the father, Shukdev Maharaj reached the court of Janraj and requested the king to initiate initiation.
Before taking the examination of the Shukdeva, the father gave a bowl of milk in his hand for the purpose of taking his examination and told him to take the bowl in hand and visit the Mithila city, remember to bowl or say jarbant (jarban is the circular character of ceramic It was used in ancient times to keep fluid, pickle, marmalade and chemistry etc.), do not mix a drop of milk.
Shukdev accepted the order and came back after visiting the mithila of the milk bowl without spraying it. Seeing this, Maharaj was very happy and he asked Shukdev what he saw while roaming Mithila?
Shukdev said, I did not see anything after visiting Mithila because my whole mind was on the milk bowl, he could not leak in any way. The parent said that this is concentration yoga. Keep doing this throughout life, that is my initiation.