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Religious Places

मूर्तिकार की कल्पना

praan-partistha

मूर्तिकार की कल्पना, उंगलियों की जादूगरी, छेनी की हजारों चोट और रेती की घिसाई। और इस तरह महीनों की तपस्या के बाद वह मूर्ति उभरती है, जिसमें देवता निवास करते हैं। पर मूर्ति से देवता होने की प्रक्रिया भी इतनी सहज कहाँ… सोच कर देखिये, पूरा संसार बड़े बड़े पत्थरों, पहाड़ों से भरा हुआ है। बड़े बड़े पहाड़ तोड़ कर …

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सास बहु और ठाकुर जी

saas-bahu-thakurji

सासु माँ ने विचार किया के ठाकुर जी की सेवा का कार्य अब बहु को देना पड़ेगा लेकिन बहु को तो कोई अक्कल है ही नहीँ के ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी हैँ।

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ओम जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी।

mahakali-mantra

ओम जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिव धात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते॥ ओम जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिव धात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते॥

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पुरुषोतम मास/अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 18

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 18

नारद जी बोले – हे तपोनिधे! उसके बाद साक्षात्‌ भगवान्‌ बाल्मीकि मुनि ने राजा दृढ़धन्वा को क्या कहा सो आप कहिये ॥ श्रीनारायण बोले – वह राजर्षि दृढ़धन्वा अपने पूर्व-जन्म का वृ्त्तान्त सुनकर आश्चीर्य करता हुआ मुनिश्रेष्ठ बाल्मीकि मुनि से पूछता है ॥ दृढ़धन्वा बोला – हे ब्रह्मन्‌! आपके नवीन-नवीन सुन्दर अमृत के समान वचनों को बारम्बार पान कर भी मैं तृप्त …

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कोरकू समुदाय

दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ था। ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी झेल रहा देश अत्याचार सहते हुए खून के आंसू रो रहा था

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आप भी डायन

dayan-dadi

ग्यारह बजने को आए ... जाने कब दोपहर का खाना चढाऐगी चूल्हे पर .... और जाने कब खाने को मिलेगा

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तक़दीर और तदबीर

taqdeer-tabdeer

जब भी उसके पास चाट खाने जाओ तो ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है, जल्दी चाट लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नहीं होती

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कर्मा जरूर लौटता है

haath kata-ladka

एक बुजुर्ग आदमी भुख से व्याकुल था,वो एक तालाब पर जाता है और बड़ी मशक्कत से एक मछली पकड़ता है कि चलो इससे मैं भूख मिटा सकुंगा।

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पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 15

पुरुषोतम मास /अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 15

श्रीनारायण बोले :- सुदेवशर्म्मा ब्राह्मण हाथ जोड़कर गद्‌गद स्वर से भक्तवत्सल श्रीकृष्णदेव की स्तुति करता हुआ ॥ हे देव! हे देवेश! हे त्रैलोक्य को अभय देनेवाले! हे प्रभो! आपको नमस्कार है। हे सर्वेश्वर! आपको नमस्कार है, मैं आपकी शरण आया हूँ ॥ २ ॥ हे परमेशान! हे शरणागतवत्सल! मेरी रक्षा करो। हे जगत्‌ के समस्त प्राणियों से नमस्कार किये जाने वाले! हे …

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