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बेल वृक्ष का महत्व क्या

एक बार माता पार्वती के पसीने की बूंद मंदराचल पर्वत पर गिर गई और उससे बेल का पेड़ निकल आया। माता पार्वती के पसीने से बेल के पेड़ का उद्भव हुआ। इसमें माता पार्वती के सभी रूप बसते हैं। वे पेड़ की जड़ में गिरिजा के स्वरूप में, इसके तनों में माहेश्वरी के स्वरूप में और शाखाओं में दक्षिणायनी व पत्तियों में पार्वती के रूप में रहती हैं,
फलों में कात्यायनी स्वरूप व फूलों में गौरी स्वरूप निवास करता है। इस सभी रूपों के अलावा, मां लक्ष्मी का रूप समस्त वृक्ष में निवास करता है। बेलपत्र में माता पार्वती का प्रतिबिंब होने के कारण इसे भगवान शिव पर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव पर बेल पत्र चढ़ाने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्त की मनोकामना पूर्ण करते हैं। जो व्यक्ति किसी तीर्थस्थान पर नहीं जा सकता है अगर वह श्रावण मास में बिल्व के पेड़ के मूल भाग की पूजा करके उसमें जल अर्पित करे तो उसे सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य मिलता है।

बेल वृक्ष (Aegle marmelos), जिसे बिल्व, श्रीफल या बेलपत्र के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक पवित्र माना जाने वाला पेड़ है। यह भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, और पाकिस्तान में पाया जाता है। बेल वृक्ष का फल, पत्ते, और जड़ें आयुर्वेदिक चिकित्सा में विभिन्न रोगों के उपचार के लिए उपयोग किए जाते हैं।

धार्मिक महत्व:

बेल वृक्ष को भगवान शिव को समर्पित माना जाता है। शिव पूजा में बेलपत्र का विशेष महत्व है। भक्त भगवान शिव की पूजा में त्रिपत्री बेलपत्र (तीन पत्तियों वाला) अर्पित करते हैं, जिसे शिव जी को बहुत प्रिय माना जाता है। यह मान्यता है कि बेलपत्र अर्पित करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों के पापों का नाश करते हैं।

आयुर्वेदिक उपयोग:

  • फल: बेल का फल पाचन संबंधी समस्याओं, जैसे कि दस्त, आंत्रशोथ, और इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) के उपचार में उपयोगी है।
  • पत्ते: इसके पत्तों का उपयोग बुखार, मधुमेह और अस्थमा के उपचार में किया जाता है।
  • जड़: बेल की जड़ का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में विभिन्न बीमारियों के लिए किया जाता है।


बेल वृक्ष का महत्व क्या है?

  1. बिल्व वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते।
  2. अगर किसी की शवयात्रा बिल्व वृक्ष की छाया से होकर गुजरे तो उसका मोक्ष हो जाता है।
  3. वायुमंडल में व्याप्त अशुद्धियों को सोखने की क्षमता सबसे ज्यादा बिल्व वृक्ष में होती है।
  4. 4, 5, 6 या 7 पत्तों वाले बिल्व पत्रक पाने वाला परम भाग्यशाली और शिव को अर्पण करने से अनंत गुना फल मिलता है।
  5. बेल वृक्ष को काटने से वंश का नाश होता है और बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि होती है।
  6. सुबह-शाम बेल वृक्ष के दर्शन मात्र से पापों का नाश होता है।
  7. बेल वृक्ष को सींचने से पितर तृप्त होते हैं।
  8. बेल वृक्ष और सफेद आक को जोड़े से लगाने पर अटूट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
  9. बेलपत्र और ताम्र धातु के एक विशेष प्रयोग से ऋषि मुनि स्वर्ण धातु का उत्पादन करते थे।
  10. जीवन में सिर्फ 1 बार और वह भी यदि भूल से भी शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ा दिया हो तो भी उसके सारे पाप मुक्त हो जाते हैं।
  11. बेल वृक्ष का रोपण, पोषण और संवर्द्धन करने से महादेव से साक्षात्कार करने का अवश्य लाभ मिलता है।

बेल वृक्ष की छाल और उसके अर्क का उपयोग भी विभिन्न रोगों के इलाज में किया जाता है। इसके फल को कच्चा या पका हुआ खाया जा सकता है, और इसका शर्बत गर्मियों में लोकप्रिय शीतल पेय के रूप में पिया जाता है।

इस प्रकार, बेल वृक्ष न केवल धार्मिक बल्कि आयुर्वेदिक महत्व रखता है, जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं।

क्या बेल का पेड़ घर में लगाना चाहिए?
घर पर बेलपत्र को पेड़ लगाना शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिस घर में बेलपत्र का वृक्ष होता है उस घर पर महादेव की विशेष कृपा बनी रहती है।

बेल के पेड़ में कौन से देवता रहते हैं?
मान्यता है कि बेल वृक्ष में भगवान शिव, माता पार्वती, लक्ष्मी जी समेत कई देवी-देवताओं का वास होता है.

बेल का पेड़ कितने वर्ष में फल देता है?
कलमी पौधों में 3 वर्ष में फलन प्रारंभ हो जाते हैं जबकि बीजू पौधों में 7-8 वर्षों में फल आता है। फलों की संख्या पौधों के आकार और रखरखाव पर निर्भर करती है। उपोष्ण क्षेत्रों में 8-10 साल का पौधा 50-80 कि. ग्रा./ पौधा उत्पादन देता है।

बेल वृक्ष की पूजा करने से क्या होता है?
बेल के वृक्ष की जड़ में महादेव जी का सांकेतिक निवास है. जिसको लिंग रूप कहते हैं जो मनुष्य बिल्व पेड की जड़ को गंध आदि से पूजता है वह शिव लोक को जाता है बिल्व की जड़ में दीपक जलाने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं.

बेलपत्र का पौधा कब और कहां लगाना चाहिए?
वास्तु शास्त्र के अनुसार मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए आपको उत्तर-दक्षिण दिशा में बेलपत्र लगाना चाहिए. बता दें कि बेलपत्र को लेकर भी कुछ नियम कानून हैं और ऐसा माना जाता है कि आप को अष्टमी,पूर्णिमा और अमावस्या के दिन कभी भी बेलपत्र नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि यह बहुत ही अशुभ माना जाता है.

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