घर पर ही रहना फिजाएं खराब है।
बाहर ना निकल पाओगे , इस चींख पुकार के दौर में।
जिस तरफ निगाह दौड़ाओगे , केवल मायूसी ही पाओगे।
आंसू चाह कर भी रोक ना पाओगे, ये तो खुद बखुद निकल जाएंगे।।
घर पर ही रहना फिजाएं खराब है।
जिन के बिना ना गुजरता था एक पल भी ,
आज उनसे ही मिलने को लाचार हैं।
वक़्त के इस दौर में कैसे जी पाओगे,
बिना अपनो के कैसे खुशी मनाओगे ?
अब चाहकर भी उन्हें ना छू न पास बुला पाओगे,
फिर गले उन्हें कैसे लगाओगे?
घर पर ही रहना फिजाएं खराब है।
पहले वक़्त ना था , आज वक़्त ही वक़्त है
पर अब वक़्त साथ ना गुज़ार पाओगे।
अपनी आंखों के समंदर में यूं ही खुद को डूबता हुआ पाओगे,
सूख जाएंगी आंखें जब, ना किसी कंधे पर अपना सर रख पाओगे।।
घर पर ही रहना फिजाएं खराब है।
ऐसा लगने लगा है कि अब अपनी आवाज़ खुदा तक भी ना पहुंचा पाओगे।
खोया है किस गुमान में,
अगर समझ न आई तो, ज्यादा दिन ना टिक पाओगे।
सबर रख ए बन्दे, दिन वो फिर लौट के आएगा।
वक़्त रहते ही समझ जा वरना पछताओगे।
चाहते हो अगर सुकून की ज़िंदगी, अब ये मान लो की बेबस है तू कायनात के सामने।।
घर पर ही रहना फिजाएं खराब है।
लिखूंगा न अब बर्बादियों की दास्तान।
थर्रा रही है जिंदगी और ना इसे थर्राऊंगा।
खिले गुल गुलशन में फिर, ये दुआ खुदा तक पहुंचाऊंगा।
फिजाएं खराब है इन्हे और ना खराब बनाएंगे।
घर पर ही रहना फिजाएं खराब हैं।।