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विनय और समर्पण

ऋषि-मुनियों, संत-महात्माओं तथा भक्तों ने भगवान् से अपने अवगुणों को अनदेखा कर शरण में लेने की प्रार्थना की है। संत कवि सूरदास ‘प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो’ पंक्तियों में विनयशीलता का परिचय देते हुए शरणागत करने की प्रार्थना करते हैं, तो तुलसीदास रामजी से पूछते हैं, ‘काहे को हरि मोहि बिसारो

संत पुरंदरदास खुद को दुर्गुणों का दास बताते हुए भगवान् से कृतज्ञता व्यक्त कर कहते हैं-‘कूट-कूटकर मुझमें भरे हुए हैं दुर्गुण, नहीं किया पर तुमने मेरा छिद्रान्वेषण।

गुरु नानकदेवजी मात्र भगवान् श्रीरामजी को विपत्ति का साथी बताते हुए कहते हैं-‘संग सखा सभि तज गए, कोई न निबाहियो साथ, कहु नानक इह विपत्ति में, टेक एक रघुनाथ।’

रवींद्रनाथ ठाकुर गीतांजलि में प्रार्थना करते हैं, ‘भगवान् अपनी चरण धूलि के तल में मेरे शरीर को नत कर दो। मेरे समस्त अहंकार को अपने दिव्य नैनों के जल में डुबो दो। मैं चाहता हूँ चरम शांति, अपने प्राणों में तुम्हारी परम कांति। तुम मेरे हृदय कमल दल में वास कर जाओ।’

महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला निखिल वाणी में प्रभु से याचना करते हैं, दुरित दूर करो नाथ, अशरण हूँ गहो हाथ।’ अर्चना में वे कहते हैं, ‘जब तक शत मोहजाल, घेर रहे हैं कराल, जीवन के विपुल व्याल, मुक्त करो विश्वनाथ।’

निराला ब्रह्म से मिलने की गुहार लगाए हुए कहते हैं, ‘रूप के गुण गगन चढ़कर, मिलूँ तुमसे ब्रह्म, मुझको दो सदा सत्संग। सभी शास्त्रों में विनयशीलता और अहंकारशून्यता को भगवान् की भक्ति प्राप्त करने का साधन बताया गया है।

English Translation

Rishis-Munis, Saints-Mahatmas and devotees have prayed to the Lord to ignore their demerits and take shelter. Saint poet Surdas, while showing humility in the lines ‘Prabhu mere avagun chit na dharo’, prays to take refuge, then Tulsidas asks Ramji, ‘Kahe ko hari mohi bisaro.

Describing himself as a slave of bad qualities, Saint Purandardas expresses his gratitude to God and says- ‘The evils are filled in me by code, but you did not find my hole.’

Describing only Lord Shri Ram as the companion of adversity, Guru Nanak Devji says – ‘Sakha sakha sabhi taj gaye, no nibahiyo saath, kahu nanak eh calamity mein, tek ek raghunath’.

Rabindranath Tagore prays in Gitanjali, ‘Lord, don’t put my body in the dust of your feet. Submerge all my ego in the waters of your divine nanos. I want extreme peace, your ultimate radiance in my life. You reside in my heart lotus party.’

Mahakavi Suryakant Tripathi pleads to the Lord in a unique Nikhil voice, Do away with evil, I am asharan. ‘

Praying to meet the Nirala Brahm, he says, ‘The qualities of form ascend the sky, meet you Brahm, give me eternal satsang. In all the scriptures, modesty and egolessness are described as the means of attaining devotion to the Lord.

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