प्रकृति और मानव मन-मस्तिष्क में अनूठी क्षमता होती है। यदि मनुष्य बुद्धि विवेक से काम ले, उचित-अनुचित का विचारकर प्रकृति का उपयोग करे, तो वह सदैव वरदान के रूप में कल्याणकारी होती है।
सद्गुण-दुर्गुण प्रत्येक व्यक्ति की अंतःचेतना में विद्यमान रहते हैं। मिट्टी में उर्वरा शक्ति होती है। उसमें जैसा बीज बोया जाता है, वैसा ही फल उगता है। ईश्वर और प्रकृति ने मनुष्य को जो शक्तियाँ प्रदान की हैं, यदि उनका सदुपयोग किया जाए, तो असीमित सुख समृद्धि से संपन्न बना जा सकता है।
जाने-माने चिंतक पुष्कर लाल केडिया लिखते हैं, ‘पृथ्वी की भाँति मनुष्य की कर्मभूमि भी उर्वरा है। यदि उसे सदाचारों से जोतें, उत्तम विचारों से सींचें और सत्कार्यों के बीज बोएँ, तो पुण्य और कीर्ति की फसल लहलहाएगी।
इसी तरह यदि मस्तिष्क की उर्वरता का भी हम ठीक से उपयोग करें, श्रेष्ठ चिंतन के बीज बोएँ, बुद्धि से सींचें, विवेक का उर्वरक डालें, तो नवनिर्माण की हरियाली जन्म लेगी।
हमारे भीतर अन्नपूर्णा जैसी शक्ति है, जो हमारी आकांक्षाओं को शांत कर सफलता प्रदान कर सकती है। प्रकृति का कार्य हमें साधनों से संपन्न करना है।
उनके उपयोग की कला, सही-गलत के उपयोग का निर्णय करने के लिए उसने हमें बुद्धि एवं विवेक नामक दो दुर्लभ विभूतियाँ प्रदान की हैं। व्यक्ति अपनी क्षमता और साधनों का समुचित उपयोगकर जीवन को श्रेष्ठ कार्यों से कृतार्थ कर सकता है।
प्राकृतिक साधनों और मन-मस्तिष्क का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए, वह वरदान सिद्ध होता है, लेकिन दुरुपयोग करने पर परिणाम अभिशाप के रूप में सामने आते हैं।
English Translation
Nature and the human mind have a unique capacity. If a man uses his intellect with prudence, considers right and wrong and uses nature, then he is always beneficent in the form of a boon.
Virtue and demerits are present in the inner consciousness of every person. Soil has fertility. As the seed is sown in it, so the fruit grows. The powers that God and nature have given to man, if they are utilized properly, can be made endowed with unlimited happiness and prosperity.
Well-known thinker Pushkar Lal Kedia writes, ‘Like the earth, man’s land of work is also fertile. If you plow it with virtues, irrigate it with good thoughts and sow seeds of good deeds, then the crop of virtue and fame will flourish.
Similarly, if we use the fertility of the mind properly, sow the seeds of noble thoughts, water with intellect, and fertilize with wisdom, then the greenery of new construction will be born.
There is a power like Annapurna within us, which can pacify our aspirations and provide success. We have to do the work of nature with the means.
The art of their use, to decide the use of right and wrong, he has given us two rare figures named intelligence and discretion. By making proper use of his capacity and resources, a person can give life to the best of works.
If natural resources and mind-brain are used judiciously, it proves to be a boon, but if misused, the results come in the form of a curse.