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क्या है श्री कृष्ण का पूरा सच्च

ईसवीं सदी के प्रारंभ से अथवा उससे भी सैकड़ों वर्ष पहले से हमारे देश के अनेक प्रतिभाशाली एवं अनुभवी महर्षियों ने भगवान श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन किया है, किंतु आधुनिक विद्वानों को छोड़कर किसी को भी यह शंका नहीं हुई कि उनके अच्छे या बुरे, लौकिक अथवा दिव्य जितने भी कर्म प्रसिद्ध हैं वे सारे एक व्यक्तियों के द्वारा हुए थे । यह संभव है कि नरदेहधारी भगवान श्रीकृष्ण के प्रति जो हमारी अतिशय श्रद्धा और भक्ति है उससे अंधे होकर हमने कभी इस बात का विचार भी न किया हो कि गोकुल के गोपाल – कृष्ण दूसरे थे और पार्थ सारथि पाण्डवों के चतुर सखा श्रीकृष्ण दूसरे ही थे । जिस श्रीकृष्ण बालकपन में गोपियों के साथ स्वच्छंदरूप से विहार किया उसी श्रीकृष्ण ने भगवद् गीता का उच्च तत्वज्ञान का उपदेश दिया, यह बात आधुनिक विद्वानों की समझ में नहीं आती ।

हमारे सामने भगवान के तीन विभिन्न रूप उपस्थित होते हैं । पहले यादवपति श्रीकृष्ण पाण्डवों के सखा के रूप में उपस्थित होते हैं और महाभारत का ग्रंथ जिस रूप में आजकल उपलब्ध है उसके अंदर उन्हें भगवान विष्णु का अवतार ही मानते थे । हरिवंश में हमें भगवान का पौराणिक रूप देखने को मिलता है । इस रूप से उन्होंने गवाल बालों के साथ अपना बाल्यकाल व्यतीत किया और कंस को मारकर नाम प्राप्त किया और आगे चलकर यद्यपि उन्होंने राजमुकुट धारण नहीं किया । किंतु वे व्यवहार में यादवों के स्वामी बन गये एवं अपने कुल को जरासंध के आक्रामण से बचाकर द्वारका में जाकर राजा की भांति रहने लगे ।

तीसरी बार भगवान श्रीकृष्ण हमारे सामने विष्णु के अवतार के रूप में उपस्थित होते हैं । भगवद् गीता के श्रीकृष्ण अपने को भगवान विष्णु का अवतार बतलाते हैं । कोई भी बुद्धिमान पुरुष इस बात को स्वीकार नहीं करेगा कि महाभारत के चतुर श्रीकृष्ण अथवा पुराणों के नटखट श्रीकृष्म यही थे । इस अनुमान के आधार पर श्रीकृष्ण संबंधी उपलब्ध ग्रंथों और प्रमाणों की आलोचना कर ये विद्वान इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि हमारा यह अनुमान ठीक है । कम से कम इस बात का तो कोई पर्याप्त प्रमाण नहीं मिलता कि यह अनुमान झूठा है – और उनकी यह धारणा है कि जिन लोगों ने अभी तक इन तीनों रूपों को एक माना है वे कदाचित भ्रम में हैं ।

महाभारत में भगवान का सर्वप्रथम उल्लेख आदिपर्व में द्रौपदी – स्वयंवर के प्रसंग में मिलता है, जहां अन्य राजाओं की भांति वे भी स्वयंवर के देखने को पधारे थे । यहां भगवान के पूर्व चरित का कोई वर्णन न करके उनके विषय में यह कहा गया है कि वे एक प्रसिद्ध राजा थे । इसी प्रसंग में पहले – पहल भगवान श्रीकृष्ण का उल्लेख मिलने की बात मैंने इसलिए कही है कि इसके पूर्व दो एक जगह जो भगवान उल्लेख है, उसका महाभारत मुख्य कथानक अर्थात् कौरव पाण्डवों के आख्यान से कोई संबंध नहीं है ।

महाभारत में स्वयंवर के प्रसंग से लेकर अंत तक हमें समय समय पर बराबर श्रीकृष्ण के दर्शन होते हैं, जो स्वाभाविक ही है, क्योंकि भगवान पाण्डवों जीवन सखा और पथ प्रदर्शक थे । इससे यह सिद्ध होता है कि पुराणों में भगवान के जीवन का पूर्ण वृतांत हा और महाभारत में केवल उनका पाण्डवों के सखा और सहायक के रूप में ही वर्णन है । इसलिए महाभारत में स्वभावत: भगवान का पूरा श्रृंखलाबद्ध वृतांत नहीं दिया गया और जोड़ा गया । वास्तव में इन भिन्न भिन्न प्रसंगों ऐसा कोई महान वैषम्य नहीं है, जिसके कारण हम प्रभु को श्रीकृष्ण को एक की जगह अनेक मानें ।

जो श्रीकृष्ण बचपन में अपने सखाओं के साथ एक साधारण ग्वाले की भांति खेले थे, उन्हीं श्रीकृष्ण ने महाभारतरूपी नाटक में सूत्रधार का काम किया और उन्हीं श्रीकृष्ण ने श्रीमद् भगवद्गीता के उच्च तत्त्वज्ञान का उपदेश दिया ।

दूसरी बात जो श्रीकृष्ण की एकता को सिद्ध करती है, वह उनके द्वारकावासी होने का उल्लेख है । यह उल्लेख समस्त महाभारत में इतनी बार आया है कि इस बात पर किसी तरब विश्वास नहीं किया जा सकता कि किसी अर्वाचीन विद्वान ने महाभारत का संस्करण करते समय उसके अंदर पुराणों के आख्यानों का समावेश करने के उद्देश्य से हजारों बार द्वारका का नाम अपनी तरफ से दिया गया । अब लरही श्रीकृष्ण के भगवान विष्णु के अवतार होने की बात । इस विषय में महाभारत और पुराणों का एक मत है । अवश्य ही यह कहना कठिन है कि इस सिद्धांत का इन ग्रंथों में समावेश कब हुआ ।

ऊपर के विवेचना से हम यह कह सकते हैं कि महाभारत और पुराणों में वर्णित श्रीकृष्ण का वृतांत एक दूसरे का सहकारी एवं समर्थक है । अतएव हमें कतिपय आधुनिक समालोचकों की धारणा के अनुसार यह नहीं मानना चाहिए कि श्रीकृष्ण अनेक थे ।

ENGLISH  TRANSLATE

Since the beginning of the 21st century or even hundreds of years ago, many talented and experienced maharishis of our country have described the character of Lord Krishna, but no one, except modern scholars, has any doubt whether their good or bad, cosmic or All the celestial deeds are famous, they were done by one person. It is possible that blinded by our extreme reverence and devotion towards Naradehari, Lord Krishna, we would never have thought that Gopal-Krishna of Gokul was the other and Sri Krishna, the clever Sakthi of Partha Sarathi Pandavas. The modern Srikrishna who preached in the boyhood with gopis in a clean manner preached the higher philosophy of the Bhagavad Gita, this is not understood by modern scholars.

Three different forms of God are present in front of us. The first Yadavapati appears as the Sakha of Sri Krishna Pandavas and in the form of Mahabharata, which is available nowadays, he was considered as an incarnation of Lord Vishnu. In Harivansh we get to see the mythological form of God. In this way he spent his childhood with gawal hair and got the name by killing Kansa and later though he did not wear Rajmukut. But in practice he became the lord of the Yadavas and after saving his family from the aggression of Jarasandha, went to Dwarka and started living like a king.

For the third time Lord Krishna appears before us as an avatar of Vishnu. Sri Krishna of the Bhagavad Gita describes himself as an incarnation of Lord Vishnu. No wise man would accept that this was the clever Sri Krishna of the Mahabharata or the naughty Shri Krishna of the Puranas. On the basis of this conjecture, by criticizing the available texts and evidences related to Shri Krishna, these scholars have come to the conclusion that our conjecture is correct. At least there is no sufficient evidence to suggest that this conjecture is false – and their belief that those who have so far considered these three forms to be one is probably in confusion.

In the Mahabharata, the first mention of God is found in the context of Draupadi – Swayamvara in Adiparva, where like other kings, he too came to see Swayamvara. Here, without making any description of the former character of God, it has been said about him that he was a famous king. In the same context, I have said earlier that the mention of Lord Krishna was first mentioned, because the Lord mentioned in two places before it is not related to the story of Mahabharata, that is, the narrative of the Kaurava Pandavas.

In the Mahabharata, from the context of the swayamvara to the end, we have the vision of Shri Krishna from time to time, which is natural, because the Lord Pandavas were life-saving and pioneer. This proves that in the Puranas, there is a complete account of the life of God and in the Mahabharata, he is described only as a Sakha and assistant of the Pandavas. Therefore, in the Mahabharata, by nature, a complete series of accounts of God was not given and added. In fact, there is no such great contrast in these different contexts, due to which we consider Lord Krishna to be many instead of one.

The same Sri Krishna, who played with his Sakhas as an ordinary cowboy in childhood, was the one who acted as the narrator in the Mahabharatarupi drama and the same Sri Krishna preached the higher philosophy of Srimad Bhagavad Gita.

The second thing that proves the unity of Shri Krishna is the mention of his being a Dwarka. This mention has been made so many times in the entire Mahabharata that it cannot be believed that an ancient scholar, while versioning the Mahabharata, gave the name of Dwarka thousands of times for the purpose of incorporating the mythology of the Puranas in it. Gone . Now talk of Larahi Shri Krishna being an incarnation of Lord Vishnu. There is a view of Mahabharata and Puranas in this subject. It is difficult to say exactly when this principle was incorporated into these texts.

From the above discussion we can say that Shri Krishna’s account mentioned in Mahabharata and Puranas is cooperative and supportive of each other. Therefore, according to the belief of certain modern critics, we should not assume that Shri Krishna was many.

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