एक तालाब में तीन कछुए थे। दो कछुए आपस में खूब लड़ाई करते थे। तीसरा कछुआ समझदार था , वह इन दोनों के लड़ाई में नहीं पड़ता था। एक दिन की बात है लड़ाई करने वाले कछुए में से एक पत्थर से गिरकर उल्टा हो गया था। कछुए का पैर आसमान की ओर था और पीठ जमीन पर लगी हुई थी। उस कछुए ने काफी प्रयत्न किया किंतु वह सीधा नहीं हो पाया। आज उसे पछतावा हो रहा था उसने जीवन में लड़ाई – झगड़े के अलावा और किया ही क्या था। उल्टा हुए उसे काफी समय हो गया कोई भी उसके पास नहीं आया।
तालाब में दोनों कछुए इंतजार कर रहे थे।
काफी समय बीत जाने के बाद भी जब वह तालाब में नहीं आया। दोनों कछुओं को संदेह हुआ। दोनों कछुए ने ढूंढने का मन बनाया और तालाब से बाहर निकलकर उस की खोज करने लगे। तालाब से कुछ दूर एक पत्थर था , उस पर वह कछुआ उल्टा गिरा हुआ था। दोनों कछुए दौड़ते हुए गए और उसे सीधा करके हालचाल पूछने लगे। वह कछुआ अपने किए पर शर्मिंदा था। जोर – जोर से रोने लगा और दोनों से फिर कभी लड़ाई न करने की बात कहकर माफी मांगने लगा।
तबसे तीनों कछुए तालाब में दोस्त बनकर रहने लगे। एक दूसरे के साथ फिर कभी लड़ाई नहीं करते थे। क्योंकि उन्हें मालूम हो गया था कि एक – दूसरे की सहायता के बिना उनका जीना मुश्किल है।
नैतिक शिक्षा
अपने आसपास के लोगों से बैर नहीं करना चाहिए , क्योंकि समय पड़ने पर वही काम आते हैं।