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मन को वश में करना💐💐

जीवन में सफलता और प्रगति के लिए मन का नियंत्रित होना आवश्यक है. बहुत लोगो को लगता है कि मन को जीतना या मन को नियंत्रित करना बहुत ही कठिन कार्य है. लेकिन ऐसा नहीं है. अगर आपके मन में चाह है तो राह भी है. हम जो कुछ देखते है, जो कुछ सुनते है और जो कुछ बोलते है. उसका सीधा असर हमारे मन पर होता है. हमारे आस-पास के लोग जैसे होंगे हम वैसे ही बन जाते है.

मन को नियंत्रित करने के लिए आपके विचारों का सकारात्मक होना जरूरी है. जब आप के विचार सकारात्मक होते है तो आपकी आध्यात्मिक रुचि बढ़ जाती है. इससे मन शांत और प्रसन्न होने लगता है. ऐसा होने पर हम अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्र हो जाते है.

मन को वश में करके प्रभु चरणों में लगाना बड़ा ही कठिन है। शुरुआत में तो यह इसके लिये तैयार ही नहीं होता है । लेकिन इसे मनाएं कैसे?
सुनिए

एक शिष्य थे । किन्तु उनका मन किसी भी भगवान की साधना में नही लगता था। साधना करने की इच्छा भी मन मे थी । वे गुरु के पास गये और कहा कि गुरुदेव मन लगता नहीं और साधना करने का मन होता है । कोई ऐसी साधना बताएं जो मन भी लगे और साधना भी हो जाये ।

गुरु ने कहा तुम कल आना । दुसरे दिन वह गुरु के पास पहुँचा तो गुरु ने कहा । सामने रास्ते में कुत्ते के छोटे बच्चे हैं उनमे से दो बच्चे उठा ले आओ और उनकी हफ्ताभर देखभाल करो । गुरु के इस अजीब आदेश को सुनकर वह भक्त चकरा गया लेकिन क्या करे, गुरु का आदेश जो था।

वह 2 पिल्लों को पकड़ कर लाया लेकिन जैसे ही छोड़ा वे भाग गये।वह फिरसे पकड़ लाया लेकिन वे फिर भागे । अब उसने उन्हें पकड़ लिया और दूध रोटी खिलायी ।अब वे पिल्ले उसके पास रहने लगे।

हफ्ताभर उसने उन 🐶 की ऐसी सेवा यत्न पूर्वक की कि अब वे उसका साथ छोड़ नही रहे थे ।वह जहाँ भी जाता पिल्ले उसके पीछे-पीछे भागते। यह देख गुरु ने दूसरा आदेश दिया कि इन पिल्लों को भगा दो।भक्त के लाख प्रयास के बाद भी वह पिल्ले नहीं भागे । तब गुरु ने कहा देखो बेटा !शुरुआत मे ये बच्चे तुम्हारे पास रुकते नहीं थे । लेकिन जैसे ही तुमने उनके पास ज़्यादा समय बिताया ये तुम्हारे बिना रहनें को तैयार नहीं हैं। ठीक इसी प्रकार खुद जितना ज़्यादा वक्त भगवान के पास बैठोगे, मन धीरे-धीरे भगवान की सुगन्ध,आनन्द से उनमें रमता जायेगा।

हम अक्सर चलती-फिरती पूजा करते है,तो भगवान में मन कैसे लगेगा? जितनी ज्यादा देर हम स्वयं के साथ बैठकर फिर परमात्म स्मृति में स्थित होंगे के मन भी परमात्म प्रेम के रस का मधुपान करेगा और एक दिन ऐसा आएगा कि उनके बिना आप रह नही पाओगे ।

शिष्य को अपने मन को वश में करने का मर्म समझ में आ गया और वह गुरु आज्ञा से भजन सुमिरन करने चल दिया।

एक बार अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया कि मन तो वायु के समान चंचल है इसे कैसे वश में किया जा सकता है.

तब भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्कुराकर कहा – हे अर्जुन माना मन वायु के समान चंचल है परन्तु अभ्यास और वैराग्य से इसे वश में किया जा सकता है. मन पर जीत प्राप्त की जा सकती है. जो व्यक्ति सतत अभ्यास करता है वह अपने अंदर के काम, क्रोध, घृणा, ईर्ष्या, लोभ, मोह को धीरे-धीरे समाप्त करके वह मन पर विजय प्राप्त कर लेता है.

मन को पवित्र और अच्छे विचारों और चिंतन में लगाएं। मनुष्य का अपने सभी इन्द्रियों पर संयम आवश्यक है. अच्छे वातावरण में रहने का प्रयास करें। ईमानदारी और परिश्रम से धन अर्जित करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।

English Translation

Control of mind is necessary for success and progress in life. Many people feel that winning the mind or controlling the mind is a very difficult task. but it’s not like that. If you have a desire in your mind then there is a way. Whatever we see, what we hear and everything we speak. It has a direct effect on our mind. We become like the people around us.

To control the mind, it is important for your thoughts to be positive. When your thoughts are positive then your spiritual interest increases. This causes the mind to become calm and happy. When this happens, we become focused towards our goal.

It is very difficult to subdue the mind and put it in the Lord’s feet. In the beginning, it is not ready for this. But how to celebrate it?
Listen

Was a disciple. However, his mind did not seem to be in the practice of any god. There was also a desire to practice meditation. He went to the Guru and said that Gurudev does not mind and has the mind to do spiritual practice. Describe any kind of sadhana that is practiced and can be practiced as well.

Guru said you come tomorrow. When he reached the Guru on the second day, the Guru said. There are small dogs of dogs on the way in front, take two of them and take care of them for a week. Hearing this strange order of the Guru, that devotee was shocked but what to do, which was the order of the Guru.

He caught 2 puppies but fled as soon as he left. He was caught again but he ran away again. Now he caught them and fed them milk bread. Now those puppies started living near him.

For a week, he worked so hard for them that they were no longer with him. Puppies ran after him wherever he went. Seeing this, the Guru gave the second order to drive away these puppies. Even after lakhs of devotees, those puppies did not run away. Then the Guru said, look, son! In the beginning these children did not stop with you. But as you spend more time with them, they are not ready to live without you. In the same way, the more time you spend sitting with God, your mind will slowly be scented with joy and joy.

We often do moving worship, so how will God feel? The longer we sit with ourselves, the more we will be situated in the divine memory that the mind will also drink the juices of divine love and one day it will come that you will not be able to live without them.

The disciple understood the quintessence of subduing his mind and he proceeded to listen to the hymn by the Guru’s command.

Once, Arjun asked Lord Krishna that the mind is as fickle as air, how can it be subdued.

Then Lord Krishna smiled and said – O Arjuna, mind is as fickle as air, but with practice and quietness it can be subdued. Victory can be achieved on the mind. The person who practices continuously, he gets victory over the mind by gradually ending his inner work, anger, hatred, jealousy, greed, fascination.

Keep the mind pure and in good thoughts and thoughts. Man’s restraint on all his senses is necessary. Try to live in a good environment. Earn money with honesty and hard work and take satvik food.

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