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दिल का रिश्ता

दिल का रिश्ता
” अरे…. सुनती हो “
हां क्यों नहीं सुनूंगी.. बहरी थोड़े ही हो गई हूं माना.. बालों में सफेदी आ गई है, आंखों में चश्मा चढ़ गया पर सुनो जी ….. कान मेरे बराबर सुनते हैं, अच्छा बोलो क्या
कह रहे थे “!!!
” चलो थोड़ा बाजार की तरफ चलते हैं, तुम्हें कुछ सामान चाहिए था न
लिस्ट बना ली कि बनानी है?
” लिस्ट क्या बनाना, मुंह जबानी याद है मुझे… थैला रख लो… चलो
बाहर निकलो ताला लगा दूं “!!
” कहां चले गुप्ता जी “?
” नमस्कार खरे साहब बस यूं ही पास के बाज़ार तक.. थोड़ा सामान भी ले लेंगे और टहलना भी हो जाएगा ” !!
” चलो सामान तो सब ले लिया , एक मिनिट ठहरो तुम्हारे जूडे के लिए गजरा लेना तो रह गया, ठहरो… मैं लेकर दो मिनट मेंआता
हूं “
” अरे रहने दो न क्या गजरा वजरा…. कहां रोड क्रॉस करते फिरोगे… गाड़ियों की तेज़ रोशनी में वैसे भी तुम्हारी आंखें चौंधियां
जाती हैं… छोड़ो रहने भी दो, कहां सफेद बालों में गजरा लगाऊंगी ” !!
” सुनते कहां हैं किसी की… मानेंगे थोड़ी ही, चले गए “!!
” इतनी देर हो गई.. आए क्यों नहीं? ये भीड़ सी क्यों हो रही है वहां? कहां रह गए? फोन लगाती हूं… पता नहीं क्या लेने लगे, कोई मिल गया होगा… बतियाने लग गए होंगे… बुढापे में हल्कान, परेशान करके रख दिया है मुझे “!!
” चलो फ़ोन तो उठाया… हैलो …. ये किसकी आवाज़ है… इनके फ़ोन पर कौन बोल रहे हो भाई ” ?
” मैडम ये एक्सीडेंट हो गया है इन भाईसाहब का, इनके हाथ में ये फ़ोन है “!!
सुनते ही मैं दौड़ पड़ी… सामने खून में लथपथ सुभाष पड़े थे, हाथ में गजरे का पैकेट, आंखें खुली…
इससे ज्यादा देखने की हिम्मत नहीं बची… होश खोकर बेसुध हो गईं !!
जब होश आया तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था.. पुलिस डॉक्टर अपने अपने प्रश्न लिए खड़े थे, मैं कभी उधर देखती कभी इधर, डॉक्टर ने आहिस्ता आहिस्ता सच्चाई से रूबरू करवाया, पर मैं रो भी नहीं पा रही, कुछ समझ नहीं आ रहा, कान जैसे बंद हो गए, सन्नाटा सा पसर गया हो जैसे!!
रिश्तेदारों को बुलाने के लिए कहा… किसे बुलाऊं ? प्रेम विवाह की परिणीति ससुराल से बाहर निकालकर हुई, जीते जी सास ससुर ने दहलीज पर कदम न रखने दिया… एक मां से उसका बेटा छीना, ऐसी बददुआ दी उस मां ने कि मां बनने का सौभाग्य भी न मिला … भाई के आग्रह पर उसके बेटे को गोद लिया वो भी स्वार्थवश अपने सपने पूरे करने विदेश गया तो वहीं का होकर रह गया!!
भाई की साजिश समझ आई पर क्या करते, वक्त गुजर गया हम कुछ न कर सके!!
सुभाष!! अपने जीते जी नेत्रदान का संकल्प ले चुके थे, उनकी मर्जीनुसार उनके नेत्र एक नवयुवती को लगाए गए, वो ऑपरेशन के पहले अपने पति का हाथ थामे मुझसे मिलने आई, पैरो में झुकी तो कलेजे से लगा लिया… अलग सा स्पर्श लगा… जोर से भींच लिया और आंसुओं का रुका बांध मेरा टूटकर बह निकला!!
मेरा पता फोन नंबर भी उन लोगो ने ले लिया!!
पड़ोसियों और दोस्तों की मदद से सब काम हो गए…. पर मैं स्तब्ध सी हो गई, दिमाग ने काम करना बंद कर दिया, कोई कुछ खिला जाता तो खा लेती, वरना शून्य में देखती बैठी रह जाती !!
सोचती कोई तो ” ऐसा रिश्ता” होता जो बिल्कुल अपना होता, जिनके पास रिश्ते हैं उन्हें कदर नहीं… मैं तरस रही हूं और मेरे पास मेरा कहने को कोई भी नहीं!!
सूरज की रोशनी चारों तरफ़ फैल गई, गहरी सांस लेकर उठी, अचानक दरवाज़े की घंटी बजी… इतनी सुबह कौन होगा, काम वाली को तो हटा दिया !! क्या करवाऊं उससे काम!!
कौन है? कहते हुए जैसे ही दरवाज़ा खोला तो पहचान नहीं पाई…. सामने एक पति पत्नी खड़े थे, दिमाग पर जोर दिया तो याद आया…. इसी लड़की को सुभाष जी की आंखें लगाई गई थी, उसकी आंखों को हसरत भरी नजरों से देखते देखते आंसू बहते चले गए… दोनों ने मुझे प्यार से बैठाया, आंसू पोंछे, पानी पिलाया और बोले…
“आपने हम दोनों को जिन्दगी की सबसे बड़ी खुशी दी है, इस खुशी के लिए रमा ने बहुत लंबा इंतजार किया है … हम जानते हैं आपका और हमारा न खून का रिश्ता है न कोई भी सम्बंध… पर हम ” एक नया रिश्ता”
बनाने आएं हैं वो रिश्ता है ” मां और बच्चों का रिश्ता” … बनेंगी न आप हमारी मां “.. दोनों आशा और उम्मीद से मेरी ओर देख रहे थे। , न कैसे कहती सिर हां में हिला दिया और दोनों को गले से लगा लिया !!!
समझ गई ईश्वर को भी तरस आ गया मुझ पर… तभी जीवन की संध्या में अपना कहने को ऐसे मधुर रिश्ते में बांध दिया!!
अचानक मेरी आंखें किसी ने बंद कर दी, देखा तो अनु और ओमी खिलखिला पड़े… दादी कहां खो जाती हो, चलो मम्मी पापा खाने पर आपका इंतजार कर रहे हैं, और मैं चल पड़ी अपने बच्चों के साथ!!
रिश्तों की हमेशा कद्र करो, किस्मत से मिलते और बनते हैं, इनके बिना जीवन अधूरा है, इन्हें पूरी निष्ठा, प्रेम और आत्मा के साथ निभाओ!!

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