बहुत समय पहले की बात है। गंगा नदी के किनारे पर स्वर्णपुर नाम का एक गांव था। एक बार वहां पर राम कथा का आयोजन किया गया। राम कथा सुनाने के लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध कथावाचक को बुलाया गया। कथावाचक पंडित जी बहुत योग्य और कर्मकांडी थे। नियमपूर्वक दोनों समय संध्या करते थे।
वे बहुत विद्वान थे, उनकी वाणी में अद्भत आकर्षण था। जब वे कथा सुनाते तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। स्वर्णपुर के लोग बहुत प्रसन्न थे। सब बढ़ चढ़ कर इस ज्ञानयज्ञ में अपना सहयोग दे रहे थे।
कथा सुनने के लिए भी बहुत दूर दूर से लोग आते थे। कथा दोपहर में और शाम को होती थी। गंगापार के गांव की एक ग्वालिन भी कथा सुनने आती थी। वह ग्वालिन अनपढ़ थी और पूजा पाठ, नियम, धर्म नहीं जानती थी।
लेकिन पंडितजी की कथा उसे बहुत अच्छी लगती थी। उसने पहले कभी कोई कथा नहीं सुनी थी। लेकिन उसके मन में श्रद्धा और विश्वास बहुत था। वह पंडितजी की प्रत्येक बात को परम सत्य मानती थी।
वह रोज पंडितजी के लिए दूध लाती थी। लेकिन उसे एक समस्या थी। वह केवल दोपहर की कथा में ही शामिल हो पाती थी। क्योंकि शाम की कथा के बाद उसे वापस घर जाने में समस्या होती थी। क्योंकि रात के समय कोई नाव वाला उसे गंगा पार करने को तैयार नहीं होता था।
एक दिन उसने कथा वाचक पंडितजी को अपनी समस्या बताई और उनसे कथा का समय बदलने का अनुरोध किया। पंडितजी को उस अनपढ़ ग्वालिन की बात बुरी लगी। उन्होंने सोचा अब यह मुझे कथा का समय बताएगी !
पंडितजी ने व्यंग्यपूर्ण वाणी में ग्वालिन से कहा, “अरे ग्वालिन ! राम का नाम लेकर लोग भवसागर से पार हो जाते हैं। तुझे गंगा पार करने में दिक्कत होती है।”
बेचारी ग्वालिन पंडितजी के व्यंग्य को नहीं समझ सकी। उसने श्रद्धापूर्वक उन्हें प्रणाम किया और अपने घर जाने के लिए चल पड़ी। पंडितजी पर उसे अटूट विश्वास था। वह बिना हिचके राम राम जपते हुए गंगा के जल के ऊपर चलती हुई नदी पार कर गयी।
अब तो वह बहुत प्रसन्न हुई और शाम की कथा में भी प्रतिदिन जाने लगी। एकदिन रात में कथा के बाद जब वह घर जाने से पहले पंडितजी को प्रणाम करने गयी तो पंडितजी को उसकी बात याद आ गयी।
उन्होंने पूछा, “अरे ग्वालिन ! अब तुम प्रतिदिन रात की कथा में भी आती हो। क्या अब तुम्हे वापस जाने में दिक्कत नहीं होती ?” ग्वालिन ने उत्तर दिया, “महाराज ! आपके बताए उपाय से ही अब मुझे कोई दिक्कत नहीं होती।”
पंडितजी के पूछने पर उसने पूरी बात बता दी। पंडितजी को उसकी बात पर बिल्कुल विश्वास नही हुआ। उन्होंने कहा, “क्या तुम मुझे गंगा पार करके दिखा सकती हो ? ग्वालिन ने कहा, “बिल्कुल, यह बहुत सरल है। आप भी कर लेंगे, आखिर आपने ही तो मुझे सिखाया है।”
पंडितजी ग्वालिन के साथ गंगा के किनारे पहुंचे। ग्वालिन को राम नाम जपते हुए पानी की लहरों पर चलते देखकर पंडितजी ने भी कोशिश करने का निश्चय किया। उन्होंने एक हाथ से धोती ऊपर उठायी और राम नाम जपते हुए नदी के जल में आगे बढ़ने लगे।
लेकिन वे जल के ऊपर न चलकर जल के अंदर जा रहे थे। ग्वालिन ने पीछे मुड़कर पंडितजी को देखा और बोली, “अरे महाराज ! एक तरफ राम नाम जप रहे हो, दूसरी तरफ धोती भी उठाए हो। ऐसे नदी पार नहीं होगी। आपको राम नाम पर पूर्ण विश्वास नहीं है।”
ग्वालिन की बात सुनकर पंडितजी बहुत लज्जित हुए। उन्होंने हाथ जोड़कर उस अनपढ़ ग्वालिन के समर्पण और विश्वास को प्रणाम किया और सिर झुकाए चुपचाप वापस लौट आये।
सीख- Moral
यह कहानी हमें सिखाती है कि बिना पूर्ण समर्पण और सफलता के दृढ़ विश्वास के हम बड़े लक्ष्य नहीं प्राप्त कर सकते।