महाकश्यप भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य थे। बुद्ध उनकी त्याग भावना तथा ज्ञान से संतुष्ट होकर बोले- ‘वत्स, तुम आत्मज्ञान से पूरी तरह मंडित हो। तुम्हारे पास वह सब है, जो मेरे पास है। अब जाओ और सत्संदेश का जगह-जगह प्रचार-प्रसार करो।’
महाकश्यप ने ये शब्द सुने, तो वे मायूस हो गए। वह बोले, ‘गुरुदेव यदि मुझे पहले से पता होता कि आत्मज्ञान का ज्ञान होने के बाद आपसे दूर जाना पड़ता, तो मैं इसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न नहीं करता।
मुझे आपके सानिध्य में रहने में, आपके चरण स्पर्श करने में जो परमानंद की प्राप्ति होती है। उससे मैं वंचित नहीं होना चाहता हूं। मैं अपने आत्मज्ञान को भुला देना चाहता हूं।’
भगवान बुद्ध ने अपने इस अनूठे शिष्य को गले लगा लिया। उन्होनें उसे समझाया, ‘तुम सदविचारों व ज्ञान का प्रचार करते समय जहां भी रहोगे, मुझे अपने निकट देखोगे।मेरा हाथ हमेशा सदैव तुम्हारे साथ रहेगा।’ इस बात को सुनकर महाकश्यप अपने cके प्रकाश को मिटाने के लिए अभियान पर चल दिया।
संक्षेप में
हमें आत्मज्ञान की प्राप्ति तभी हो सकती है। जब हम मोह, माया और दूसरे गुणों पर आसक्त न होते हुए पूरी तरह ईश्वर और कर्म पर ध्यान दें।
Hindi to English
Mahakashey was the beloved disciple of Lord Buddha. Buddha, satisfied with his sacrificial spirit and knowledge, said, “Vatsa, you are completely engrossed in enlightenment. You have all that I have. Now go ahead and spread the message of praise. ‘
When Mahakashyap heard these words, he was dissatisfied. He said, ‘Gurudev, if I had known earlier that after having knowledge of enlightenment you had to go away, then I did not try to get it.
I get the bliss of living in your union, touching your feet. I do not want to be deprived of it. I want to forget my enlightenment. ‘
Lord Buddha embraced this unique disciple. They explained to him, ‘You will see me near you wherever you are, while preaching in your thoughts and knowledge. My hand will always be with you forever.’ Upon hearing this, Mahakashipa went on the campaign to eradicate the light of his enlightenment.
in short
Only then can we attain enlightenment. When we are not enamored on temptation, Maya and other qualities, focus solely on God and Karma.