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सफलता के साधन

किसी लक्ष्य की प्राप्ति में श्रद्धा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है। यदि किसी कार्य को श्रद्धा, निष्ठा और विवेक से किया जाए, तो सफलता मिलने में कोई संदेह नहीं रहता। उपनिषदों में कहा गया है, ‘अंतरात्मा का ज्ञान सहज स्फुरित व प्रत्यक्ष होता है और ऐसी अंतरात्मा की क्रिया को ही श्रद्धा कहते हैं। श्रद्धा अपने आपमें सदा अविचल होती …

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वरदान भी, श्राप भी

प्रकृति और मानव मन-मस्तिष्क में अनूठी क्षमता होती है। यदि मनुष्य बुद्धि विवेक से काम ले, उचित-अनुचित का विचारकर प्रकृति का उपयोग करे, तो वह सदैव वरदान के रूप में कल्याणकारी होती है। सद्गुण-दुर्गुण प्रत्येक व्यक्ति की अंतःचेतना में विद्यमान रहते हैं। मिट्टी में उर्वरा शक्ति होती है। उसमें जैसा बीज बोया जाता है, वैसा ही फल उगता है। ईश्वर …

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भूखे को भोजन

सभी शास्त्रों में कहा गया है कि किसी की सहायता करते समय उसकी जाति का विचार कदापि नहीं करना चाहिए। किसी की भूख मिटाते समय यही समझ लेना पर्याप्त है कि वह प्राणी है। शेख सादी ने हजरत खलील के जीवन की एक सत्य घटना का वर्णन किया है। हजरत खलील का संकल्प था कि वे बिना किसी को खिलाए …

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पशु-पक्षियों से सीखो

गंधर्वराज विश्ववसु की पुत्री मदालसा परम तपस्वी व विद्वान् महिला थीं। वे अपने पुत्रों को शास्त्रों के उदाहरण देकर उपदेश दिया करती थीं कि शरीर क्षणभंगुर है, आत्म तत्त्व ही सबकुछ है। सांसारिक मोहजाल में फँसकर जीवन व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। मदालसा के पति राजा ऋतध्वज ने एक दिन कहा, ‘प्रिये! तुम तीन बच्चों को ज्ञानोपदेश देकर सांसारिक जगत् से …

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जीवन की सार्थकता

गुरु नानकदेवजी सत्य का महत्त्व प्रदर्शित करते हुए कहा करते थे, “किव सचियारा होइये किव कुडै तुटै पालि-साधक को ऐसा सचियारा होना चाहिए कि वह हर क्षण सत्य का अनुसरण करता रहे। उसे भगवान् के नाम के सुमिरन से मन के मैल को साफ करना चाहिए । वे उपदेश में कहते हैं, ‘बिना परश्रम के पाया गया धन या बेईमानी …

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अहंकार की दुर्गंध

There were three children. He used to have special reverence in religion.

संत तुलसीदासजी ने लिखा है, ‘प्रभुता पाई काहि मद नाहीं’ अर्थात् किसी भी तरह से धन, पद, सत्ता या विद्या पाते ही आदमी के अंदर अभिमान पैदा हो जाता है कि वह सबसे बड़ा है।

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मन की पवित्रता

किसी भी प्रकार की साधना की सफलता के लिए शास्त्रों में मन को शुद्ध-पवित्र, छल-छद्म से रहित बनाने पर जोर दिया गया है। महर्षि पतंजलि कहते हैं, अपने मन को किसी भी प्रकार के राग -द्वेषों से, तेरा-मेरा की भावना से मुक्तकर उसे परमात्मा की ओर उन्मुख करना चाहिए। मन को भगवान् से जोड़ने का नाम ही योग है।’ परमहंस …

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कौन चाहता है निर्वाण

भगवान् बुद्ध से एक जिज्ञासु ने पूछा, ‘मानव जीवन का लक्ष्य क्या है?’ उन्होंने बताया, ‘निर्वाण अर्थात् सभी बंधनों से मुक्ति।’ जिज्ञासु ने कहा, ‘भगवान्, आप लोगों को तरह-तरह के साधन बताते हैं। क्यों नहीं उन्हें सीधे-सीधे निर्वाण प्रदान करते हैं। आप तो निर्वाण की स्थिति में पहुँच चुके हैं, क्यों नहीं उसे औरों में भी बाँट देते हैं?’ बुद्ध …

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विनय और समर्पण

ऋषि-मुनियों, संत-महात्माओं तथा भक्तों ने भगवान् से अपने अवगुणों को अनदेखा कर शरण में लेने की प्रार्थना की है। संत कवि सूरदास ‘प्रभु मेरे अवगुण चित न धरो’ पंक्तियों में विनयशीलता का परिचय देते हुए शरणागत करने की प्रार्थना करते हैं, तो तुलसीदास रामजी से पूछते हैं, ‘काहे को हरि मोहि बिसारो। संत पुरंदरदास खुद को दुर्गुणों का दास बताते …

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मोक्ष के उपाय

प्रत्येक प्राणी किसी-न-किसी रूप में हर क्षण खुश रहने की आकांक्षा रखता है। वह किसी ऐसे अमृतरूपी अमोघ साधन की खोज में लगा रहता है, जो उसे सुखी-समृद्ध व स्वस्थ रखे। वेदों में वायु, जल, अन्न, औषधि, विद्या, सत्य, विज्ञान, पवित्रता, सौंदर्य, कांति आदि को आत्मा-परमात्मा का नाम बताया गया है। इन सबके सदुपयोग से व्यक्ति अमर हो जाता है। …

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