एक नगर में एक जुलाहा रहता था। वह स्वाभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा वफादार था।उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था।
एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी। वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुँचे कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता ?
उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था। वहाँ पहुँचकर वह बोला यह साड़ी कितने की दोगे ?
जुलाहे ने कहा – दस रुपये की।
तब लडके ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिये और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला – मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए। इसका क्या दाम लोगे ?
जुलाहे ने बड़ी शान्ति से कहा पाँच रुपये।
लडके ने उस टुकड़े के भी दो भाग किये और दाम पूछा ?जुलाहे अब भी शांत था। उसने बताया – ढाई रुपये। लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया।
अंत में बोला – अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के ?
जुलाहे ने शांत भाव से कहा – बेटे ! अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या, किसी के भी काम के नहीं रहे।
अब लडके को शर्म आई और कहने लगा – मैंने आपका नुकसान किया है। अंतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूँ।
संत जुलाहे ने कहा कि जब आपने साड़ी ली ही नहीं तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूँ ?
लडके का अभिमान जागा और वह कहने लगा कि ,मैं बहुत अमीर आदमी हूँ। तुम गरीब हो। मैं रुपये दे दूँगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा,पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे ? और नुकसान मैंने किया है तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए।
संत जुलाहे मुस्कुराते हुए कहने लगे – तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो, किसान का कितना श्रम लगा तब कपास पैदा हुई। फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बीना और सूत काता। फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल हो जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता, इसका उपयोग करता। पर तुमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रुपये से यह घाटा कैसे पूरा होगा ? जुलाहे की आवाज़ में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी।
लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया। उसकी आँखे भर आई और वह संत के पैरो में गिर गया।
जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा –
बेटा, यदि मैं तुम्हारे रुपये ले लेता तो है उस में मेरा काम चल जाता। पर तुम्हारी ज़िन्दगी का वही हाल होता जो उस साड़ी का हुआ। कोई भी उससे लाभ नहीं होता।साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूँगा। पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहाँ से लाओगे तुम ?तुम्हारा पश्चाताप ही मेरे लिए बहुत कीमती है।
संत की उँची सोच-समझ ने लडके का जीवन बदल दिया।
ये कोई और नहीं ये सन्त थे कबीर…
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There was a weaver in a city. He was very calm, humble and faithful by nature. His anger never came.
Once a few boys have mischief. All of them came to that jolay thinking that how does it get angry?
One of them was the son of wealthy parents. He reached there and said, how much will he give to this sari?
Julahee said – ten rupees.
Then the boy made two pieces of sari for the purpose of teasing him and took one piece in his hand – I do not want the whole sari, half the need. What will it cost?
Julhee said calmly, five rupees.
The boy also divided two pieces of the piece and asked the price? Jules was still calm. He told – two and a half rupees. The boy was doing a piece of sari.
Lastly, I do not want this sari. What are these pieces of my work?
Julhee said calmly – son! Now these pieces are not yours, no work of anyone.
Now the boy felt ashamed and said – I have hurt you. In the end I give your sari price.
Saint Zulhey said that when you did not take sari then how can I take money from you?
The boy’s pride came and he said, I’m a very rich man. poor u. I will give the money, then I will not make any difference, but how will you cope with this loss? And if I have done the damage, then the loss should also be done to me.
Saint Jules began to smile – you can not complete this loss. Think, how much labor the farmer felt when the cotton was born. Then my wife used her hard work to make cotton and spin. Then I painted it and woven it. So much hard work is successful when it wears someone, takes advantage of it, uses it. But you broke it into pieces. How will this loss be compensated? There was great compassion and gentleness in the voice of a joke.
The boy became ashamed of water and water. His eyes came across and he fell in the feet of the saint.
Julhe, with great love, raised her hand on her back and said –
Son, if I take your buck, then my work is going on in it. But there will be the same situation of your life that happened to the sari. No one would benefit from that. The one became one, I will make the second. But once your life is destroyed in the ego, then where else will you bring it? Your repentance is very precious to me.
The high thinking of the saint changed the life of a boy.
These were none other than the saints Kabir