नमामि शंकर, नमामि हर हर, नमामि देवा महेश्वरा । नमामि पारब्रह्म परमेश्वर, नमामि भोले दिगम्बर ॥ है धन्य तेरी माया जग में, ओ दुनिए के रखवाले शिव शंकर डमरू वाले, शिव शंकर भोले भाले जो ध्यान तेरा धर ले मन में, वो जग से मुक्ति पाए भव सागर से उसकी नैया तू पल में पर लगाए संकट में भक्तो में …
Read More »Hindu
हे शिवशंकर नटराजा
निसदिन करता मैं नाम जपन तेरा, शिव शिव शिव शिव गुंजत मन मोरा । तुम हो मरे प्रभु, तुम ही कृपालु, करूँ समर्पण दीन दयालु ॥ तोरी जटा से बहती पवित्रता, तीन्ही लोको के तुम हो दाता । डमरू बजाया, तमस भगाया, जड़ चेतन को तुम्ही ने जगाया ॥ अलख निरंजन शिव मोरे स्वामी, तुम ही हो मेरे अंतरयामी । …
Read More »परंपरा का निर्माण
जीवन के साथ आयुर्वेद का गहरा संबंध होने के कारण पितामह ब्रह्मा ने आयुर्वेद के पठन – पाठन की परंपरा स्थापित की । ब्रह्मा जी ने इस चिकित्सा – शास्त्र को अपने मानसपुत्र दक्ष को और दक्ष ने अश्विनीकुमारों को तथा अश्विनीकुमारों ने देवराज इंद्र को पढ़ाया । इस तरह यह परंपरा आजतक चलती चली आ रही है । यद्यपि …
Read More »चिकित्सकों के चिकित्सक भगवान शिव
भगवान रुद्र ने ओषधियों का निर्माण करके जगत का इतना कल्याण किया है कि वेद ने भी भगवान शंकर सम्पूर्ण शरीर को ही भेषज मान लिया है । कहा है कि – या ते रुद्र शिवा तनू शिवा विश्वस्य भेषजी । शिवा रुद्रस्य भेषजी तया नो मृड जीवसे ।। सचमुच आयुर्वेद भगवान शिव के रूप में ही अभिव्यक्त हुआ था, …
Read More »दक्षिणा क्यों है महत्त्वपूर्ण
दक्षिणा प्रदान करने वालों के ही आकाश में तारागण के रूप में दिव्य चमकीले चित्र हैं, दक्षिणा देने वाले ही भूलोक में सूर्य की भांति चमकते हैं, दक्षिणा देने वालों को अमरत्व प्राप्त होता है और दक्षिणा देने वाले ही दीर्घायु होकर जीवित रहते हैं । शास्त्रों में दक्षिणारहित यज्ञ को निष्फल बताया गया है । जिस वेदवेत्ता ने हवन …
Read More »संस्कार क्या हैं ?
भारतीय संस्कृति में संस्कार का साधारण अर्थ किसी दोषयुक्त वस्तु को दोषरहित करना है । अर्थात् जिस प्रक्रिया से वस्तु को दोषरहित किया जाएं उसमें अतिशय का आदान कर देना ही ‘संस्कार’ है । संस्कार मन:शोधन की प्रक्रिया हैं । गौतम धर्मसूत्र के अनुसार संस्कार उसे कहते हैं, जिससे दोष हटते हैं और गुणों की वृद्धि होती है । हमारे …
Read More »जन्म – कर्म
भगवान के जन्म – कर्म की दिव्यता एक अलौकिक और रहस्यमय विषय है, इसके तत्त्व को वास्तव में तो भगवान ही जानते है अथवा यत्किंचित उनके वे भक्त जानते हैं, जिनको उनकी दिव्य मूर्ति का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ हो, परंतु वे भी जैसा जानते हैं कदाचित वैसा कह नहीं सकते । जब एक साधारण विषय को भी मनुष्य जिस प्रकार …
Read More »भगवान शिव के अवतार
जो ब्रह्मा होकर समस्त लोकों की सृष्टि करते हैं, विष्णु होकर सबका पालन करते हैं और अंत में रुद्ररूप से सबका संहार करते हैं, वे सदाशिव मेरी परमगति हों । शैवागम में रुद्र के छठें स्वरूप को सदाशिव कहा गया है । शिवपुराण के अनुसार सर्वप्रथम निराकार परब्रह्म रुद्र ने अपनी लीला शक्ति से अपने लिए मूर्ति की कल्पना की …
Read More »भगवान कौन है ? (Who is God?)
प्राय: यह प्रश्न किया जाता है – भगवान कौन है ? और यह भगवान कहां रहता है ? गीता में कृष्ण ने कहा है – ‘मन की आंखें खोलकर देख, तू मुझे अपने भीतर ही पाएगा’ । भगवान कण – कण में व्याप्त हैं । ‘भगवान’ नाम कब प्रारंभ हुआ ? किसने यह नाम दिया, यह कोई नहीं जानता । …
Read More »कृष्णदर्शन – भगवान शिव के अवतार
श्राद्धदेव नामक मनु के सबसे छोटे पुत्र का नाम नभग था । भगवान शिव ने उन्हें ज्ञान प्रदान किया था । मनुपुत्र नभग बड़े ही बुद्धिमान थे । जिस समय नभग गुरुकुल में निवास कर रहे थे उसी बीच उनके इक्ष्वाकु आदि भाईयों ने नभग लिए कोई भाग न देकर पिता की सारी संपत्ति आपस में बांट ली और अपना …
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