रासलीला तथा अन्यान्य प्रकरणों में श्रीकृष्ण नाम के साथ महर्षि वेदव्यास के द्वारा ‘योगेश्वर’ शब्द का प्रयोग होते हुए देखकर साधारण पाठकों के हृदय में सन्देह उत्पन्न होता है कि इस प्रकार के पुरुष योगेश्वर कैसे हो सकते हैं । विदेशी लोगों ने तो भ्रमवश श्रीकृष्णभगवान को ‘INCARNATION OF LUST’ अर्थात् कामकलाविस्तार का ही अवतार कह दिया है । हमारे …
Read More »Guru_Profile
आदर्श गृहस्थ
श्रीमद्भागवत के वर्णन से यह पता लगता है कि भगवान श्रीकृष्ण आदर्श गृहस्थ थे । भागवत में वर्णन आता है कि जब श्रीनारद जी के दिल में यह प्रश्न उठा कि एक श्रीकृष्ण 16108 रानियों के साथ कैसे गृहस्था चला रहे हैं । तो इसकी जांच करने के लिए वह द्वारका पहुंचे और भगवान की एक – एक पत्नी के …
Read More »परात्पर श्रीकृष्णावतार का प्रयोजन विमर्श
दीनदयालु भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्णचंद्र के चरित्रावलोकन में सतत निमग्न रहनेवाले, ‘अनन्याश्चिन्तयन्तोमाम्’ इत्यादि वचन के अनुसार पराकाष्ठा की अनन्यतापर आरूढ़ हुए आश्रितों के लिए दीनबंधु परम प्रभु को क्या – क्या नहीं करना पड़ता है ? सब प्रकार की सेवा करना, दूत बनना, सारथि बनना और उसी समय गुरु बनकर उपदेश भी देना इत्यादि अनेक भाव से अपने आश्रितों को प्रसन्न …
Read More »एक पत्नीव्रत धर्म
श्रीरघुनाथ जी ने अकनारीव्रत को चरितार्थ करके महान आदर्श उपस्थित कर दिया । यद्यपि आपको स्मृतिकारों के प्रमाणनुसार चार विवाहों की प्रचलित प्रथा की मर्यादा स्वीकार थी, परंतु इधर एकपत्नीव्रत को ही पुष्ट करना था । इसलिए एक सीता जी के साथ ही विवाह की चारों रीतियां पूरी कर ली गयीं । जैसे – 1) गांधर्व विवाह फुलवारी में हुआ …
Read More »मौत की भी मौत
जो भगवान् के भक्त होते हैं , उनके स्वमी भी भगवान् ही होते हैं । उनपर मौत का अधिकार नहीं होता । अन्यथा चेष्टा करने से मौत की भी मौत हो जाती है । एक बार गोदावरी नदी के तट पर ‘श्वेत’ नाम के एक ब्राह्मण रहते थे । उनका सारा समय सदाशिव की पूजा में व्यतीत होता था । …
Read More »हर – भगवान शिव के अवतार
शैवागम के अनुसार भगवान रुद्र के आठवें स्वरूप का नाम हर है । भगवान हर को सर्वभूषण कहा गया है । इसका अभिप्राय यह है कि मंगल और अमंगल सब कुछ ईश्वर – शरीर में है । दूसरा अभिप्राय यह है कि संहारकारक रुद्र में संहार – सामग्री रहनी ही चाहिए । समय पर सृष्टि का सृजन और समय पर …
Read More »श्रीराम भक्त
भगवान श्रीरामचंद्र जी ऐसे शरणागतवत्सल हैं कि जो जीव एक बार भी सच्चे हृदय से उनके शरणागत हो गया, उसके वचन और कर्तव्य की चूक पर फिर कभी दृष्टि न देकर वे केवल उसके ‘हिए’ के निश्चय की ओर ही देखते हैं । वे कतहते हैं कि ‘इस जीवन ने अनन्य गति से मुझको अपना शरण्य निश्चय कर लिया है, …
Read More »श्रीराम मर्यादा चरित्र
पिता – भक्ति श्रीरघुनाथ जी नित्य प्राय: काल उठकर श्रीपिता जी को नमस्कार करते थे और अपने संपूर्ण कार्य उनकी आज्ञा के अनुसार करके अपनी सेवा से उन्हें प्रसन्न रखते थे । यहां तक कि उन्होंने अयोध्या की चक्रवर्ती राज्यश्री को पिता के वचन के नाते तृणवत् त्यागकर पितृभक्ति का अनुपम आदर्श चरितार्थ कर दिखाया । सारे संसार को आप …
Read More »गीता के उपदेष्टा श्रीकृष्ण
परब्रह्म पुरुषोत्तम भगवान अपनी माया का अपनी योगमाया का अधिष्ठान करके मनुष्य रूप से सृष्टि में प्रकट होते हैं और संसार – चक्र की स्थानविच्युता धुरी को पुन: सुव्यवस्थित कर, अनेकता में एकत्व का अर्थात् भिन्न – भिन्न रूप से दिखनेवाले व्यक्तियों का मूलस्वरूप एक ही है, यह भान होने के लिए सुविधा प्रदान कर देते हैं । इस बात …
Read More »भगवान शिव का भिक्षुवर्यावतार
विदर्भ देश में एक सत्यरथ नाम से प्रसिद्ध राजा थे । धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करते हुए उनका बहुत सा समय सुखपूर्वक बीत गया । तदंनतर एक दिन शाल्व देश के राजा ने उनकी राजधानीपर आक्रमण कर दिया । शत्रुओं के साथ युद्ध करते हुए राजा सत्यरथ की सेना नष्ट हो गयी । फिल दैवयोग से राजा भी शत्रुओं के …
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