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जीवन का सत्य

जीवन के सत्य वे मौलिक सिद्धांत हैं जो मानव अस्तित्व और अनुभवों के मूल में होते हैं। ये सत्य व्यक्तिगत अनुभवों, सांस्कृतिक मान्यताओं, और धार्मिक शिक्षाओं के आधार पर भिन्न हो सकते हैं, लेकिन कुछ मौलिक विचार सार्वभौमिक रूप से मान्य होते हैं। यहां कुछ ऐसे जीवन के सत्य दिए गए हैं:

  1. परिवर्तन अवश्यंभावी है: जीवन में परिवर्तन एक स्थायी सत्य है। समय के साथ हमारे परिवेश, रिश्ते, और हम खुद बदलते रहते हैं। इसे स्वीकार करना और अनुकूलन करना सीखना जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
  2. मृत्यु निश्चित है: मृत्यु जीवन का एक अटल सत्य है। यह हमें याद दिलाती है कि समय कीमती है और हमें अपने जीवन को पूर्णता से जीना चाहिए।
  3. खुशी आंतरिक है: खुशी की तलाश बाहरी चीजों में नहीं, बल्कि आंतरिक संतोष और शांति में होनी चाहिए। यह हमारे दृष्टिकोण और मानसिकता पर निर्भर करती है।
  4. संघर्ष आवश्यक है: जीवन में संघर्ष और चुनौतियां विकास और परिपक्वता के लिए आवश्यक हैं। वे हमें मजबूत बनाते हैं और हमारे चरित्र को निर्मित करते हैं।
  5. प्रेम अत्यंत महत्वपूर्ण है: प्रेम, चाहे वह पारिवारिक हो, रोमांटिक हो, या मित्रता हो, जीवन को अर्थ और संतोष प्रदान करता है। यह हमें जुड़ाव और समर्थन की भावना देता है।
  6. आत्म-ज्ञान महत्वपूर्ण है: खुद को जानना और समझना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें हमारे सपनों, लक्ष्यों, और व्यक्तिगत मूल्यों के प्रति सचेत रहने में मदद करता है।
  7. दायित्व लेना जरूरी है: हमारे निर्णयों और कर्मों की जिम्मेदारी लेना हमें सशक्त बनाता है और हमारे जीवन की दिशा को नियंत्रित करने की क्षमता देता है।

ये जीवन के कुछ सत्य हैं जो हमें विचार करने, सीखने, और एक अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण है ना की भौतिक सुख !” “सत्य वचन में प्रीति करले,सत्य वचन प्रभु वास। सत्य के साथ प्रभु चलते हैं, सत्य चले प्रभु साथ।।”
मनुष्य पद की गरिमा को क्यों खोता है और उसके क्या परिणाम होते है ?
उत्तर :-
मनुष्य पद की गरिमा को तामसिक प्रवृतियों ( वासना , लालच एवं अहंकार ) के आधीन होने के कारण खोता है ! पवित्र गीता के अनुसार ये प्रवृतिया नरक का द्वार है ! हमारे मत में ये प्रवृतिया हमारे जीवन में तामस के उदय का आरम्भ है और यही तामस मानवो के जीवन में अज्ञानता , जड़ता एवं मूढ़ता के उदय का कारण है जो हमें नरक लोक ले जाने में सक्षम है ! अतः भ्रष्टाचार से बचो यानि पद की गरिमा को मत खोओ ! कोई भी पद या सम्मान (गरिमा ) इस जन्म में (पूर्व में संचित ) पुण्य कर्मो की देन है !पुण्य कर्मो के ह्यास के साथ ही गरिमा भी समाप्त हो जाती है और मानव को फिर अनेक योनियों में भटकना पड़ता है )
एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है, तू तो प्रभु का दिया है फिर किस बात से डरता है…”
हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर
शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे ” विभूतिया ” (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम ” दुर्गति ” ( बुराइया / पाप ) इत्यादि ! परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो ! प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो ! शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !

परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥ तनु तिज तात जाहु मम धामा। देउँ काह तुम्ह पूरनकामा॥ भावार्थ:- जिनके मन में दूसरे का हित बसता है (समाया रहता है), उनके लिए जगत्‌ में कुछ भी (कोई भी गति) दुर्लभ नहीं है। हे तात! शरीर छोड़कर आप मेरे परम धाम में जाइए। मैं आपको क्या दूँ? आप तो पूर्णकाम हैं (सब कुछ पा चुके हैं)

पाप नष्ट कैसे होते हैं?

जैसे अनजाने में हुए पाप साधारणतः पश्‍चाताप होने से अथवा सबके समक्ष बताने से नष्ट हो जाते हैं। परंतु जानबूझकर किए गए पापों के लिए तीव्र स्वरूप का प्रायश्‍चित लेना चाहिए। प्रायश्‍चित करने के कुछ उदाहरण : तीर्थयात्रा पर जाना, दान करना, उपवास करना आदि।

मनुष्य न चाहते हुए भी पाप क्यों करता है?

मनुष्य न चाहते हुए भी पाप क्यों करता है?पाप करने की सबसे बड़ी वजह मनुष्य की काम भावना (किसी चीज को पाने की इच्छा) है क्योंकि काम वासना से क्रोध उत्पन्न होता है और क्रोध से भ्रम पैदा होता है, जिससे सबसे पहले बुद्धि नष्ट हो जाती है और यही मनुष्य के विनाश का कारण बनती है।

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