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फलों का भगवान!!

केशवलाल का अपने घर के आसपास बहुत बड़ा बगीचा था। वह बहुत मेहनत से अपने बगीचे की देखभाल पुरे साल भर करता था। ज्यादा तर बगीचे के फल वह अपने परिवार में ही देता था और कुछ बचे हुए वह बाजार में बेचता था। वह बहुत ही साधारण जीवन जीता था पर अपनी बगीचे की देखभाल बहुत अच्छे से करता था।

एक दिन अपने बेटी के साथ जब केशवलाल फल उठा रहा था तो उसने एक अजनबी को पेड की शाखा पर बैठे हुए देखा और वह अजनबी फल तोड़ रहा था। केशवलाल यह देखकर गुस्सा हो गया और वह चिल्लाया, “कौन हो तुम? तुम मेरे पेड़ पर क्या कर रहे हो? क्या तुम्हें शर्म नहीं आती दिन के समय तुम फल चुरा रहे हो?”

पेड को शाखा पर बैठे अजनबी ने केशवलाल को देखा लेकिन उसने उसकी बात का जवाब नहीं दिया और फल उठाता रहा। केशवलाल बहुत गुस्सा हो गया और फिर चिल्लाया, “पूरे साल इन पेड़ों को रखवाली मैने की है, तुम्हें मेरी इजाजत के बिना इनके फल लेने का कोई अधिकार नहीं है। नीचे आ जाओ।”

पेड पर बैठे अजनबी ने जवाब दिया, “मै नीचे क्यों आऊ? यह भगवान का बगीचा है और मैं भगवान का सेवक हूं इसलिए मुझे यह फल तोड़ने का हक है और तुम्हें भगवान के काम और उसके सेवक के बीच में नहीं आना चाहिए।” केशवलाल उसका यह जवाब सुनकर बहुत हैरान हो गया।

केशवलाल ने एक डंडी ली और उसने अजनबी को मारना शुरू कर दिया। अजनबी चिल्लाने लगा, “तुम मुझे क्यों मार रहे हो? तुम्हें यह करने का कोई हक नहीं है।” केशवलाल ने ध्यान नहीं दिया और वह उसे लगातार मारता रहा।

अजनबी चिल्लाया, “तुम्हें भगवान से डर नहीं लगता। तुम एक मासूम इंसान को मार रहे हो?”  केशवलाल ने जवाब दिया, “मुझे डर क्‍यों लगेगा? मेरे हाथ में जो छड़ी है वह भगवान की है और मैं भी भगवान का सेवक हूं इसलिए मुझे किसी चीज से डरने की जरूरत नहीं और तुम्हें भगवान के काम और उसके सेवक के बीच में नहीं बोलना चाहिए।”

अजनबी यह सुनकर चुप हो गया और फिर बोला, “रुको, मुझे मत मारो, मुझे माफ करो कि मैने तुम्हारे फल चुराए। यह तुम्हारा बगीचा है और मुझे फल तोड़ने के लिए तुम्हारी इजाजत लेनी चाहिए थी। इसलिए मुझे माफ करो और छोड दो।”

केशवलाल यह सुनकर मुस्कुराया और कहा, “क्योंकि अब तुम्हें तुम्हारी गलती का अहसास हो गया है मै तुम्हें माफ कर दूंगा।”  इसके बाद केशवलाल ने उसे छोड़ दिया और वह अजनबी वहां से चला गया।

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