Breaking News

अंधा गिद्ध और दुष्ट बिल्ली की कहानी : हितोपदेश!!

गोदावरी नदी के तट पर सेमल का एक विशाल वृक्ष था. उस वृक्ष पर कई पक्षी निवास करते थे. दिन में वे भोजन की तलाश में खेत-खलिहानों में जाया करते और संध्याकाल को पेड़ पर स्थित अपने-अपने घोंसलों में लौट आते. यही उनकी दिनचर्या थी.

एक दिन जरद्गव नामक एक अंधा गिद्ध (Blind vulture) वहाँ आया. वह वृद्ध हो चला था. पक्षियों ने दयावश उसे वृक्ष के कोटर में आश्रय दे दिया. पक्षी जब भोजन की तलाश में जाते, तो गिद्ध के लिए भी भोजन ले आते थे. बदले में वह उनके बच्चों की देखभाल कर दिया करता था. इस तरह गिद्ध को बिना श्रम आहार प्राप्त हो जाता था और पक्षी भी अपने बच्चों की तरफ से निश्चिंत होकर भोजन की तलाश में दूर-दूर तक जा पाते थे. सुख-चैन से पक्षियों और गिद्ध के दिन व्यतीत हो रहे थे.

एक दिन कहीं से एक  बिल्ली  उस वन में आ पहुँची. इधर-उधर भटकते हुए जब वह उस पेड़ के पास से गुज़री, तो उसकी दृष्टि पक्षियों के अंडों और बच्चों पर पड़ी. उसके मुँह में पानी आ गया. वह उन्हें खाने के लिए वृक्ष पर चढ़ी, तो पक्षियों के बच्चे अपने बचाव के लिए शोर मचाने लगे. शोर सुनकर गिद्ध कोटर से बाहर निकला और चिल्लाकर बोला, “कौन है?”

बिल्ली डर गई और वृक्ष से नीचे उतर आई और गिद्ध को प्रमाण कर बोले, “महाशय, मैं बिल्ली हूँ. यही नदी किनारे रहती हूँ. पक्षियों से मैंने आपकी बहुत प्रशंषा सुनी है. इसलिए दर्शन हेतु चली आई. कृपया मेरा प्रणाम स्वीकार करें.”

गिद्ध ने उसे वहाँ से चले जाने को कहा. वह जानता था कि बिल्ली पक्षियों के बच्चों के लिए ख़तरा है. बिल्ली समझ गई कि भले ही गिद्ध अंधा और बूढ़ा क्यों न हो? उसके रहते पक्षियों के अंडों और बच्चों पर हाथ साफ़ करना असंभव है.

वह किसी तरह पानी चिकनी-चुपड़ी बातों से उसे विश्वास में लेने का प्रयास करने लगी. वह बोली, “महाशय, मैं जानती हूँ कि आपको मुझ पर संदेह है. आपको लगता है कि मैं पक्षियों के बच्चों को अपना आहार बना लूंगी. किंतु विश्वास करें, ऐसा नहीं है. एक दिन एक महात्मा से मिलने के बाद मैंने मांस खाना छोड़ दिया है. मैं पूर्णतः शाकाहारी बन गई हूँ और अपना समय धर्म-कर्म की बातों और कार्यों में ही लगाती हूँ. आपकी प्रशंसा सुनकर आपके सानिध्य में कुछ व्यतीत करने का विचार कर आपके पास आई हूँ. कृपया मुझे अपने सानिध्य में रख लें.”

गिद्ध उसके चिन्नी-चुपड़ी बातों में आ गया और उस पर विश्वास कर बैठा. उसने उसे अपने साथ वृक्ष के कोटर रहने की अनुमति दे दी. बिल्ली तो यही चाहती थी. वह गिद्ध के साथ उसी कोटर में रहने लगी और अवसर पाकर एक-एक कर पक्षियों के अंडे और बच्चे खाने लगी.

एक-एक कर अपने बच्चों और अंडों के गायब होने से सभी पक्षी चिंतित और दु:खी थे. एक दिन सबने इसकी पड़ताल करने की ठानी. जैसे ही बिल्ली को इस बात का अंदेशा हुआ, वो कोटर छोड़कर भाग गई. इधर पड़ताल करते हुए पक्षियों ने जब वृक्ष के कोटर में झांका, तो उन्हें वहाँ ढेर सारे पंख पड़े हुए दिखाई पड़े. उन्हें लगा कि गिद्ध ने ही उनके बच्चों को खा लिया है. वे सभी आक्रोश में आ गए और चोंच मार-मार का बूढ़े गिद्ध का काम तमाम कर दिया. बिल्ली पर विश्वास कर बेचारा गिद्ध व्यर्थ में ही अपने प्राणों से हाथ धो बैठा.

सीख (Moral of the story)

जिसके कुल, गोत्र या स्वभाव की जानकारी न हो, उसे आश्रय नहीं देना चाहिए.

Check Also

babu-kunwar-singh

बाबू वीर कुंवर सिंह

यदि हमें पिछले 200-250 वर्षों में हुए विश्व के 10 सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं की सूची बनाने को कहा जाए तो हम अपनी सूची में पहला नाम बाबू वीर कुंवर..