सेठ अनाथपिंडक भगवान् बुद्ध के परम स्नेहभाजन थे। वे अपने मन की तमाम बातें और वेदना निःसंकोच उनके समक्ष प्रस्तुत कर समाधान पाने की आशा रखते थे।
एक दिन अनाथपिंडक का उदास चेहरा देखकर तथागत ने उनसे पूछा, ‘सेठ, किस समस्या के कारण चिंतित हो?’
उन्होंने बताया, ‘नई बहू सुजाता के व्यवहार के कारण बहुत परेशान हूँ। वह अत्यंत अभिमानी है। बात-बात में पति का अपमान करती है। हमारी अवज्ञा करती है, इसलिए परिवार में कलह होने लगी है।’
तथागत ने कहा, ‘सुजाता को हमारे पास भेजना। हम उसे उपदेश देकर रास्ते पर लाने का प्रयास करेंगे।
सुजाता भगवान् बुद्ध के महत्त्व को जानती थी। वह सत्संग के लिए आई और विनम्रता से उन्हें प्रणाम कर सामने बैठ गई। बुद्ध ने उससे कहा, ‘बेटी, महिलाएँ चार तरह की होती हैं, बधिकसमा,
चोरसमा, मातृसमा और भगिनीसमा। तुम इनमें से किस श्रेणी में आती हो? सुजाता बोली, भगवन्, मैं इनका तात्पर्य नहीं समझ पाई। कृपा करके स्पष्ट रूप से बताएँ।’
बुद्ध ने कहा, ‘जो गृहिणी हमेशा क्रोध करती है, पति का अपमान करने को तत्पर रहती है, उसे शास्त्रों में बधिकसमा कहा गया है । जो संपत्ति का सदुपयोग न करके उसे केवल अपने उपभोग में लाती है, उसे चोरसमा कहा गया है।
जो स्त्री परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सद्व्यवहार करती है, उसे मातृसमा कहा गया है। जो सभी से प्रिय भाई के समान व्यवहार करती है, वह भगिनीसमा कहलाती है।
भगवान् बुद्ध के वचनों ने सुजाता के अभिमान को काफूर कर दिया। उसने उनसे क्षमा माँगते हुए कहा, ‘प्रभो, आप विश्वास रखें, भविष्य में मेरे मुँह से एक भी कटु शब्द नहीं निकलेगा।
मैं सभी का विनीत भाव से आदर करूँगी। मातृसमा मेरा व्यवहार रहेगा।’ कहते-कहते सुजाता के नेत्र सजल हो उठे।