एक सरोवर मेँ तीन दिव्य मछलियाँ रहती थीँ। वहाँ की तमाम मछलियाँ उन तीनोँ के प्रति ही श्रध्दा मेँ बँटी हुई थीँ।
अतिबुद्धि के पास ज्ञान का असीम भंडार था। वह सभी प्रकार के शास्त्रोँ का ज्ञान रखती थी। मध्यमबुद्धि को उतनी ही दुर तक सोचनेँ की आदत थी, जिससे उसका वास्ता पड़ता था। वह सोचती कम थी, परंपरागत ढंग से अपना काम किया करती थी।व्यवहारिक बुद्धि न परंपरा पर ध्यान देती थी और न ही शास्त्र पर। उसे जब जैसी आवश्यकता होती थी निर्णय लिया करती थी और आवश्यकता न पड़नेँ पर किसी शास्त्र के पन्ने तक नहीँ उलटती थी।
एक दिन कुछ मछुआरे सरोवर के तट पर आये और मछलियोँ की बहुतायत देखकर बातेँ करनेँ लगे कि यहाँ काफी मछलियाँ हैँ, सुबह आकर हम इसमेँ जाल डालेँगे।
उनकी बातेँ मछलियोँ नेँ सुनीँ।
मध्यमबुद्धि नेँ कहा- ” प्राचीन काल से हमारे पूर्वज ठण्ड के दिनोँ मेँ ही वहाँ जाते हैँ और अभी तो वो मौसम ही नहीँ आया है, हम हमारे वर्षोँ से चली आ रही इस परंपरा को नहीँ तोड़ सकते। मछुआरोँ का खतरा हो या न हो, हमेँ इस परंपरा का ध्यान रखना है।”
अतिबुद्धि नेँ गर्व से हँसते हुए कहा-” तुम लोग अज्ञानी हो, तुम्हेँ शास्त्रोँ का ज्ञान नहीँ है। जो बादल गरजते हैँ वे बरसते नहीँ हैँ। फिर हम लोग एक हजार तरीकोँ से तैरना जानते हैँ, पानी के तल मेँ जाकर बैठनेँ की सामर्थ्यता है, हमारे पूंछ मेँ इतनी शक्ति है कि हम जालोँ को फाड़ सकती हैँ। वैसे भी कहा गया है कि सँकटोँ से घिरे हुए हो तो भी अपनेँ घर को
छोड़कर परदेश चले जाना अच्छी बात नहीँ है। अव्वल तो वे मछुआरे आयेँगे नहीँ, आयेँगे तो हम तैरकर नीचे बैठ जायेँगी उनके जाल मेँ आयेँगे ही नहीँ, एक दो फँस भी गईँ तो पुँछ से जाल फाड़कर निकल जायेंगे। भाई! शास्त्रोँ और
ज्ञानियोँ के वचनोँ के विरूध्द मैँ तो नहीँ जाऊँगी।”
व्यवहारिकबुद्धि नेँ कहा-” मैँ शास्त्रोँ के बारे मेँ नहीँ जानती , मगर मेरी बुद्धि कहती है कि मनुष्य जैसे ताकतवर और भयानक शत्रु की आशंका सिर पर हो, तो भागकर कहीँ छुप जाओ।” ऐसा कहते हुए वह अपनेँ अनुयायिओं को लेकर चल पड़ी।
मध्यमबुद्धि और अतिबुद्धि अपनेँ परँपरा और शास्त्र ज्ञान को लेकर वहीँ रूक गयीं । अगले दिन मछुआरोँ नेँ पुरी तैयारी के साथ आकर वहाँ जाल डाला और उन दोनोँ की एक न चली। जब मछुआरे उनके विशाल शरीर को टांग रहे थे तब
व्यवहारिकबुद्धि नेँ गहरी साँस लेकर कहा-” इनके शास्त्र ज्ञान नेँ ही धोखा दिया। काश! इनमेँ थोड़ी व्यवहारिक बुद्धि भी होती।”
व्यवहारिक बुद्धि से हमारा आशय है कि किस समय हमेँ क्या करना चाहिए और जो हम कर रहे हैँ उस कार्य का परिणाम निकलनेँ पर क्या समस्यायेँ आ सकती हैँ, यह सोचना ही व्यवहारिक बुद्धि है। बोलचाल की भाषा में हम इसे कॉमन सेंस भी कहते हैं , और भले ही हम बड़े ज्ञानी ना हों मोटी-मोटी किताबें ना पढ़ीं हों लेकिन हम अपनी व्य्वयहारिक बुद्धि से किसी परिस्थिति का सामना आसानी से कर सकते हैं।