लड़के पर जवानी आती देख जब्बार के बाप ने पड़ोस के गाँव में एक लड़की तजवीज़ कर ली। लेकिन जब्बार ने हस्बा की लड़की शब्बू को जो पानी भर कर लौटते देखा, तो उसकी सुध-बुध जाती रही।
जैसे कथा कहानी में कहा जाता है कि शाहज़ादा नदी में बहता हुआ सोने का एक बाल देख सोने के केशधारी सुंदरी के प्रेम से आहत महल की अटारी में उपवास कर लेट गया था; बहुत कुछ वैसा ही हाल जब्बार का भी हुआ। मुँह से तो कुछ कह न सका पर शिथिल शरीर, चेहरे का रंग उड़ा हुआ, कुछ खोया-खोया सा वह रहने लगा।
माँ-बाप ने उसकी हालत देखकर सलाह की। मुँह-दर-मुँह नहीं पर उसे सुना दिया कि ब्याह जल्दी ही उसका हो जाएगा। लड़की भी बच्चा नहीं, बिलकुल जवान है। शमसल की बड़ी बेटी जहुन्ना आस-पास के चार गावों में एक ही लड़की है। पानी का बड़ा मटका सिर पर उठाकर धमकती दो मील चली जाती है। घर भर का काम सँभालती है अभी से! यहाँ आ जाएगी तो जब्बार की माँ को भी चैन मिलेगा। बूढ़ी हो गई बेचारी। पर जब्बार को इससे कुछ तसल्ली न हुई। वह अक्सर लंबी-लंबी आहे खींचकर चुपचाप पड़ा रहता। एक रोज़ माँ ने आँखों में आँसू भर अपनी क़सम घराकर पूछा—तो उसने सच कह दिया। जहुन्ना की बात सुनने से भी उसने इनकार करके कहा—यातो हस्बा की बेटी शब्बू, नहीं तो बस!…कुछ नहीं।
माँ-बाप ने बहुत समझाया। उसे सुनता देखते तो आपस में जहुन्ना की तारीफ़ और शब्बू की निंदा करने लगते। फिर जो लोग ऐसी बेशर्मी से ब्याह करते हैं उनकी कितनी निंदा होती है, यह सब वे लड़के को काकोक्ति, अलंकार और रूपक द्वारा समझाकर हार गए। पर धुन का पक्का जब्बार न माना तो न माना।
बेटे की ज़िद्द से हार मान बूढ़ा गफ़्फ़ार एक रोज़ हस्बा से बात करने गया। जब बह लौटकर आया तो क्रोध से उसकी आँखें लाल और ग्लानि से चेहरा विरूप हो रहा था। बंदूक़ कोने में रख, कंधे की चादर ज़मीन पर फेंक ‘वह ज़मीन पर ही बैठ गया।
जब्बार की माँ ऊँटों को बेरी की पत्तियाँ खिला रही थी। तुरंत बूढ़े के समीप दौड़ी आई। जब्बार दूर से ही उत्सुक कान लगाए था। बूढ़ा मानो फट पड़ा—ऐसे नालायक़ बेटे से बेऔलाद भला!
जब्बार की माँ ने घबराकर बेटे की बलाएँ अपने सिर लेते हुए नाक पर हाथ रख कर पूछा—हाय-हाय! हुआ क्या?
बूढ़े ने कहा—होगा क्या? ऐसे बे-शर्म बे-ग़ैरत लड़के से और होगा क्या? तमाम इज़्ज़त ख़ाक में मिल गई और घर मिट्टी में मिल जाएगा।
माँ ने फिर बलाएँ लेकर पूछा—हाय हुआ क्या? ऐसा क्यों कहते हो!
बाप ने कहा—अगर इसके ऐसे ही मिज़ाज थे तो यह क़लात के ख़ान के यहाँ पैदा क्यों नहीं हुआ? जानती है, हस्बा ने क्या कहा? सीधे मुँह से बात भी न की। कहती है, शब्बू की बात तुम मत सोचो। उसे वह ब्याहेगा जो अढ़ाई सौ रुपए की गठरी बाँधकर लाएगा। जाब ये बात जब्बार ने सुनी तो वह जहुन्ना से विवाह के लिए तैयार हो गया ||