अनायास ही उस लड़की पर ठहर गई जो बेंच के एक कोने में सिकुडी हुई सी बैठी थी। सभी छात्राओं से अलग थलग, दुबली पतली, साँवली, भोली भाली और मासूम सी।सामान्य सी बात थी, कोई न कोई छात्र अलग थलग सा होता ही है। मैने अपना चैप्टर पढाया और बाहर निकल आया।
एक हफ्ता गुजर गया, मैने बस इतना नोटिस किया कि वह लड़की शांत और चुपचाप बैठी रहती है। कभी कोई प्रश्न नहीं पूछती, कापियां भी चैक नहीं कराती, और ना ही कभी पढने में कोई रूचि दिखाती। मैने भी कभी पूछा नहीं। एक दिन जब मैं कक्षा में पहुंचा तो वह कोने में बैठे सुबक रही थी। आँखों से आँसू झर रहे थे। दो चार छात्राएं उसे समझाने की कोशिश कर रही थीं और आँसू पोंछ रहीं थीं।
” क्या हुआ भई ,” मैने पूछा।
सारी छात्राएं अपनी अपनी शीट पर जाकर बैठ गई। किसी ने कुछ नहीं बताया।
” अरे क्या बात है, क्यों रो रही हो? ” मैने उससे फिर पूछा, ” कुछ बताओ तो पता चले? “
कुछ नहीं बताया, बस आँसुओं की धार तेजी से बह निकली।
” पढाई लिखाई में तो तुम्हारी कोई रूचि दिखाई नहीं देती है, ” मैने कठोर लहजे में पूछा। ” फिर ये रोना धोना क्यों लगा रखा है? अगर रोने का मन बना लिया है तो कक्षा के बाहर खड़े होकर जी भर के रोओ, बाहर निकल जाओ ” मैने बाहर की ओर इशारा कर दिया।
उसके बेंच से उठकर बाहर जाते समय मुझे पता चला कि उसका एक पैर खराब है। मैं सहम सा गया।
” रुको, ठहरो। साॅरी, मुझे पता नहीं था, तुम…. तुम यहीं बैठो। वह गर्दन झुकाए सुबकती रही। ” तुम चाहो तो अपनी परेशानी मुझे बता सकती हो.. नहीं तो कोई बात नहीं। रोना बंद कर बैठ जाओ। “
” सर, अँग्रेज़ी बाले सर ने इसकी माँ के बारे में कुछ कह दिया है, तभी से रोए जा रही है। ” पास में बैठी छात्रा ने बताया।
मैं सोचने पर विवश हो गया। ‘एसा क्या कह दिया होगा? कोई भी शिक्षक भरी कक्षा में किसी भी छात्रा के परिवार के बारे में कुछ भी क्यों कहेगा? ‘
मैने उन दोनों छात्राओं को अपने आफिस में आने के लिए कहा और निकल आया।
लंच टाइम में दो छात्राओं के साथ वह मेरे आफ़िस में आ गई और चेहरे पर वही उदासी लिए खडी हो गई।
दूसरी छात्रा ने बताया कि उसका नाम रोली है, पिछले साल ही कानपुर से अपनी माँ और छोटे भाई के साथ यहां आई है। पिताजी इनके साथ नहीं रहते, दूसरी शादी कर ली है। बस दो चार महीने में एक बार थोड़ा बहुत खर्चा भेज दिया करते हैं। माँ कभी अचार, पापड तो कभी सिलाई का काम करके इन्हें पाल पोष रही है। पास पडोसी इन्हें अच्छी नजर से नहीं देखते। बस इतनी मेहरबानी है कि कोई खुलकर कुछ नहीं कहता परंतु शक की नजर जरूर रखता है। इसलिए इसका पढाई में मन नहीं लगता।
अंग्रेजी बाले सर ने कहा था कि तुम अंग्रेजी में कमजोर हो, उनसे टयूशन ले लेनी चाहिए । तुम्हारी माँ के पास पैसे की तो कोई कमी नही होगी, उनके जलबे हैं मुहल्ले भर में। मैं सोच में पड गया। किसी सभ्रांत शिक्षक की मानसिकता ऐसी कैसे हो सकती है? भरी कक्षा में किसी भी शिक्षक के ऐसे सड़कछाप उदगार निराशाजनक और अक्षम्य हैं।
मैं कुछ भी करने और कहने की स्थिति में नहीं था। एक तो ये कि मैं नया चेहरा और विद्यालय की अंदरूनी राजनीति से अनभिज्ञ। दूसरे न तो मैं रोली और उसकी माँ के बारे में कुछ भी जानता था और ना ही उन शिक्षक महोदय की मानसिकता से परिचित था। हाँ, अब मेरे मन में रोली के लिए दया की भावनाओं ने जड पकड लीं । समझा बुझा कर मैने उसे बापस कक्षा में भेज दिया।
” क्या हाल है रोली बेटे ?” अगले दिन कक्षा में प्रवेश करते ही मैने पूछा। जबाब में उसने हाथ जोड़कर अभिवादन किया और चेहरे पर हलकी सी मुस्कराहट के साथ खड़ी हो गई। आज पहली बार मैं उसे सामान्य देख रहा था।
” मैं …. पढना ….चाहती हूँ …सर! ” मुझे रोली की झेंपती हुई आवाज सुनाई दी।
” हाँ, बिलकुल। ” मैं खुश हो गया था कि आज पहली बार उसे बोलते हुए सुना। ” तुम्हारा अधिकार है, तुम्हें पढना ही चाहिए। मन लगा कर पढ़ो, हम पूरा सहयोग करेंगे”
“लो, ..अब ये भी पढेगी! ” एक छात्रा ने व्यंग्यात्मक लहजे में कटाक्ष किया।
” हाँ, और प्रिंसिपल बन कर हमें पढायेगी। ” दूसरी छात्रा ने मजाक बनाया।
कुछ छात्राएं ठहाका मार कर हँस पड़ीं तो रोली सहम सी गई ।
” शट अप…! ” मैने सब को डांट कर चुप कराते हुए कहा, ” देखो , किसी का मजाक उडाने की जरूरत नहीं है। उसे तुम्हारे सहयोग की जरूरत है , अगर नहीं कर सकते तो कम से कम हतोत्साहित भी मत करिए। आप लोग भी पढिए और इसे भी उत्साहित करिए, फिर देखना कितना सुंदर परिणाम देखने को मिलेगा। “
चाल और वेग की परिभाषा और अंतर समझाते हुए मैने अपना चैप्टर निपटाया और फिर हिदायत देकर कि कल ये टाॅपिक तुम्हें ब्लैक बोर्ड पर समझाना है, अच्छे से तैयार करके आना। मैने रोली से कहा और बाहर निकल आया।
अगले दिन का परिणाम आशातीत रहा। झिझकते सहमते रोली ने अपना चैप्टर पूरा कर ही दिया। सिलसिला चल पड़ा। एक महीने में रोली ने काफी सुधार कर लिया अब वह कक्षा की अन्य छात्राओं से बातचीत भी करने लगी। थोड़ा सा उत्साह वर्धन करने से उसका आत्मबल मजबूत हो रहा था। जो लकडियां अबतक उसका मजाक बनाती थीं, सहेली बन गई थीं।
एक दिन बाजार से लौटते समय रोली से मुलाकात हो गई। वह अपनी माँ के साथ थी। लंबे कद बाली, साधारण सी महिला, सलीके से पहनी हुई साडी और माथे पर छोटी सी लाल बिंदी, बस। परिचय होने पर विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर उसने अभिवादन किया और रोली के सहयोग के लिए कृतज्ञता व्यक्त की।
“आइए, पास की गली में ही हमारा छोटा सा घर है। कुछ चाय पानी कर लीजिए ”
उसके आग्रह को मैं ठुकरा नहीं सका। मैं भी उसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहता था इसीलिए साथ साथ चला गया।
घर में बहुत अधिक फर्नीचर तो नहीं था पर जो भी था सलीके से सजाया हुआ था। गिलास में चाय लाते समय मैं समझ गया कि रसोई में भी काम चलाऊ पुराने बर्तन ही हैं। बातचीत के दौरान पता चला कि वह खुद पोस्ट ग्रैजुएट है पर नौकरी नहीं कर सकती क्योंकि बढ़ती उम्र की बेटी को अकेले घर में छोडना सुरक्षित नहीं लगा। बेटा अभी दस साल का ही है तो घर पर रहकर ही अचार पापड और सिलाई का काम ही उचित लगा। इसी काम के सिलसिले में एक दो आदमी आते जाते रहते हैं जो पडोसियों को नागवार गुज़रता है।
आचार विचार और व्यवहारिकता से मुझे वह एक सभ्य महिला लगी जो संक्रमित मानसिकता के लोगों को नजर अंदाज कर अपनी संतान को ऊपर उठाने की कोशिश कर रही थी। विकट परिस्थितियों में शिक्षा ही एक मात्र हथियार है जो हमेशा मन की दुर्बलता को दूर रखता है। यह बात वह अच्छी तरह जानती थी।
खैर, चाय पी कर मैं जल्दी ही निकल आया।
” नमस्ते शर्मा जी,… तो आखिर आप भी चाय पीने का शौक रखते हैं? ” अगले दिन स्कूल गेट के अंदर ही अंग्रेजी बाले शिक्षक दो अन्य शिक्षकों के साथ खडे हँस रहे थे। ” अरे भाई, हमें भी साथ ले लिया होता, हम भी तो चाय पीने के लिए बेचैन हैं। ” एक फूहड़ हँसी के ठहाके के साथ वह मेरी ओर देखने लगे।
धूर्तता जब चेहरे पर छप जाती है तो चेहरा कितना बदसूरत नजर आता है, मैं पहली बार अच्छी तरह देख रहा था।
” जिस चाय की आपको तलब है, वो घरों में नहीं बनती श्री मान।” गौर से एक नजर उन महाशय पर डाली, ” बाजारों में मिलती है जहाँ आप जैसे प्रतापी लोग
अक्सर जाते रहते हैं ” मैने उनका कंधा थपथपाया और बिना समय बरबाद किए वहां से हट गया।
मैं सोच रहा था कि लोग चार किताबें पढकर शिक्षक तो बन जाते हैं पर शिक्षा को अपने आचरण में नहीं उतार पाते। आचरणहीन व्यक्ति कैसा शिक्षक और फिर कैसा उसका शिक्षण कार्य?…..?..
लंच टाइम में रोली मेरे आफिस में आई और अचार का एक पैकेट टेबल पर रखते हुए बोली कि माँ ने भेजा है।
” ना… ना बेटा ना,” मैने पैकेट लौटाते हुए कहा, ” मुझे जरूरत नहीं है, घर में पहले से ही कई तरह के अचार डाल रखे हैं। हाँ, माँ को मेरी ओर से धन्यवाद कहना। “
” अरे रख भी लीजिए सर, कितनी चाहत से भेजा होगा इसकी माँ ने, ” वह महाशय मेरे ही आफ़िस में घुस कर खींसे निपोरते हुए कुर्सी पर बैठ गए। ” मुझे यकीन था कि आपको तीखा भी बहुत पसंद होगा। और ये मैं अपने अनुभव से बता सकता हूँ कि कल पापड भी हाजिर होंगे आपकी सेवा में। हम तो मौका ही तलाशते रह गए “
” आपका अनुभव आपकी उम्र से बड़ा नहीं हो सकता महाशय, और आपकी उम्र मुझसे लगभग दस साल कम है” मैने अपनी मनोदशा पर काबू पाते हुए शांतिप्रिय ढंग से जवाब दिया। ” और इसी आधार पर आपको बतादूँ कि किसी की कुत्सित मानसिकता किसी का बसाया हुआ घरौंदा उजाड़ तो सकती हैं पर बसा नहीं सकती। अरे हाँ, सुना है कि आपकी बेटी भी यहीं पढती है ? हैना?” मैने आँखों में आँखें डाल कर पूछा,” तो उसे भी आपकी रसिक मिजाजी के बारे में पता ही होगा.. या फिर मैं बताऊँ? “
वह अपनी खिसियाहट को छिपाकर खड़े हो गए और सूखी हँसी हँसते हुए चले गए। जब बुद्धि संक्रमित हो जाए तो अपमान महसूस नहीं होता। साक्षात प्रमाण मेरे सामने से अभी अभी उठकर गया था।
बीस मिनट बाद ही प्रधानाचार्य जी के आफिस से बुलावा आ गया।
” आपने बुलाया सर ?” मै आफिस प्रधानाचार्य के सामने पेश हुआ।
” आप ये क्या कर रहे हैं शर्मा जी, ” मेरी ओर बिना देखे ही बोले।
” बताएं सर,? “
” आप व्यवस्था खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।” फाइल बन्द करते हुए उन्होंने मेरी ओर देखा, ” विद्यालय में आपका काम पढाने का है, रिश्तेदारी लगाने का नहीं। आप किसी भी छात्र या छात्रा से कोई भी चीज की डिमांड नहीं कर सकते।इससे विद्यालय का अनुशासन भंग होता है। “
” किसी कमजोर छात्रा को पढने के लिए उत्साहित करना और सहयोग करना व्यवस्था ख़राब करना होता है? ” सहज भाव से मैने पूछा।
” शर्मा जी आप समझ नहीं पा रहे हैं, कल आप किसी छात्रा के घर गए थे? उस छात्रा से आपने अचार लाने के लिए कहा था? क्या आप नहीं जानते कि इस तरह विद्यालय की कितनी बदनामी हो सकती है? “
बताने की जरूरत नहीं है कि आग किसने लगाई थी। मैं चुपचाप सुनरहा था। और सोच रहा था कि क्या जवाब दूँ।
” कुछ बोलेंगे आप या मैं सच मान लूं?” वह पूरे रुआव के साथ बोले।
” सर,.. मुझे अपनी कोई सफाई तो नहीं देनी पर…. ” मेरीआवाज में दृढता आ गई। ” पर मैं विद्यालय की बदनामी और अनुशाशन पर जरूर पूछना चाहता हूँ “
” बेझिझक पूछिए, “
” सर, किसी शिक्षक के किसी छात्रा के घर जाने से विद्यालय की बदनामी हो जाती है तो किसी छात्रा की मां के बारे में कुत्सित विचार रखने बाला शिक्षक कौन सा नेकनामी का काम कर रहा होता है? छात्राओं के शरीर को अनैतिक तरीके से छूने की कुचेषटा करने बाला शिक्षक कौन सा प्रशंसनीय कार्य कर रहा है?
छात्राओं ने आप से भी शिकायत की है पर आपने कभी ठोस कदम नहीं उठाया। ये आपका अनुशासन है? ” मैं थोड़ा सा उग्र हो गया और कहता चला गया ।
” पिछले साल इन्हीं महाशय को इनकी घटिया हरकत की बजह से किसी महिला शिक्षक ने इन्हें बरामदे में दौड़ा लिया था। वो महिला तो स्कूल छोड़ कर चली गई ,पर ये अभी तक यहीं हैं। क्या ये अनुशासन का उदाहरण है?”
” ये तुम्हें किसने बताया?” वह मुझे घूरते हुए बोले। “
” इस स्कूल में सैकड़ों छात्र छात्राएं हैं ,…और चश्मदीद शिक्षक भी ।”
” शर्मा जी, दूसरों पर उंगली उठाने के बजाय आप अपने चरित्र पर ध्यान दीजिए कि आप क्या कर रहे हैं। ” प्रधानाचार्य जी आवेश में आ गए, ” इस तरह विद्यालय की प्रतिष्ठा को क्षत विक्षत न करें अन्यथा आपको पदमुक्त कर दिया जा सकता है। “
“चरित्र?.. मेरा चरित्र? ” मैं भी आवेश में आ गया। ” सर, वैरी सारी, मुझे भी किसी से चरित्र प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता नहीं है। मैं अभी स्वयं पद मुक्त हो रहा हूँ, धन्यवाद। ” मैं पलट कर जाने लगा।
” और हाँ सर, ” मैने फिर पीछे मुड़कर उनकी ओर देखा, ” इस दुनिया में आप अकेले ही चरित्रवान नहीं हो, और भी बहुत सारे हैं। पर आप उन्हें पहचानने का विवेक नहीं रखते। ” मैंने बाहर निकल कर आफिस से अपना बैग उठाया और विद्यालय छोड़ दिया हमेशा के लिए।
लगभग एक हफ्ते बाद एक दिन सुबह सुबह दस बारह छात्र छात्राओं का झुंड मेरे घर पर आ गया।
” सर, प्रधानाचार्य जी और विद्यालय संरक्षक महोदय ने आपको अभी बुलाया है। ” छात्रों ने बताया।
” बेटे, मैने अपनी मर्जी से विद्यालय छोड़ा है तो फिर मेरा वहाँ जाना बनता नहीं है ” बैठने का इशारा करते हुए मैने कहा।
” सर, आपके निकलने के बाद बहुत हंगामा खड़ा हो गया, ” एक छात्रा ने बताया, ” कई शिक्षक शिक्षिकाओं ने काम करने से इनकार कर दिया और प्रधानाचार्य पर अंग्रेजी बाले सर को निष्कासित करने का दबाव बनाया। बहुत सी छात्राओं को भी आगे आना पड़ा। बात प्रबंधन सिमिति तक पहुँच गई और दोनों को पद से इस्तीफा देना पड़ा है। फिलहाल जबतक नये प्रधानाचार्य नहीं आ जाते तबतक वह अपना कार्यभार सँभालते रहेंगे। अब आप….. :”
मैं सोच में पड गया, मुझे बापस जाना चाहिए या नहीं , मुझे गर्व महसूस हो रहा था कि मेरी विचारधारा का समर्थन करने बाले शिक्षक और शिक्षणशैली को पसंद करने बाले छात्र छात्राओं की कमी नही है। ‘मुझे अपना चरित्र प्रमाण पत्र मिल गया है ‘ ऐसा सोचने के बाद मैं खड़ा हो गया कि चलो जो भी हुआ ,रोली जैसे तमाम छात्र छात्राओं को ऊपर उठाने का अवसर एक बार फिर मेरा इंतजार कर रहा है।
आज दस साल हो गए प्रधानाचार्य पद पर कार्य करते हुए। रोली बैंक में चयनित हो चुकी है। और कई आर्थिक संकट से जूझते छात्र छात्राएं प्रतियोगी परीक्षाओं की निःशुल्क तैयारी कर रहे हैं।