स्वामी विवेकानंद की ख्याति दिन प्रतिदिन फैलती रही । उनका गुणगान सुनकर अलवर राज्य के दीवान महोदय ने उन्हें अपने घर बुलाया । स्वामी जी का सत्संग करके दीवान जी ने अपना महोभाग्य माना । दूसरे दिन दीवान जी ने महाराज से इनके बारे में एक पत्र लिखकर चर्चा की । महाराज उस समय अलवर से दो मील दूरी पर …
Read More »Story Katha
राजा भोज और महामद की कथा
सूतजी ने कहा – ऋषियों ! शालिवाहन के वंश में दस राजा हुए । उन्होंने पांच सौ वर्ष तक शासन किया और स्वर्गवासी हुए । तदनंतर भूमण्डल पर धर्म मर्यादा लुप्त होने लगी । शालिवाहन के वंश में अंतिम दसवें राजा भोजराज हुए । उन्होंने देश की मर्यादा क्षीण होती देख दिग्विजय के लिये प्रस्थान किया । उनकी सेना दस …
Read More »कीड़े से महर्षि मैत्रेय
भगवान व्यास सभी जीवों की गति तथा भाषा को समझते थे । एक बार जब वे कहीं जा रहे थे तब रास्ते में उन्होंने एक कीड़े को बड़े वेग से भागते हुए देखा । उन्होंने कृपा करके कीड़े की बोली में ही उससे इस प्रकार भागने का कारण पूछा । कीड़े ने कहा – ‘विश्ववंध मुनीश्वर ! कोई बहुत बड़ी …
Read More »देशराज एवं वत्सराज आदि राजाओं का आविर्भाव
सूत जी ने कहा – भोजराज के स्वर्गारोहण के पश्चात् उनके वंश में सात राजा हुए, पर वे सभी अल्पायु, मंद बुद्धि और अल्पतेजस्वी हुए तथा तीन सौ वर्ष के भीतर ही मर गये । उनके राज्यकाल में पृथ्वी पर छोटे – छोटे अनेक राजा हुए । वीर सिंह नाम के सातवें राजा के वंश में तीन राजा हुए, जो …
Read More »कर्म का चरित्र पर प्रभाव
कर्म शब्द ‘कृ’ धातु से निकला है, ‘कृ’ धातु का अर्थ है करना । जो कुछ किया जाता है, वहीं कर्म है । इस शब्द पारिभाषिक अर्थ ‘कर्मफल’ भी होता है । दार्शनिक दृष्टि से यदि देखा जाएं, तो इसका अर्थ कभी कभी वे फल होते हैं, जिनका कारण हमारे पूर्व कर्म रहते हैं । परंतु कर्मयोग में ‘कर्म’ शब्द …
Read More »प्रेममयी श्री कृष्णा
श्रीकृष्णजी का जीवन प्रेम का जीवन है, श्रीकृष्णजी का संगीत प्रेम का संगीत है, श्रीकृष्णजी की शिक्षाएं प्रेमतत्त्वों से परिपूर्ण हैं । गोपाल – कृष्ण ने दरिद्र , सरल और भोले भाले साथियों से मित्रता की और अपने प्रेमबल से उनके मन और आत्मा को ऐसे मोह लिया कि उनकी आत्माएं श्रीकृष्णजी की आत्मा में मिलकर एक हो गयी । …
Read More »महर्षि सौभरि की जीवन गाथा
वासना का राज्य अखण्ड है । वासना का विराम नहीं । फल मिलने पर यदि एक वासना को हम समाप्त करने में समर्थ भी होते हैं तो न जाने कहां से दूसरी और उससे भी प्रबलतर वासनाएं पनप जाती हैं । प्रबल कारणों से कतिपय वासनाएं कुछ काल के लिये लुप्त हो जाती हैं, परंतु किसी उत्तेजक कारण के आते …
Read More »भगवान श्रीकृष्ण और भावी संसार
भरतखण्ड का इतिहास महाभारत की ही शाखा है । महाभारत का अर्थ है महान भारतवर्ष । हमलोग भारतवर्ष को महान देखना चाहते हैं । महाभारत के समय से ही धर्मराज्य की स्थापना के लिये संग्राम जारी है । भगवान श्रीकृष्ण का जिस समय अवतार हुआ, उस समय यह संग्राम जोरों पर था । भगवान श्रीकृष्ण का अवतार एक विशेष …
Read More »साधना में मनोयोग की महत्ता
वैताल ने बोला – राजन् ! उज्जयिनी में महासेन नामक एक राजा था । उसके राज्य में देवशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था । देवशर्मा का गुणाकार नाम का एक पुत्र था जो द्यूत, मद्य आदि का व्यसनी था । उस दुष्ट गुणाकर ने पिता सारा धन द्यूत आदि में नष्ट कर दिया । वह पृथ्वी पर इधर …
Read More »देवी षष्ठी की कथा
प्रियव्रत नाम से प्रसिद्ध एक राजा हो चुके हैं । उनके पिता का नाम था स्वायम्भुव मनु । प्रियव्रत योगिराज होने के कारण विवाह करना नहीं चाहते थे । तपस्या में उनकी विशेष रुचि थी, परंतु ब्रह्मा जी की आज्ञा तथा सत्प्रयत्न के प्रभाव से उन्होंने विवाह कर लिया । विवाह के पश्चात् सुदीर्घकाल तक उन्हें कोई भी संतान नहीं …
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