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विजय दशमी

Vijya Dasmi
Vijya Dasmi

 विजयादशमी / दशहरा 

आश्विन शुक्ल दशमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह भारत का ‘राष्ट्रीय त्योहार’ है। रामलीला में जगह–जगह रावण वध का प्रदर्शन होता है। क्षत्रियों के यहाँ शस्त्र की पूजा होती है। ब्रजके मन्दिरों में इस दिन विशेष दर्शन होते हैं। इस दिन नीलकंठ का दर्शन बहुत शुभ माना जाता है। यह त्योहार क्षत्रियों का माना जाता है। इसमें अपराजिता देवी की पूजा होती है। यह पूजन भी सर्वसुख देने वाला है। दशहरा या विजया दशमीनवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है। इस दिन राम ने रावण का वध किया था। रावण राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लंका ले गया था। भगवान राम युद्ध की देवी मां दुर्गा के भक्त थे, उन्होंने युद्ध के दौरान पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की और दसवें दिन दुष्ट रावण का वध किया। इसके बाद राम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान, और बंदरों की सेना के साथ एक बड़ा युद्ध लड़कर सीता को छुड़ाया। इसलिए विजयादशमी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है। इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और पुत्र मेघनाद के पुतले खुली जगह में जलाए जाते हैं। कलाकार राम, सीता और लक्ष्मण के रूप धारण करते हैं और आग के तीर से इन पुतलों को मारते हैं जो पटाखों से भरे होते हैं। पुतले में आग लगते ही वह धू धू कर जलने लगता है और इनमें लगे पटाखे फटने लगते हैं और जिससे इनका अंत हो जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

दशहरा उत्सव की उत्पत्ति

दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में कई कल्पनायें की गयी हैं। भारत के कतिपय भागों में नये अन्नों की हवि देने, द्वार पर धान की हरी एवं अनपकी बालियों को टाँगने तथा गेहूँ आदि को कानों, मस्तक या पगड़ी पर रखने के कृत्य होते हैं। अत: कुछ लोगों का मत है कि यह कृषि का उत्सव है। कुछ लोगों के मत से यह रणयात्रा का द्योतक है, क्योंकि दशहरा के समय वर्षा समाप्त हो जाती है, नदियों की बाढ़ थम जाती है, धान आदि कोष्ठागार में रखे जाने वाले हो जाते हैं। सम्भवत: यह उत्सव इसी दूसरे मत से सम्बंधित है। भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी राजाओं के युद्ध प्रयाण के लिए यही ऋतुनिश्चित थी। शमी पूजा भी प्राचीन है। वैदिक यज्ञों के लिए शमी वृक्ष में उगे अश्वत्थ (पीपल) की दो टहनियों (अरणियों) से अग्नि उत्पन्न की जाती थी। अग्नि शक्ति एवं साहस की द्योतक है, शमी की लकड़ी के कुंदे अग्नि उत्पत्ति में सहायक होते हैं। जहाँ अग्नि एवं शमी की पवित्रता एवं उपयोगिता की ओर मंत्रसिक्त संकेत हैं। इस उत्सव का सम्बंध नवरात्र से भी है क्योंकि इसमें महिषासुर के विरोध में देवी के साहसपूर्ण कृत्यों का भी उल्लेख होता है और नवरात्र के उपरांत ही यह उत्सव होता है। दशहरा या दसेरा शब्द ‘दश’ (दस) एवं ‘अहन्‌‌’ से ही बना है।

शास्त्रों के अनुसार

आश्विन शुक्ल दशमी को विजयदशमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इसका विशद वर्णन हेमाद्रि , सिंधुनिर्णय, पुरुषार्थचिंतामणि, व्रतराज, कालतत्त्वविवेचन, धर्मसिंधु आदि में किया गया है।

  • कालनिर्णय के मत से शुक्ल पक्ष की जो तिथि सूर्योदय के समय उपस्थित रहती है, उसे कृत्यों के सम्पादन के लिए उचित समझना चाहिए और यही बात कृष्ण पक्ष की उन तिथियों के विषय में भी पायी जाती है जो सूर्यास्त के समय उपस्थित रहती हैं।
  • हेमाद्रिने विद्धा दशमी के विषय में दो नियम प्रतिपादित किये हैं-
  1. वह तिथि, जिसमें श्रवण नक्षत्रपाया जाए, स्वीकार्य है।
  2. वह दशमी, जो नवमीसे युक्त हो।

किंतु अन्य निबंधों में तिथि सम्बंधी बहुत से जटिल विवेचन उपस्थित किये हैं। यदि दशमी नवमी तथा एकादशी से संयुक्त हो तो नवमी स्वीकार्य है, यदि इस पर श्रवण नक्षत्र ना हो।

  • स्कंद पुराणमें आया है- ‘जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी की पूजा दशमी को उत्तर पूर्व दिशा में अपराह्न में होनी चाहिए। उस दिन कल्याण एवं विजय के लिए अपराजिता पूजा होनी चाहिए।
  • यह द्रष्टव्य है कि विजयादशमी का उचित काल है, अपराह्न, प्रदोष केवल गौण काल है। यदि दशमी दो दिन तक चली गयी हो तो प्रथम (नवमी से युक्त) अवीकृत होनी चाहिए। यदि दशमी प्रदोष काल में (किंतु अपराह्न में नहीं) दो दिन तक विस्तृत हो तो एकादशी से संयुक्त दशमी स्वीक्रत होती है। जन्माष्टमी में जिस प्रकार रोहिणी मान्य नहीं है, उसी प्रकार यहाँ श्रवण निर्णीत नहीं है। यदि दोनों दिन अपराह्न में दशमी ना अवस्थित हो तो नवमी से संयुक्त दशमी मान ली जाती है, किंतु ऐसी दशा में जब दूसरे दिन श्रवण नक्षत्र हो तो एकादशी से संयुक्त दशमी मान्य होती है। ये निर्णय, निर्णय सिंधु के हैं। अन्य विवरण और मतभेद [13]भी शास्त्रों में मिलते हैं।

 

शुभ तिथि
प्रमुख कृत्यविजयादशमी वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं – चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की दशमी और कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा। इसीलिए भारतवर्ष में बच्चे इस दिन अक्षरारम्भ करते हैं, इसी दिन लोग नया कार्य आरम्भ करते हैं, भले ही चंद्र आदि ज्योतिष के अनुसार ठीक से व्यवस्थित ना हों, इसी दिन श्रवण नक्षत्र में राजा शत्रु पर आक्रमण करते हैं, और विजय और शांति के लिए इसे शुभ मानते हैं।

इस शुभ दिन के प्रमुख कृत्य हैं- अपराजिता पूजन, शमी पूजन, सीमोल्लंघन (अपने राज्य या ग्राम की सीमा को लाँघना), घर को पुन: लौट आना एवं घर की नारियों द्वारा अपने समक्ष दीप घुमवाना, नये वस्त्रों एवं आभूषणों को धारण करना, राजाओं के द्वारा घोड़ों, हाथियों एवं सैनिकों का नीराजन तथा परिक्रमणा करना। दशहरा या विजयादशमी सभी जातियों के लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण दिन है, किंतु राजाओं, सामंतों एवं क्षत्रियों के लिए यह विशेष रूप से शुभ दिन है।

  • धर्मसिंधुमें अपराजिता की पूजन की विधि संक्षेप में इस प्रकार है‌- “अपराह्न में गाँव के उत्तर पूर्व जाना चाहिए, एक स्वच्छ स्थल पर गोबर से लीप देना चाहिए, चंदन से आठ कोणों का एक चित्र खींच देना चाहिए, संकल्प करना चहिए – “मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्ध्‌यर्थमपराजितापूजनं करिष्ये; राजा के लिए – ” मम सकुटुम्बस्य यात्रायां विजयसिद्ध्‌यर्थमपराजितापूजनं करिष्ये”। इसके उपरांत उस चित्र (आकृति) के बीच में अपराजिता का आवाहन करना चाहिए और इसी प्रकार उसके दाहिने एवं बायें जया एवं विजया का आवाहन करना चहिए और ‘साथ ही क्रियाशक्ति को नमस्कार’ एवं ‘उमा को नमस्कार’ कहना चाहिए। इसके उपरांत “अपराजितायै नम:, जयायै नम:, विजयायै नम:, मंत्रों के साथ अपराजिता, जया, विजया की पूजा 16 उपचारों के साथ करनी चाहिए और यह प्रार्थना करनी चाहिए, ‘हे देवी, यथाशक्ति जो पूजा मैंने अपनी रक्षा के लिए की है, उसे स्वीकर कर आप अपने स्थान को जा सकती हैं। राजा के लिए इसमें कुछ अंतर है। राजा को विजय के लिए ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए – ‘वह अपाराजिता जिसने कंठहार पहन रखा है, जिसने चमकदार सोने की मेखला (करधनी) पहन रखी है, जो अच्छा करने की इच्छा रखती है, मुझे विजय दे,’ इसके उपरांत उसे उपर्युक्त प्रार्थना करके विसर्जन करना चाहिए। तब सबको गाँव के बाहर उत्तर पूर्व में उगे शमी वृक्ष की ओर जाना चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए। शमी की पूजा के पूर्व या या उपरांत लोगों को सीमोल्लंघन करना चाहिए। कुछ लोगों के मत से विजयादशमी के अवसर पर राम और सीता की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि उसी दिन राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी। राजा के द्वारा की जाने वाली पूजा का विस्तार से वर्णन हेमाद्रि,तिथितत्त्व में वर्णित है। निर्णय सिंधु एवं धर्मसिंधु में शमी पूजन के कुछ विस्तार मिलते हैं। यदि शमी वृक्ष ना हो तो अश्मंतक वृक्ष की पूजा की जानी चाहिए।

पौराणिक मान्यताएँ

इस अवसर पर कहीं कहीं भैंसे या बकरे की बलि दी जाती है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व देशी राज्यों में, यथा बड़ोदा, मैसूर आदि रियासतों में विजयादशमी के अवसर पर दरबार लगते थे और हौदों से युक्त हाथी दौड़ते तथा उछ्लकूद करते हुए घोड़ों की सवारियाँ राजधानी की सड़कों पर निकलती थीं और जुलूस निकाला जाता था। प्राचीन एवं मध्य काल में घोड़ों, हाथियों, सैनिकों एवं स्वयं का नीराजन उत्सव राजा लोग करते थे।

  • कालिदासने वर्णन किया है कि जब शरद ऋतु का आगमन होता था तो रघु ‘वाजिनीराजना’ नामक शांति कृत्य करते थे।
  • वराहने वृहत्संहिता  में अश्वों, हाथियों एवं मानवों के शुद्धियुक्त कृत्य का वर्णन विस्तार से किया है।
  • निर्णयसिंधु ने सेना के नीराजन के समय मंत्रों का उल्लेख यूँ किया है‌- ‘हे सब पर शासन करने वाली देवी, मेरी वह सेना, जो चार भागों (हस्ती, रथ, अश्व एवं पदाति) में विभाजित है, शत्रुविहीन हो जाए और आपके अनुग्रह से मुझे सभी स्थानों पर विजय प्राप्त हो।’ *तिथितत्त्व में ऐसी व्यवस्था है कि राजा को अपनी सेना को शक्ति प्रदान करने के लिए नीराजन करके जल या गोशाला के समीप खंजन को देखना चाहिए और उसे निम्न मन्त्र से सम्बोधित करना चाहिए, “खंजन पक्षी, तुम इस पृथ्वी पर आये हो, तुम्हारा गला काला एवं शुभ है, तुम सभी इच्छाओं को देने वाले हो, तुम्हें नमस्कार है।
  • तिथितत्त्व ने खंजन के देखे जाने आदि के बारे में प्रकाश डाला है।
  • वृहत्संहिता ने खंजन के दिखाई पड़्ने तथा किस दिशा में कब उसका दर्शन हुआ आदि के विषय में घटित होने वाली घटनाओं का उल्लेख किया है।
  • मनुस्मृतिएवं याज्ञवल्क्य स्मृति ने खंजन को उन पक्षियों में परिगणित किया है जिन्हें नहीं खाना चाहिए

विजयादशमी के दस सूत्र

  1. दस इन्द्रियों पर विजय का पर्व है।
  2. असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है।
  3. बहिर्मुखता पर अंतर्मुखता की विजय का पर्व है।
  4. अन्याय पर न्याय की विजय का पर्व है।
  5. दुराचार पर सदाचार की विजय का पर्व है।
  6. तमोगुण पर दैवीगुण की विजय का पर्व है।
  7. दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की विजय का पर्व है।
  8. भोग पर योग की विजय का पर्व है।
  9. असुरत्व पर देवत्व की विजय का पर्व है।
  10. जीवत्व पर शिवत्व की विजय का पर्व है।

वनस्पति पूजन

विजयदशमी पर दो विशेष प्रकार की वनस्पतियों के पूजन का महत्त्व है-

  • एक है शमी वृक्ष, जिसका पूजन रावण दहन के बाद करके इसकी पत्तियों को स्वर्ण पत्तियों के रूप में एक-दूसरे को ससम्मान प्रदान किया जाता है। इस परंपरा में विजय उल्लास पर्व की कामना के साथ समृद्धि की कामना करते हैं।
  • दूसरा है अपराजिता (विष्णु-क्रांता)। यह पौधा अपने नाम के अनुरूप ही है। यह विष्णु को प्रिय है और प्रत्येक परिस्थिति में सहायक बनकर विजय प्रदान करने वाला है।नीले रंगके पुष्प का यह पौधा भारत में सुलभता से उपलब्ध है। घरों में समृद्धि के लिए तुलसी की भाँति इसकी नियमित सेवा की जाती है

मेला

दशहरा पर्व को मनाने के लिए जगह जगह बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। यहाँ लोग अपने परिवार, दोस्तों के साथ आते हैं और खुले आसमान के नीचे मेले का पूरा आनंद लेते हैं। मेले में तरह तरह की वस्तुएँ, चूड़ियों से लेकर खिलौने और कपड़े बेचे जाते हैं। इसके साथ ही मेले में व्यंजनों की भी भरमार रहती है।

रामलीला

दशहरा उत्सव में रामलीला भी महत्त्वपूर्ण है। रामलीला में राम, सीता और लक्ष्मण की जीवन का वृत्तांत का वर्णन किया जाता है। रामलीला नाटक का मंचन देश के विभिन्न क्षेत्रों में होता है। यह देश में अलग अलग तरीक़े से मनाया जाता है।बंगाल और मध्य भारत के अलावा दशहरा पर्व देश के अन्य राज्यों में क्षेत्रीय विषमता के बावजूद एक समान उत्साह और शौक़ से मनाया जाता है। उत्तरी भारत में रामलीला के उत्सव दस दिनों तक चलते रहते हैं और आश्विन माह की दशमी को समाप्त होते हैं, जिस दिन रावण एवं उसके साथियों की आकृति जलायी जाती है। इसके अतिरिक्त इस अवसर पर और भी कई प्रकार के कृत्य होते हैं, यथा हथियारों की पूजा, दशहरा या विजयादशमी से सम्बंधित वृत्तियों के औज़ारों या यंत्रों की पूजा।

नवदुर्गा

शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्री रामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्रतट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। तभी से असत्य पर सत्य, अधर्म पर धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाता है। आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं। नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। नवदुर्गा और दस महाविधाओं में काली ही प्रथम प्रमुख हैं। भगवान शिव की शक्तियों में उग्र और सौम्य, दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दस महाविधाएँ अनंत सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दसवें स्थान पर कमला वैष्णवी शक्ति हैं, जो प्राकृतिक संपत्तियों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी हैं। देवता, मानव, दानव सभी इनकी कृपा चाहते हैं, इसलिए आगम-निगम दोनों में इनकी उपासना समान रूप से वर्णित है। सभी देवता, राक्षस, मनुष्य, गंधर्व इनकी कृपा के लिए उपासना रत रहते हैं।

सावधानियाँ

  • सावधान और सजग रहें। असावधानी और लापरवाही से मनुष्य बहुत कुछ खो बैठता है। विजयादशमी और दीपावलीके आगमन पर इस त्योहार का आनंद, ख़ुशी और उत्साह बनाये रखने के लिए सावधानीपूर्वक रहें।
  • पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें। उचित दूरी से पटाखे चलाएँ।
  • मिठाइयों और पकवानों की शुद्धता, पवित्रता का ध्यान रखें ।
  • भारतीय संस्कृतिके अनुसार आदर्शों व सादगी से मनायें। पाश्चात्य जगत का अंधानुकरण ना करें।
  • पटाखे घर से दूर चलायें और आस-पास के लोगों की असुविधा के प्रति सजग रहें।
  • स्वच्छ्ता और पर्यावरण का ध्यान रखें।
  • पटाखों से बच्चों को उचित दूरी बनाये रखने और सावधानियों को प्रयोग करने का सहज ज्ञान दें।
[Wish4Me] To English

vijayaadashamee / dashaharaa

aashvin shukl dashamee ko badee dhoomadhaam se manaayaa jaataa hai. Yah bhaarat kaa ‘raaṣṭreey tyohaar’ hai. Raamaleelaa men jagah–jagah raavaṇa vadh kaa pradarshan hotaa hai. Kṣatriyon ke yahaan shastr kee poojaa hotee hai. Brajake mandiron men is din visheṣ darshan hote hain. Is din neelaknṭh kaa darshan bahut shubh maanaa jaataa hai. Yah tyohaar kṣatriyon kaa maanaa jaataa hai. Isamen aparaajitaa devee kee poojaa hotee hai. Yah poojan bhee sarvasukh dene vaalaa hai. Dashaharaa yaa vijayaa dashameenavaraatri ke baad dasaven din manaayaa jaataa hai. Is din raam ne raavaṇa kaa vadh kiyaa thaa. Raavaṇa raam kee patnee seetaa kaa apaharaṇa kar lnkaa le gayaa thaa. Bhagavaan raam yuddh kee devee maan durgaa ke bhakt the, unhonne yuddh ke dauraan pahale nau dinon tak maan durgaa kee poojaa kee aur dasaven din duṣṭ raavaṇa kaa vadh kiyaa. Isake baad raam ne bhaa_ii lakṣmaṇa, bhakt hanumaan, aur bndaron kee senaa ke saath ek badaa yuddh ladkar seetaa ko chhudaayaa. Isalie vijayaadashamee ek bahut hee mahattvapoorṇa din hai. Is din raavaṇa, usake bhaa_ii kumbhakarṇa aur putr meghanaad ke putale khulee jagah men jalaa_e jaate hain. Kalaakaar raam, seetaa aur lakṣmaṇa ke roop dhaaraṇa karate hain aur aag ke teer se in putalon ko maarate hain jo paṭaakhon se bhare hote hain. Putale men aag lagate hee vah dhoo dhoo kar jalane lagataa hai aur inamen lage paṭaakhe faṭane lagate hain aur jisase inakaa ant ho jaataa hai. Yah tyohaar buraa_ii par achchhaa_ii kee vijay kaa prateek hai. Dashaharaa utsav kee utpatti

dashaharaa utsav kee utpatti ke viṣay men ka_ii kalpanaayen kee gayee hain. Bhaarat ke katipay bhaagon men naye annon kee havi dene, dvaar par dhaan kee haree evn anapakee baaliyon ko ṭaangane tathaa gehoon aadi ko kaanon, mastak yaa pagadee par rakhane ke krity hote hain. Atah kuchh logon kaa mat hai ki yah kriṣi kaa utsav hai. Kuchh logon ke mat se yah raṇaayaatraa kaa dyotak hai, kyonki dashaharaa ke samay varṣaa samaapt ho jaatee hai, nadiyon kee baaḍhx tham jaatee hai, dhaan aadi koṣṭhaagaar men rakhe jaane vaale ho jaate hain. Sambhavatah yah utsav isee doosare mat se sambndhit hai. Bhaarat ke atirikt any deshon men bhee raajaa_on ke yuddh prayaaṇa ke lie yahee rritunishchit thee. Shamee poojaa bhee praacheen hai. Vaidik yagyon ke lie shamee vrikṣ men uge ashvatth (peepal) kee do ṭahaniyon (araṇaiyon) se agni utpann kee jaatee thee. Agni shakti evn saahas kee dyotak hai, shamee kee lakadee ke kunde agni utpatti men sahaayak hote hain. Jahaan agni evn shamee kee pavitrataa evn upayogitaa kee or mntrasikt snket hain. Is utsav kaa sambndh navaraatr se bhee hai kyonki isamen mahiṣaasur ke virodh men devee ke saahasapoorṇa krityon kaa bhee ullekh hotaa hai aur navaraatr ke uparaant hee yah utsav hotaa hai. Dashaharaa yaa daseraa shabd ‘dash’ (das) evn ‘ahan‌‌’ se hee banaa hai.

Shaastron ke anusaar

aashvin shukl dashamee ko vijayadashamee kaa tyohaar badee dhoomadhaam se manaayaa jaataa hai. Isakaa vishad varṇaan hemaadri , sindhunirṇaay, puruṣaarthachintaamaṇai, vrataraaj, kaalatattvavivechan, dharmasindhu aadi men kiyaa gayaa hai. Kaalanirṇaay ke mat se shukl pakṣ kee jo tithi sooryoday ke samay upasthit rahatee hai, use krityon ke sampaadan ke lie uchit samajhanaa chaahie aur yahee baat kriṣṇa pakṣ kee un tithiyon ke viṣay men bhee paayee jaatee hai jo sooryaast ke samay upasthit rahatee hain. Hemaadrine viddhaa dashamee ke viṣay men do niyam pratipaadit kiye hain-
vah tithi, jisamen shravaṇa nakṣatrapaayaa jaa_e, sveekaary hai. Vah dashamee, jo navameese yukt ho. Kintu any nibndhon men tithi sambndhee bahut se jaṭil vivechan upasthit kiye hain. Yadi dashamee navamee tathaa ekaadashee se snyukt ho to navamee sveekaary hai, yadi is par shravaṇa nakṣatr naa ho. Sknd puraaṇaamen aayaa hai- ‘jab dashamee navamee se snyukt ho to aparaajitaa devee kee poojaa dashamee ko uttar poorv dishaa men aparaahn men honee chaahie. Us din kalyaaṇa evn vijay ke lie aparaajitaa poojaa honee chaahie. Yah draṣṭavy hai ki vijayaadashamee kaa uchit kaal hai, aparaahn, pradoṣ keval gauṇa kaal hai. Yadi dashamee do din tak chalee gayee ho to pratham (navamee se yukt) aveekrit honee chaahie. Yadi dashamee pradoṣ kaal men (kintu aparaahn men naheen) do din tak vistrit ho to ekaadashee se snyukt dashamee sveekrat hotee hai. Janmaaṣṭamee men jis prakaar rohiṇaee maany naheen hai, usee prakaar yahaan shravaṇa nirṇaeet naheen hai. Yadi donon din aparaahn men dashamee naa avasthit ho to navamee se snyukt dashamee maan lee jaatee hai, kintu aisee dashaa men jab doosare din shravaṇa nakṣatr ho to ekaadashee se snyukt dashamee maany hotee hai. Ye nirṇaay, nirṇaay sindhu ke hain. Any vivaraṇa aur matabhed [13]bhee shaastron men milate hain.

Shubh tithi
pramukh krityavijayaadashamee varṣ kee teen atynt shubh tithiyon men se ek hai, any do hain – chaitr maah kee shukl pakṣ kee dashamee aur kaartik maah kee shukl pakṣ kee pratipadaa. Iseelie bhaaratavarṣ men bachche is din akṣaraarambh karate hain, isee din log nayaa kaary aarambh karate hain, bhale hee chndr aadi jyotiṣ ke anusaar ṭheek se vyavasthit naa hon, isee din shravaṇa nakṣatr men raajaa shatru par aakramaṇa karate hain, aur vijay aur shaanti ke lie ise shubh maanate hain. Is shubh din ke pramukh krity hain- aparaajitaa poojan, shamee poojan, seemollnghan (apane raajy yaa graam kee seemaa ko laanghanaa), ghar ko punah lauṭ aanaa evn ghar kee naariyon dvaaraa apane samakṣ deep ghumavaanaa, naye vastron evn aabhooṣaṇaon ko dhaaraṇa karanaa, raajaa_on ke dvaaraa ghodon, haathiyon evn sainikon kaa neeraajan tathaa parikramaṇaa karanaa. Dashaharaa yaa vijayaadashamee sabhee jaatiyon ke logon ke lie mahattvapoorṇa din hai, kintu raajaa_on, saamnton evn kṣatriyon ke lie yah visheṣ roop se shubh din hai. Dharmasindhumen aparaajitaa kee poojan kee vidhi snkṣep men is prakaar hai‌- “aparaahn men gaanv ke uttar poorv jaanaa chaahie, ek svachchh sthal par gobar se leep denaa chaahie, chndan se aaṭh koṇaon kaa ek chitr kheench denaa chaahie, snkalp karanaa chahie – “mam sakuṭumbasy kṣemasiddh‌yarthamaparaajitaapoojann kariṣye; raajaa ke lie – ” mam sakuṭumbasy yaatraayaan vijayasiddh‌yarthamaparaajitaapoojann kariṣye”. Isake uparaant us chitr (aakriti) ke beech men aparaajitaa kaa aavaahan karanaa chaahie aur isee prakaar usake daahine evn baayen jayaa evn vijayaa kaa aavaahan karanaa chahie aur ‘saath hee kriyaashakti ko namaskaar’ evn ‘umaa ko namaskaar’ kahanaa chaahie. Isake uparaant “aparaajitaayai namah, jayaayai namah, vijayaayai namah, mntron ke saath aparaajitaa, jayaa, vijayaa kee poojaa 16 upachaaron ke saath karanee chaahie aur yah praarthanaa karanee chaahie, ‘he devee, yathaashakti jo poojaa mainne apanee rakṣaa ke lie kee hai, use sveekar kar aap apane sthaan ko jaa sakatee hain. Raajaa ke lie isamen kuchh antar hai. Raajaa ko vijay ke lie aisee praarthanaa karanee chaahie – ‘vah apaaraajitaa jisane knṭhahaar pahan rakhaa hai, jisane chamakadaar sone kee mekhalaa (karadhanee) pahan rakhee hai, jo achchhaa karane kee ichchhaa rakhatee hai, mujhe vijay de,’ isake uparaant use uparyukt praarthanaa karake visarjan karanaa chaahie. Tab sabako gaanv ke baahar uttar poorv men uge shamee vrikṣ kee or jaanaa chaahie aur usakee poojaa karanee chaahie. Shamee kee poojaa ke poorv yaa yaa uparaant logon ko seemollnghan karanaa chaahie. Kuchh logon ke mat se vijayaadashamee ke avasar par raam aur seetaa kee poojaa karanee chaahie, kyonki usee din raam ne lnkaa par vijay praapt kee thee. Raajaa ke dvaaraa kee jaane vaalee poojaa kaa vistaar se varṇaan hemaadri,tithitattv men varṇait hai. Nirṇaay sindhu evn dharmasindhu men shamee poojan ke kuchh vistaar milate hain. Yadi shamee vrikṣ naa ho to ashmntak vrikṣ kee poojaa kee jaanee chaahie.

Pauraaṇaik maanyataa

is avasar par kaheen kaheen bhainse yaa bakare kee bali dee jaatee hai. Bhaarat men svatntrataa praapti ke poorv deshee raajyon men, yathaa badodaa, maisoor aadi riyaasaton men vijayaadashamee ke avasar par darabaar lagate the aur haudon se yukt haathee daudte tathaa uchhlakood karate hue ghodon kee savaariyaan raajadhaanee kee sadkon par nikalatee theen aur juloos nikaalaa jaataa thaa. Praacheen evn madhy kaal men ghodon, haathiyon, sainikon evn svayn kaa neeraajan utsav raajaa log karate the. Kaalidaasane varṇaan kiyaa hai ki jab sharad rritu kaa aagaman hotaa thaa to raghu ‘vaajineeraajanaa’ naamak shaanti krity karate the. Varaahane vrihatsnhitaa men ashvon, haathiyon evn maanavon ke shuddhiyukt krity kaa varṇaan vistaar se kiyaa hai. Nirṇaayasindhu ne senaa ke neeraajan ke samay mntron kaa ullekh yoon kiyaa hai‌- ‘he sab par shaasan karane vaalee devee, meree vah senaa, jo chaar bhaagon (hastee, rath, ashv evn padaati) men vibhaajit hai, shatruviheen ho jaa_e aur aapake anugrah se mujhe sabhee sthaanon par vijay praapt ho.’ *tithitattv men aisee vyavasthaa hai ki raajaa ko apanee senaa ko shakti pradaan karane ke lie neeraajan karake jal yaa goshaalaa ke sameep khnjan ko dekhanaa chaahie aur use nimn mantr se sambodhit karanaa chaahie, “khnjan pakṣee, tum is prithvee par aaye ho, tumhaaraa galaa kaalaa evn shubh hai, tum sabhee ichchhaa_on ko dene vaale ho, tumhen namaskaar hai. Tithitattv ne khnjan ke dekhe jaane aadi ke baare men prakaash ḍaalaa hai. Vrihatsnhitaa ne khnjan ke dikhaa_ii padne tathaa kis dishaa men kab usakaa darshan huaa aadi ke viṣay men ghaṭit hone vaalee ghaṭanaa_on kaa ullekh kiyaa hai. Manusmritievn yaagyavalky smriti ne khnjan ko un pakṣiyon men parigaṇait kiyaa hai jinhen naheen khaanaa chaahie
vijayaadashamee ke das sootr

das indriyon par vijay kaa parv hai. Asaty par saty kee vijay kaa parv hai. Bahirmukhataa par antarmukhataa kee vijay kaa parv hai. Anyaay par nyaay kee vijay kaa parv hai. Duraachaar par sadaachaar kee vijay kaa parv hai. Tamoguṇa par daiveeguṇa kee vijay kaa parv hai. Duṣkarmon par satkarmon kee vijay kaa parv hai. Bhog par yog kee vijay kaa parv hai. Asuratv par devatv kee vijay kaa parv hai. Jeevatv par shivatv kee vijay kaa parv hai. Vanaspati poojan

vijayadashamee par do visheṣ prakaar kee vanaspatiyon ke poojan kaa mahattv hai-

ek hai shamee vrikṣ, jisakaa poojan raavaṇa dahan ke baad karake isakee pattiyon ko svarṇa pattiyon ke roop men ek-doosare ko sasammaan pradaan kiyaa jaataa hai. Is parnparaa men vijay ullaas parv kee kaamanaa ke saath samriddhi kee kaamanaa karate hain. Doosaraa hai aparaajitaa (viṣṇau-kraantaa). Yah paudhaa apane naam ke anuroop hee hai. Yah viṣṇau ko priy hai aur pratyek paristhiti men sahaayak banakar vijay pradaan karane vaalaa hai. Neele rngake puṣp kaa yah paudhaa bhaarat men sulabhataa se upalabdh hai. Gharon men samriddhi ke lie tulasee kee bhaanti isakee niyamit sevaa kee jaatee hai
melaa

dashaharaa parv ko manaane ke lie jagah jagah bade melon kaa aayojan kiyaa jaataa hai. Yahaan log apane parivaar, doston ke saath aate hain aur khule aasamaan ke neeche mele kaa pooraa aannd lete hain. Mele men tarah tarah kee vastuen, choodiyon se lekar khilaune aur kapade beche jaate hain. Isake saath hee mele men vynjanon kee bhee bharamaar rahatee hai. Raamaleelaa

dashaharaa utsav men raamaleelaa bhee mahattvapoorṇa hai. Raamaleelaa men raam, seetaa aur lakṣmaṇa kee jeevan kaa vrittaant kaa varṇaan kiyaa jaataa hai. Raamaleelaa naaṭak kaa mnchan desh ke vibhinn kṣetron men hotaa hai. Yah desh men alag alag tareeqae se manaayaa jaataa hai. Bngaal aur madhy bhaarat ke alaavaa dashaharaa parv desh ke any raajyon men kṣetreey viṣamataa ke baavajood ek samaan utsaah aur shauqa se manaayaa jaataa hai. Uttaree bhaarat men raamaleelaa ke utsav das dinon tak chalate rahate hain aur aashvin maah kee dashamee ko samaapt hote hain, jis din raavaṇa evn usake saathiyon kee aakriti jalaayee jaatee hai. Isake atirikt is avasar par aur bhee ka_ii prakaar ke krity hote hain, yathaa hathiyaaron kee poojaa, dashaharaa yaa vijayaadashamee se sambndhit vrittiyon ke auzaaron yaa yntron kee poojaa. Navadurgaa

shakti kee upaasanaa kaa parv shaaradey navaraatr pratipadaa se navamee tak nishchit nau tithi, nau nakṣatr, nau shaktiyon kee navadhaa bhakti ke saath sanaatan kaal se manaayaa jaa rahaa hai. Sarvapratham shree raamachndrajee ne is shaaradeey navaraatri poojaa kaa praarnbh samudrataṭ par kiyaa thaa aur usake baad dasaven din lnkaa vijay ke lie prasthaan kiyaa aur vijay praapt kee. Tabhee se asaty par saty, adharm par dharm kee jeet kaa parv dashaharaa manaayaa jaataa hai. Aadishakti ke har roop kee navaraatr ke nau dinon men alag-alag poojaa kee jaatee hai. Maan durgaa kee nauveen shakti kaa naam siddhidaatree hai. Ye sabhee prakaar kee siddhiyaan dene vaalee hain. Inakaa vaahan sinh hai aur kamal puṣp par hee aaseen hotee hain. Navaraatri ke nauven din inakee upaasanaa kee jaatee hai. Navadurgaa aur das mahaavidhaa_on men kaalee hee pratham pramukh hain. Bhagavaan shiv kee shaktiyon men ugr aur saumy, do roopon men anek roop dhaaraṇa karane vaalee das mahaavidhaa_en annt siddhiyaan pradaan karane men samarth hain. Dasaven sthaan par kamalaa vaiṣṇaavee shakti hain, jo praakritik snpattiyon kee adhiṣṭhaatree devee lakṣmee hain. Devataa, maanav, daanav sabhee inakee kripaa chaahate hain, isalie aagam-nigam donon men inakee upaasanaa samaan roop se varṇait hai. Sabhee devataa, raakṣas, manuṣy, gndharv inakee kripaa ke lie upaasanaa rat rahate hain. Saavadhaaniyaan

saavadhaan aur sajag rahen. Asaavadhaanee aur laaparavaahee se manuṣy bahut kuchh kho baiṭhataa hai. Vijayaadashamee aur deepaavaleeke aagaman par is tyohaar kaa aannd, khaushee aur utsaah banaaye rakhane ke lie saavadhaaneepoorvak rahen. Paṭaakhon ke saath khilavaad n karen. Uchit dooree se paṭaakhe chalaa_en. Miṭhaa_iyon aur pakavaanon kee shuddhataa, pavitrataa kaa dhyaan rakhen . Bhaarateey snskritike anusaar aadarshon v saadagee se manaayen. Paashchaaty jagat kaa andhaanukaraṇa naa karen. Paṭaakhe ghar se door chalaayen aur aas-paas ke logon kee asuvidhaa ke prati sajag rahen. Svachchhtaa aur paryaavaraṇa kaa dhyaan rakhen. Paṭaakhon se bachchon ko uchit dooree banaaye rakhane aur saavadhaaniyon ko prayog karane kaa sahaj gyaan den.

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