स्वामी कृष्ण परमहंस का मूल मंत्र था, ‘प्रत्येक प्राणी में आत्मा स्वरूप भगवान् विद्यमान हैं। यदि किसी प्राणी की सेवा करोगे , तो समझ लो कि साक्षात् परमात्मा की सेवा का पुण्य स्वतः प्राप्त हो रहा है। यदि किसी को दुःख पहुँचाओगे, तो ईश्वर के प्रकोप को सहन करना ही पड़ेगा। स्वामी रामकृष्ण प्रत्येक पुरुष में भगवान् के दर्शन करते …
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सेवा-परोपकार सर्वोपरि
भारतीय संस्कृति मानवता और सहिष्णुता का संदेश देती रही है । कहा गया है, ‘एक सत् विप्रा बहुधा वदंति’ यानी उपासना के सभी मार्ग अंततः चरम सत्य तक ही पहुँचाते हैं। आयरलैंड में जन्मी मार्गरेट नोबल नामक युवती ने स्वामी विवेकानंद के उपदेशों से प्रभावित होकर अपना सर्वस्व भारत व भारतीय संस्कृति की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। …
Read More »प्रेम ही परमात्मा
महर्षि अरविंद से एक दिन एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया, ‘क्या ईश्वर को प्रत्यक्ष देखा जा सकता है?’ महर्षि ने उत्तर दिया, ‘जिस प्रकार प्रेम और सुख की मात्र अनुभूति की जा सकती है, उसी प्रकार सच्चा प्रेम करना सीखो, ईश्वर की अनुभूति स्वयं होने लगेगी । ‘ कुछ क्षण रुककर उन्होंने फिर कहा, ‘क्या कोई वायु, गंध आदि का …
Read More »लोभ-लालच से दूर
कौशांबी के राजा जितशत्रु विद्वानों का बड़ा सम्मान करते थे। उन्होंने चौदह विद्याओं में पारंगत तथा परम तपस्वी ब्राह्मण काश्यप को राजपंडित मनोनीत किया था। अचानक काश्यप की मृत्यु हो गई। उनके पुत्र कपिल ने एक दिन अपनी माँ से पूछा, ‘माँ, जब राजा का पुत्र राजा की जगह ले सकता है, तो मैं राजपंडित क्यों नहीं बन सकता?’ माँ …
Read More »तप का रहस्य
स्वामी रामतीर्थ एक बार किसी तीर्थ में भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि एक साधुवेशधारी रेती पर बैठा हुआ है। उसके चारों ओर अग्नि प्रज्ज्वलित थी। उसके आस-पास देखने वालों की भारी भीड़ लगी थी। पूछने पर पता चला कि वह कोई तपस्वी बाबा हैं और वहाँ तप कर रहे हैं। इस पर स्वामीजी ने कहा, ‘तप एकांत में …
Read More »क्रोध से सर्वनाश
सभी धर्मग्रंथों में काम, क्रोध और लोभ को पतन का कारण बताया गया है। भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेत वयं त्यजेत॥' अर्थात् काम, क्रोध और लोभ नरक के द्वार हैं। ये तीनों आत्मा को नष्ट कर देते हैं, इसलिए इनको त्यागना ही उचित है। इच्छाओं की पूर्ति में बाधा आने से अनायास क्रोध पनपता …
Read More »सबसे अच्छा गुण
भगवान् श्रीराम समय-समय पर अपने गुरुदेव वशिष्ठजी के आश्रम में जाकर उनका सत्संग किया करते थे । एक दिन सत्पुरुषों के सत्संग के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए महर्षि वशिष्ठजी ने कहा, ‘रघुकुल भूषण राम! जिस प्रकार दीपक अंधकार का नाश करता है, उसी प्रकार विवेक ज्ञान संपन्न महापुरुष हृदय स्थित अज्ञानरूपी अंधकार को सहज ही में हटा देने में …
Read More »परोपकाराय पुण्याय
राजगृह में धन्य नामक बुद्धिमान सेठ रहता था। उसकी पत्नी का निधन हो गया। उसकी चार पुत्रवधुएँ थीं-उज्झिका, भोगवती, रक्षिका और रोहिणी। सेठ ने सोचा कि क्यों न इन चारों बहुओं को परखकर किसी एक को घर का दायित्व सौंप दिया जाए। एक दिन उसने चारों बहुओं को पास बिठाया और कहा, तुम चारों को धान के पाँच-पाँच दाने देता …
Read More »बुरा न देखो, न सुनो
वेद, पुराण, बाइबिल आदि सभी ग्रंथों में किसी की निंदा करने और सुनने तथा दोष दर्शन को वाणी, नेत्रों और कानों का पाप कहा गया है। बाइबिल में लिखा है, ‘जो बुराई सुनता है, किसी की निंदा करता है, वह व्यर्थ ही अपना शत्रु पैदा करता है। जो किसी की बुराई देखने को तत्पर रहता है, वह अपनी आँखों को …
Read More »दान में अभिमान कैसा
ईसा के एक शिष्य को शेखी बघारने की आदत थी। एक दिन वह ईसा के दर्शन को पहुँचा और बोला, ‘आज मैं पाँच गरीबों को खाना खिलाकर आया हूँ। जब तक मैं किसी की सहायता न कर दूँ, मुझे चैन नहीं मिलता। बिना प्रार्थना किए मुझे नींद भी नहीं आती। ईसा उसे उपदेश देते हुए कहते हैं, ‘तुम्हारा आज का …
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