यह बात त्रेतायुग में उस समय की है जब केवट भगवान के चरण धो रहा हैं, वह भगवान राम का एक पैर धोते और उसे निकालकर कठौती से बाहर रख देते हैं। और जब दूसरा धोने लगता है तो पहला वाला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है। केवट दूसरा पैर बाहर रखता है। …
Read More »God Leela
गणेशजी ने यूं चकनाचूर किया था कुबेर का घमंड
एक बार की बात है। कुबेर को अपने धन-वैभव पर बहुत अभिमान हो गया था। उन्होंने सोचा कि मेरे पास इतनी समृद्धि है, तो क्यों न मैं शंकरजी को अपने घर पर भोजन का न्योता दूं औैर उन्हें अपना वैभव दिखाऊं। यह विचार लेकर कुबेर कैलाश पर्वत गए और वहां शंकरजी को भोजन पर पधारने का न्योता दिया। शंकरजी को …
Read More »शिवजी की प्रतिमा के सामने नंदीजी की मूर्ति स्थापित करने की कथा
शिव की मूर्ति के सामने या उनके मंदिर के बाहर शिव के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित होती है। नंदी बैल को पुराणों में भी विशेष स्थान दिया गया है। नंदी अपने ईश्वर शिव का केवल एक वाहन ही नहीं बल्कि उनके परम भक्त होने के साथ-साथ उनके साथी, उनके गणों में सबसे ऊपर और उनके मित्र भी हैं। कथा …
Read More »काकासुर की हार
कंस ने दूसरे दिन अपने दरबार में मंत्रियों को बुलवाया और योगमाया की सारी बातें उनसे बतायीं। कंस के मंत्री दैत्य होने के कारण स्वभाव से ही क्रूर थे। वे सब देवताओं के प्रति शत्रुता का भाव रखते थे। अपने स्वामी कंस की बात सुनकर उन सबों ने कहा- ‘यदि आपके शत्रु विष्णु ने कहीं और जन्म ले लिया …
Read More »बाल समय रबि भक्षि लियो
एक बार की बात है माता अंजना हनुमान जी के कुटी में लिटाकर कहीं बाहर चली गयीं। थोड़ी देर में इन्हें बहुत तेज भूख लगी। इतने में आकाश में सूर्य भगवान उगते हुए दिखलायी दिए। इन्होंने समझा ये कोई लाल-लाल सुंदर मीठा फल है। बस, एक ही छलांग में ये सूर्य भगवान के पास जा पहुंचे और उन्हें पकड़कर मुंह …
Read More »हनुमान जी और गोवर्धन का संबन्ध
भगवान श्री कृष्ण से पहले इसलिए हनुमान जी ने उठाया था गोवर्धन पर्वत यह तो सब जानते हैं कि इन्दर के कोप से गोकुलवासियों बचने के लिए श्री कृष्ण ने गोवेर्धन को अपनी छोटी ऊँगली पर उठा लिया था। परन्तु बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि इसके पीछे एक और वजह है। जैसे कि हम सब जानते हैं …
Read More »भगवान श्रीब्रह्मा
महाप्रलय के बाद भगवान नारायण दीर्घ कालतक योगनिद्रा में निमग्र रहे। योगनिद्रा से जगने के बाद उनकी नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ। जिसकी कर्णिकाओंपर स्वयम्भू श्रीब्रह्मा प्रकट हुए। उन्होंने अपने नेत्रों को चारों ओर घुमाकर शून्य में देखा। इस चेष्टा से चारों दिशाओं में उनके चार मुख प्रकट हो गये। जब चारों ओर देखने से उन्हें कुछ भी …
Read More »Work of Krishnananda Saraswati
Work of Krishnananda Saraswati Worshipful Sri Swami Krishnanandaji Maharaj took birth on the 25th of April, 1922, and was named Subbaraya. He was the eldest of five children in a highly religious and orthodox Brahmin family well versed in the Sanskrit language, the influence of which was very profound on the young boy. He attended high school in Puttur (South …
Read More »केवट के भाग्य (Fate of Kevat)
श्रीराम के बार-बार मना करने पर भी अयोध्यावासी वापस नहीं लौट रहे थे। श्रीराम भी उनके दु:ख से दु: खी थे। पूरी रात अभी बाकी थी। तभी श्रीराम ने सुमन्त्र को रथ ले चलने के लिए कहा और सीता तथा लक्ष्मण के साथ अयोध्या वासियों को सोता हुआ छोड़कर वे चल दिए। जब राम, लक्ष्मण, सीता गंगा पार करने …
Read More »शबरी की प्रेमभक्ति
भगवान श्रीराम के अनन्य भक्तों में एक भील जाति की कन्या भी थी श्रमणा। जिसे बाद में शबरी के नाम से जाना गयाl उसे जब भी समय मिलता, वह भगवान की पूजा- अर्चना करती। बड़ी होने पर जब उसका विवाह होने वाला था तो अगले दिन भोजन के लिए काफी बकरियों की बलि दी जानी थी। यह पता लगते …
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