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विक्रम बेताल की कहानी: पत्नी किसकी!!

कई प्रयासों के बाद राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बेताल को पकड़ लिया। वह उसे जब योगी के पास ले जाने लगे, तो बेताल ने नई कहानी शुरू कर दी। बेताल ने नई कहानी सुनाते हुए कहा….

एक समय की बात है, धर्मपुर नाम के नगर में गंधर्वसेन नाम का युवक रहता था। गंधर्वसेन की कद-काठी बहुत आकर्षक थी। यही कारण था कि कई लड़कियां उससे विवाह करना चाहती थीं, लेकिन गंधर्वसेन को उनमें से एक भी लड़की पसंद नहीं थी। ब्राहमण पुत्र गंधर्वसेन जब अपने घोड़े पर सवार होकर नगर में निकलता था तो सारी लड़कियां उसे देखती रह जातीं। गंधर्वसेन किसी की तरफ नहीं देखता और तेज गति से नगर को पार करके रोजाना एक मंदिर की ओर निकल जाता था। यह मंदिर काली देवी का मंदिर था। गंधर्वसेन काली मां का बहुत बड़ा भक्त था। वो हर दिन मां काली की पूजा किया करता था।

एक दिन जब वो मंदिर से लौट रहा था तो उसने नदी के किनारे एक धोबी की लड़की को कपड़े धोते हुए देखा। वह लड़की गंधर्वसेन को बहुत सुन्दर लगी। गंधर्वसेन को उस लड़की से प्यार हो गया और वो दिन रात उसी के बारे में सोचने लगा। उसे लड़की से बात करने का कोई रास्ता नहीं सूझता। एक दिन उसने काली मां के मंदिर में पूजा करते हुए ये प्रतिज्ञा ली कि अगर वो लड़की उसकी हो गयी तो वो काली मां के चरणों में अपना शीश चढ़ा देगा। गंधर्वसेन खाना-पीना भूल चुका था, वो दिन रात उसी लड़की के बारे में सोचता रहता। इसका परिणाम ये हुआ कि गंधर्वसेन बीमार हो गया।

गंधर्वसेन की बीमारी की खबर सुनकर उसका सबसे अच्छा मित्र देवदत्त उससे मिलने आया। अपने परम मित्र को बिस्तर पर पड़ा देख देवदत्त ने उसकी उदासी का कारण पूछा। गंधर्वसेन ने देवदत्त को अपना हाल सुनाया और बोला कि उस लड़की से अगर मेरा विवाह नहीं हुआ तो मैं मर जाऊंगा। देवदत्त अपने मित्र से बहुत प्यार करता था, इसलिए उसने लड़की को ढूंढने की ठानी। देवदत्त उस लड़की को खोजने में सफल हुआ। देवदत्त ने उस लड़की के पिता से कहा कि अपनी बेटी की शादी गंधर्वसेन से कर दें। लड़की के पिता ने सारी स्थिति का जायजा लिया और अपनी बेटी का विवाह गंधर्वसेन से करा दिया।

शादी को पांच दिन बीत गए और गंधर्वसेन उस प्रतिज्ञा को भूल चुका था, जो उसने काली मंदिर में ली थी। एक दिन सपने में गंधर्वसेन को अपनी छाया दिखाई देती है। उसकी छाया उसे वो प्रतिज्ञा याद दिलाती है और कहती है कि अगर तुम ये प्रतिज्ञा पूरी नहीं करोगे तो स्वार्थी कहे जाओगे। अगले दिन गंधर्वसेन को अपनी गलती का अहसास होता है और वो काली मंदिर में अपनी बलि देने के लिए तैयार हो जाता है। वो अपने मित्र देवदत्त को बुलाता है और उससे कहता है कि मैं, तुम और तुम्हारी भाभी मंदिर चलते हैं। मैं मदिर में अंदर पूजा करूंगा और तुम बाहर अपनी भाभी का ध्यान रखना।

देवदत्त मंदिर चलने को तैयार हो जाता है। दोनों दोस्त उस लड़की के साथ मंदिर पहुंचते हैं। गंधर्वसेन मंदिर के अंदर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने चला जाता है। देवदत्त और गंधर्वसेन की पत्नी बाहर उसकी प्रतीक्षा करते हैं। बहुत समय तक जब गंधर्वसेन बाहर नहीं आता तो देवदत्त मंदिर के अंदर चला जाता है। देवदत्त अंदर जाकर देखता है कि गंधर्वसेन ने अपनी तलवार से अपना सिर काटकर काली मां को बलि चढ़ा दिया है। यह देखकर देवदत्त घबरा जाता है। देवदत्त सोचता है कि कोई भी व्यक्ति यह यकीन नहीं करेगा कि गंधर्वसेन ने अपनी हत्या खुद की है। सब ये सोचेंगे कि देवदत्त ने अपने मित्र को मारा है, ताकि वो उसकी पत्नी से विवाह कर सके।

इस आरोप से बचने के लिए देवदत्त ने गंधर्वसेन की तलवार से अपना सिर भी काट लिया।
थोड़े समय बाद गंधर्वसेन की पत्नी, अपने पति और उसके मित्र देवदत्त को खोजने मंदिर आयी। वहां दोनों मित्रों की लाश देखकर वो डर गयी। उसने सोचा कि लोग उन दोनों की ह्त्या का आरोप मेरे ऊपर लगाएंगे, इस लांछन से अच्छा है कि मैं भी मर जाऊं। जैसे ही उस लड़की ने अपना सिर काटने के लिए तलवार उठायी वैसे ही वहां मां काली प्रकट हुईं।

मां काली ने कहा, “पुत्री मैं तुमसे प्रसन्न हूं बोलो क्या वरदान मांगती हो।” लड़की ने कहा, “आप इन दोनों को जीवित कर दीजिए।” काली मां बोली, “तुम इन दोनों के सिर इनके धड़ों पर रखोगी तो ये जीवित हो जाएंगे।” लड़की ने ऐसा ही किया, लेकिन उससे सिर रखने में गलती हो गयी। उसने गंधर्वसेन का सिर देवदत्त और देवदत्त का सिर गंधर्वसेन के धड़ पर लगा दिया। दोनों मित्र जीवित होकर उस लड़की के लिए लड़ने लगे।

इतनी कहानी सुनाकर बेताल ने विक्रमादित्य से कहा, “राजन अब तुम ही बताओ कि उस लड़की का पति कौन है।” विक्रमादित्य को जवाब मालूम था। अगर वो चुप रहते तो बेताल उनका सिर धड़ से अलग कर देता, इसलिए विक्रमादित्य बोले, “व्यक्ति की पहचान उसके चेहरे से होती है, इसलिए देवदत्त उस लड़की का पति होगा, क्योंकि उसके धड़ पर गंधर्वसेन का मस्तिष्क वाला हिस्सा लगा है।” बेताल ने कहा, “इस बार भी तुमने सही जवाब दिया है, इसलिए मुझे फिर से उड़ जाना पड़ेगा।” इतना बोलकर बेताल फिर से घने जंगल की ओर उड़ गया। राजा विक्रमादित्य फिर से बेताल को ढूंढने के लिए उसके पीछे चल दिए।

कहानी से सीख:

इंसान जो भी करता है अपने मस्तिष्क से ही करता है, इसलिए उसकी पहचान मस्तिष्क से ही होती है।

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