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नवतत्त्व प्रकरण प्रश्नोत्तरी

प्रश्न- 1 तत्त्व किसे कहते है ?

जवाब- 1 चौदह राजलोक रुप जगत में रहे हुए पदार्थों के लक्षण, भेद, स्वरुप आदि को जानना, तत्त्व कहलाता है ।

प्रश्न- 2 तत्त्व कितने और कौन कौन से होते है ?

जवाब- 2 तत्त्व नौ हैं – 1.जीव 2.अजीव 3.पुण्य 4.पाप 5.आश्रव 6.संवर 7.निर्जरा 8.बंध 9.मोक्ष ।

प्रश्न- 3 जीव तत्त्व किसे कहते है ?

जवाब- 3 जीवों के लक्षण, भेद, स्वरुप आदि को जानना जीव तत्त्व है ।

प्रश्न- 4 जीव किसे कहते है ?

जवाब- 4 जो शुभाशुभ कर्मो का कर्ता-हर्ता तथा भोक्ता हो, जो सुख-दुःख रुप ज्ञान के उपयोग वाला हो, जो चैतन्य-लक्षण से युक्त हो, जो प्राणों को धारण करता हो, वह जीव कहलाता है ।

प्रश्न- 5 प्राण किसे कहते है ?

जवाब- 5 ” प्राणिति जीवति अनेनेति प्राणः ” अर्थात् जिसके द्वारा जीव में जीवत्व है, इसकी प्रतीति होती है, वह प्राण कहलाता है ।

प्रश्न- 6 अजीव किसे कहते है ?

जवाब- 6 जीव से विपरीत लक्षण वाला अजीव कहलाता है । जो चैतन्य लक्षण रहित जड स्वभावी हो, सुख-दुःख का अनुभव न करे, प्राणों को धारण न करे, वह अजीव कहलाता है ।

प्रश्न- 7 पुण्य किसे कहते है ?

जवाब- 7 जो आत्मा को पवित्र करें, जिसकी शुभ प्रकृति हो, जिसके द्वारा आमोद-प्रमोद, ऐश-आराम, सुख-साधनों की बहुलता प्राप्त हो, जिसके द्वारा जीव सुख का भोग करे, उसे पुण्य कहते है ।

प्रश्न- 8 पुण्य के कितने और कौन से प्रकार है ?

जवाब- 8 पुण्य के दो प्रकार हैः- 1पुण्यानुबंधी पुण्य 2.पापानुबंधी पुण्य ।

प्रश्न- 9 पुण्यानुबंधी पुण्य किसे कहते है ?

जवाब- 9 जिस पुण्य को भोगते हुए नया पुण्य बंधे, उसे पुण्यानुबंधी पुण्य कहते है । जैसे मेघकुमार ।

प्रश्न- 10 पापानुबंधी पुण्य किसे कहते है ?

जवाब- 10 जिस पुण्य को भोगते हुए पाप का अनुबन्ध हो, उसे पापानुबंधी पुण्य कहते है । जैसे मम्मण शेठ

प्रश्न- 11 नव तत्व में जीव कितने हैं?
नव तत्त्वों में एक जीव, एक अजीव और सात तत्त्व जीव अजीव की पर्याय रूप हैं अर्थात् जीव अजीव के कारण से ये सातों तत्त्व होते हैं। निश्चय में जीव का भेद एक ही है। व्यवहार में जीवों के दो से चौदह तक तथा 563 भेद होते हैं।

प्रश्न- 12 क्या जैन हिंदू नहीं हैं?
2006 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ” जैन धर्म निर्विवाद रूप से हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है “।

प्रश्न- 13 जैन धर्म के अनुसार तत्व कितने होते हैं?
जैनों के विचार से दो ही तत्व हैं-जीव और अजीव। इन दोनों का विस्तार ही पांच तत्वों के रूप में होता है। ये पांच तत्व जीव, आकाश, धर्म, अधर्म और पुद्गल हैं। कुछ जैनाचार्य सात तत्वों का भी वर्णन करते हैं जीव, अजीव, आस्नव, संवर, निर्जर, बंध और मोक्ष।

प्रश्न- 14 जैन धर्म का 5 सिद्धांत कौन है?
ये सभी पाँच व्रतों (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य) का पालन करते हैं।

प्रश्न- 15 मनुष्य कितने तत्व बनते हैं?
मानव शरीर पांच तत्वों से बना होता है; मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और शून्य। इन्हें पंच महाभूत या पंच तत्व भी कहा जाता है। ये सभी तत्व शरीर के सात प्रमुख चक्रों में बंटे हैं। सात चक्र और पांच तत्वों का संतुलन ही हमारे तन व मन को स्वस्थ रखता है।

प्रश्न- 16 जैन धर्म की 3 मुख्य मान्यताएं क्या हैं?
जैन धर्म आत्म-सहायता का धर्म है। ऐसे कोई देवता या आध्यात्मिक प्राणी नहीं हैं जो मनुष्य की सहायता करेंगे। जैन धर्म के तीन मार्गदर्शक सिद्धांत, ‘तीन रत्न’, सही विश्वास, सही ज्ञान और सही आचरण हैं। जैन जीवन का सर्वोच्च सिद्धांत अहिंसा है।

प्रश्न- 17 जैन धर्म के तीन स्तंभ कौन से हैं?
यह जैन नैतिक संहिता का पालन करके, या सीधे शब्दों में कहें तो, जैन नैतिकता के तीन रत्नों का पालन करके सही ढंग से जीने से किया जाता है। इसके तीन भाग हैं: सही विश्वास, सही ज्ञान और सही आचरण ।

प्रश्न- 18 जैन धर्म कितना पुराना है?
जैन धर्म दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति कम से कम 2,500 साल पहले भारत में हुई थी। जैन धर्म का आध्यात्मिक लक्ष्य पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मुक्त होना और मोक्ष नामक सर्वज्ञ अवस्था को प्राप्त करना है।

प्रश्न- 19 संवर तत्त्व उपादेय क्यों है ?

जवाब- 29 आते हुए कर्मो को रोकने से आत्मा के गुण अनावृत्त होते हैं, जिससे जीव का निजस्वरुप प्रकट होने लगता है, अतः संवर तत्त्व उपादेय है ।

प्रश्न- 20 निर्जरा तत्त्व की उपादेयता क्यों है ?

जवाब- 30 पुराने बंधे हुए कर्मो को आत्मा से विलग निर्जरा तत्त्व द्वारा किया जाता है । जैसे-जैसे कर्मो की निर्जरा होती है, वैसे-वैसे आत्म स्वरुप प्रकट होता जाता है, इसलिये निर्जरा तत्त्व उपादेय है ।

प्रश्न- 21 अकाम निर्जरा किसे कहते है ?

जवाब- 21 सर्वज्ञ कथित तत्त्वज्ञान के प्रति अल्पांश रुप से भी अप्रतीति वाले जीव-अज्ञानी तपस्वियों की अज्ञानभरी कष्टदायी क्रियाएँ तथा पृथ्वी, वनस्पति आदि पंच स्थावरकाय जो सर्दी-गर्मी को सहन करते हैं, उन सबसे जो निर्जरा होती है, वह अकाम निर्जरा कहलाती है ।

प्रश्न- 22 बंध किसे कहते है ?

जवाब- 22 जीव के साथ नीर-क्षीरवत् कर्म वर्गणाएँ संबद्ध हो, उसे बंध कहते है ।

प्रश्न- 23 मोक्ष किसे कहते है ?

जवाब- 23 ज्ञानावरणीयादि अष्ट कर्मो का आत्मा से सर्वथा नष्ट हो जाना, मोक्ष कहलाता है ।

प्रश्न- 24 नवतत्त्वों का वर्णन कौनसे आगम में हैं ?

जवाब- 24 स्थानांग सूत्र के 9 वें स्थान में नवतत्त्वों का वर्णन है ।

प्रश्न- 25 नवतत्त्वों में कौन-कौन से तत्त्व हेय-ज्ञेय तथा उपादेय है ?

जवाब- 25 1. हेय – पाप, आश्रव, बन्ध, पुण्य ।

2. ज्ञेय – जीव, अजीव ।

3. उपादेय – पुण्य, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष ।

प्रश्न- 26 हेय-ज्ञेय तथा उपादेय से क्या तात्पर्य है ?

जवाब- 26 हेय – त्याग करने योग्य ।

ज्ञेय – जानने योग्य ।

उपादेय – ग्रहण करने योग्य या स्वीकार करने योग्य ।

प्रश्न- 27 पुण्य तत्त्व को हेय तथा उपादेय, दोनों में क्यों उल्लिखित किया गया है ?

जवाब- 27 जब तक जीवात्मा मोक्ष में नहीं पहुँचता है, तब तक पुण्य उपादेय अर्थात् ग्रहण करने योग्य है क्योंकि पंचेन्द्रिय जाति, मनुष्य जीवन, श्रेष्ठ कुल, स्वस्थ शरीर, विचक्षण बुद्धि, जिनधर्म, सुदेव तथा सुगुरु इन की पुण्य के परिणाम स्वरुप ही प्राप्ति होती है ।

अगर पुण्य नहीं होगा तो इन सबकी प्राप्ति नहीं होगी और इनके अभाव में संयम व मोक्ष की आराधना कैसे होगी ? अतः व्यवहार नय से पुण्य उपादेय है । ज्योंही मंजिल प्राप्त होती है, सीढियाँ स्वतः छूट जाती है, इसी प्रकार जीव पुण्य से समस्त अनुकूलताओं के प्राप्त होने पर मोक्षमार्ग पर गतिशील हो जाता है, तब पुण्य सोने की बेडी रुप होने से हेय अर्थात् त्याग करने योग्य है ।

प्रश्न- 28 आश्रव तत्त्व को हेय क्यों कहा गया ?

जवाब- 28 आत्मा के अंदर अनवरत रुप से शुभाशुभ कर्मो का आगमन होने से आत्मिक गुण आवृत्त होते जाते हैं, जिससे जीव को स्वयं के स्वरुप का भान नहीं रहता, अतः आश्रव तत्त्व हेय है ।

प्रश्न- 29 संवर तत्त्व उपादेय क्यों है ?

जवाब- 29 आते हुए कर्मो को रोकने से आत्मा के गुण अनावृत्त होते हैं, जिससे जीव का निजस्वरुप प्रकट होने लगता है, अतः संवर तत्त्व उपादेय है ।

प्रश्न- 30 निर्जरा तत्त्व की उपादेयता क्यों है ?

जवाब- 30 पुराने बंधे हुए कर्मो को आत्मा से विलग निर्जरा तत्त्व द्वारा किया जाता है । जैसे-जैसे कर्मो की निर्जरा होती है, वैसे-वैसे आत्म स्वरुप प्रकट होता जाता है, इसलिये निर्जरा तत्त्व उपादेय है ।

नवतत्त्व प्रकरण प्रश्नोत्तरी 31 – 40

प्रश्न- 31 मोक्ष तत्त्व उपादेय क्यों है ?

जवाब- 31 कर्मो का संपूर्ण क्षय होना मोक्ष है । जब मोक्ष प्राप्त होता है, तो जीव अपने संपूर्ण शुद्ध स्वरुप को प्राप्त हो जाता है । उसमें किसी भी प्रकार का कर्म विकार रुप मल नहीं रहता । इस अमल-निर्मल तथा संपूर्ण आत्मदशा को प्राप्त होने का नाम ही मोक्ष है । अतः मोक्ष तत्त्व चरम एवं परमश्रेष्ठ होने से उपादेय है ।

प्रश्न- 32 नवतत्त्वों के कुल कितने भेद हैं ?

जवाब- 32 नवतत्त्वों के कुल 276 भेद इस प्रकार हैं – जीव-14, अजीव-14, पुण्य-42, पाप-82, आश्रव-42, संवर-57, निर्जरा-12, बंध-4, मोक्ष-9 ।

प्रश्न- 33 संसारी जीवों के विभिन्न अपेक्षाओं से कौन कौन से भेद होते है ?

जवाब- 33 संसारी जीवों के विभिन्न अपेक्षाओं से 6 प्रकार के भेद नवतत्त्व में उल्लिखित है ।

प्रश्न- 34 छह प्रकार के भेदों को स्पष्ट कीजिए ?

जवाब- 34 1. समस्त जीवों का मति व श्रुतज्ञान का अनन्तवां भाग प्रकट होने से समस्त जीव चैतन्यलक्षण से युक्त है । इस चेतना लक्षण द्वारा सभी जीव एक प्रकार के है ।

2. संसारी जीवों के त्रस तथा स्थावर ये दो भेद होने से जीव 2 प्रकार के है । त्रस व स्थावर इन दो भेदों में सभी संसारी जीवों का समावेश हो जाता है ।

3. वेद की अपेक्षा से समस्त संसारी जीव 3 प्रकार के है । कोइ जीव पुरुष वेद वाला है, कोइ स्त्रीवेद वाला है, कोइ नपुंसकवेद वाला है । इन तीनो वेद में समस्त संसारी जीव समाविष्ट हो जाते हैं ।

4. चार गतियों की अपेक्षा से संसारी जीव के 4 प्रकार के है । नरक. तिर्यंच, मनुष्य तथा देव इन चार गतियों से अलग किसी जीव का अस्तित्व नहीं हैं ।

5. इन्द्रियों की अपेक्षा से संसारी जीवों के 5 भेद हैं । एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय इन पांच भेदों में संसार की समस्त जीव राशी समाविष्ट है ।

6. षट्काय की अपेक्षा से संसारी जीवों के 6 प्रकार हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय इन षट्काय में समस्त संसारी जीव समाहित हो जाते है ।

प्रश्न- 35 इन्द्रियों के विषय किसे कहते है ?

जवाब- 35 पांच इन्द्रियों के माध्यम से आत्मा के अनुभव में आने वाले पुद्गल के स्वरुप को इन्द्रियों का विषय कहते है ।

प्रश्न- 36 इन्द्रिय के कितने भेद है ?

जवाब- 36 सामान्य रुप से इन्द्रिय के दो भेद है- 1.द्रव्येन्द्रिय 2.भावेन्द्रिय ।

प्रश्न- 37 द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 37 नाक, कान आदि इन्द्रियों की बाहरी तथा भीतरी पौद्गलिक संरचना को द्रव्येन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 38 द्रव्येन्द्रिय के कितने भेद है ?

जवाब- 38 दो – 1. निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय 2. उपकरण द्रव्येन्द्रिय ।

प्रश्न- 39 निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 39 इन्द्रिय की रचना-विशेष को निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 40 निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय के कितने भेद है ?

जवाब- 40 दो भेद है- 1.बाह्य निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय 2.आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय ।

नवतत्त्व प्रकरण प्रश्नोत्तरी 41 – 50

प्रश्न- 41 बाह्य निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 41 इन्द्रियों के बाह्य भिन्न-भिन्न आकार को बाह्य निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 42 आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 42 उत्सेधांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और प्रतिनियत चक्षु आदि इन्द्रियों के आकार रुप से अवस्थित शुद्ध आत्म प्रदेशों की रचना को आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 43 उपकरण द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 43 आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय के भीतर अपने अपने विषय को ग्रहण करने में समर्थ पौद्गलिक शक्ति को उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 44 उपकरण द्रव्येन्द्रिय के कितने भेद है ?

जवाब- 44 दो- 1. बाह्य उपकरण द्रव्येन्द्रिय 2. आभ्यंतर उपकरण द्रव्येन्द्रिय ।

प्रश्न- 45 बाह्य उपकरण द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 45 इन्द्रिय की आभ्यंतर आकृति विशेष को बाह्य उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 46 आभ्यंतर उपकरण द्रव्येन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 46 इन्द्रिय की आभ्यंतर आकृति में रही हुई विषय ग्रहण करने की शक्ति को आभ्यंतर उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 47 आभ्यंतर निर्वृत्ति द्रव्येन्द्रिय तथा उपकरण द्रव्येन्द्रिय में क्या भेद है ?

जवाब- 47 आभ्यंतर निर्वृत्ति है आकार और उपकरण है उसके भीतर विद्यमान अपने अपने विषयों को ग्रहण करने वाली पौद्गलिक शक्ति । वात-पित आदि से उपकरण द्रव्येन्द्रिय नष्ट हो जाय तो आभ्यंतर द्रव्येन्द्रिय होने पर भी विषयों का ग्रहण नहीं होता । जैसे बाह्य निर्वृत्ति है तलवार, आभ्यंतर निर्वृत्ति है तलवार की धार और उपकरण है तलवार की छेदन भेदन की शक्ति ।

प्रश्न- 48 भावेन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 48 आत्मा के परिणाम विशेष (जानने की योग्यता और प्रवृत्ति)- ज्ञान शक्ति को भावेन्द्रिय कहते है ।

प्रश्न- 49 भावेन्द्रिय के भेद कितने है ?

जवाब- 49 भावेन्द्रिय के 2 भेद है – 1. लब्घि तथा 2. उपयोग ।

प्रश्न- 50 लब्धि भावेन्द्रिय किसे कहते है ?

जवाब- 50 ज्ञानावरणीय तथा दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम होने पर स्पर्शादि विषयों को जानने की शक्ति को लब्धि भावेन्द्रिय कहते है ।

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