शाम के छै सवा छै का वक्त था।बाकी स्टाफ जा चुके थे। मै अपने एक स्टाफ से अगले दिन के कामों के बारे मे प्लान कर रहा था। ‘चलो, बन्द करो’- कहते हुए मै उठा और घर के लिए चल दिया। अभी लगभग एक किलोमीटर ही चला होऊंगा कि, अचानक मोबाइल की घंटी बजी। मैने साईड मे गाड़ी रोकी। देखा कोई अनजान नम्बर से फोन था – ‘आप स्वाति के पापा हो ?’
‘जी हां, कहिए।’
‘अभी कहां हैं आप ?
‘रास्ते में, ऑफिस से निकला हूं’- मैंने कहा।
‘आप जल्दी से आ जाइए।
‘क्यों, क्या हुआ?’ मैने पूछा
‘स्वाति का एक्सीडेंट हो गया है, लेकिन चिन्ता की कोई बात नही है, वो ठीक है।’ एक ही सांस में उसने कहा।
‘कहां है वो।’ मैने पूछा
‘बॉम्बे हॉस्पिटल मे।’ उसने कहा।
‘ठीक है, मै आ रहा हूं।’ कहते हुए मै तुरन्त चल दिया।
उस दिन मै मोटर साइकिल से गया था। मुझे घबराहट महसूस होने लगी थी। स्वाति का एक-एक चित्र मेरी आंखों के सामने घूमने लगा।
बहुत ही चंचल है स्वाति। हर समय खुश रहती है। कोई भी परेशानी हो, उसे बता दो, अगले ही पल उसका हल निकाल देगी। दशहरे पर जब कन्या जिमाने के लिए छोटी बच्चियों की तलाश में श्रीमती जी परेशान हो जाती है, तो स्वाति गाड़ी में भर कर नो नो दस दस बच्चियां न जाने कहां से लेकर आ जाती है। हमेशा लोगों की हर संभव मदद को तैयार रहती है। न जाने कितने लोगों की दुआएं हैं उसके साथ। उसका तो ऊपर वाला भी कोई बाल बांका नही कर सकता। अब तक ऊपर वाले ने कभी मेरे या उसके साथ कुछ गलत नही किया। आज भी नही करेगा। कुछ नही होगा उसको।
यही सब सोचता हुआ अपने आप को सम्हाले हुए किसी तरह मै हॉस्पिटल पहुंचा। लेकिन ये क्या ? वहां पहुंचते ही मेरे पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक गई। यहां तो सब कुछ खत्म हो चुका था।
उस बात को आज चार बरस हो चुके हैं। कईं अनुत्तरित प्रश्न मेरे दिमाग में आज भी हर समय घूमते रहते हैं। ‘क्यों हुआ? कैसे हुआ? जाने अनजाने हमसे कोई अपराध हुआ होगा। किसी ने कोई कसम दी होगी। हमने कोई कसम तोड़ी होगी। पिछले जन्म की कोई गलती होगी।’ लेकिन एक घटना है जो मुझे कांटे की तरह दिन-रात चुभती रहती है।
कॉलोनियों मे अक्सर त्योहारों के वक्त किन्नरों के झुण्ड आते रहते हैं। जो घर घर जाकर न सिर्फ़ रुपयों की मांग करते हैं, बल्कि घर के लोगों से हुज्जत और अनुचित व्यवहार भी करते हैं। कई बार घर वालों को अपमानित भी करते हैं ये लोग।
उस दिन भी कोई बड़ा त्यौहार ही था, जब किन्नरों के झुण्ड ने हमारी शान्त कॉलोनी में धावा बोला था। हर घर के सामने कोई न कोई किन्नर जोर-जोर से ताली बजाकर, चिल्ला कर पैसों की मांग कर रहा था। घर वालों से हुज्जत करने की आवाजें भी कॉलोनी मे गूंज रहीं थीं। ऐसे ही एक किन्नर न सिर्फ़ हमारे घर का बाहरी गेट खोलकर अन्दर आ गया, बल्कि मेहमान की भांति साधिकार अन्दर लगा मच्छर दरवाज़ा खोलकर सीधे घर की दहलीज पर पसर कर बैठ गया, और जोर-जोर से ताली बजाते हुए चिल्ला चिल्लाकर पैसों की मांग करने लगा। मै किसी काम मे लगा था। मुझे उसका इस तरह गेट खोल कर अन्दर आना और मच्छर गेट खोल कर अन्दर दहलीज पर पसर कर बैठ जाना बिलकुल भी अच्छा नही लगा।
वैसे तो मुझे गुस्सा बहुत कम आता है। लेकिन कभी-कभार कुछ अनुचित हो तो मै आपे से बाहर भी हो जाता हूं। उस दिन भी वही हुआ था। उसके इस दुस्साहस ने मुझे बुरी तरह गुस्सा दिला दिया था।
‘उठ…. खड़े हो। …अन्दर किससे पूछ कर आया तू…। किसी का भी गेट खोलकर घर मे घुस जाओगे?… ये कोई तरीका है तुम्हारा !’ मैने जोर से डांटते हुए कहा।
‘आय हाय, आय हाय, बहुत अभिमान हे रे तुझमें।…..इतना अभिमान! …इतना अभिमान अच्छी बात नही है। देखना तू…ऐसा हादसा होगा न तेरे साथ की ज़िंदगी भर भूल नही पाएगा।’ उसने ताली बजाते हुए कहा और उठकर बिना कुछ लिए ही बाहर चला गया था।
मै उसे बाहर जाते हुए देख ही रहा था कि श्रीमती जी ने कहा, ‘ये अच्छा नहीं हुआ। बददुआ देकर चला गया तुमको।’ श्रीमती जी को मेरा उसे इस तरह से डांटना अच्छा नही लगा। घर मे उस समय सिर्फ़ हम दोनों ही थे। उसके और मेरे उचित-अनुचित व्यवहार पर थोड़ी देर हमारे बीच चर्चा भी होती रही थी।
किन्नरों के बारे मे हम लोग ज्यादा कुछ नही जानते हैं। लोग कहते हैं हमेशा इनकी दुआएं लेना चाहिए, बद्दुआएं कभी नही लेना चाहिए। लेकिन उनकी इन हरकतों से उनकी दुआएं कैसे ली जा सकती हैं। हम ये भी सुनते रहते हैं कि आजकल बहुत नकली लोग किन्नर बनकर घूमते हैं। फिर इनका व्यवहार भी अनुचित होता है। न्यूज पेपर मे भी तो कुछ-कुछ पढ़ने मे आता है आजकल। इन्हीं सब कारणों से उसकी ये हरकत मुझे नागवार गुजरी थी, और मैंने इस तरह उसको डांटा था। कुछ समय बाद हम इस बात को सामान्य बातों की तरह भूल भी गए थे। लेकिन स्वाति की इस दुर्घटना के बाद से उसके वो शब्द आज भी मेरे कानों मे गूंजते रहते हैं। मे हर वक्त सोचता रहता हूं, कोई किसी को इस तरह कैसे बद्दुआ दे सकता है।
कटिंग करा कर आने पर एक छोटा सा बाल भी आपकी बनियान मे हो, तो वो भी आपको परेशान कर देता है। जूते में उभरी हुई कील भी आपको चलने नही देती। फिर बड़े-बड़े दर्द दिल मे छुपाए सालों साल कोई कैसे जी सकता है। जिन लोगों ने कभी उस दर्द को जीया ही न हो, वो उसके बारे मे कैसे समझ सकते हैं। शायद यही वजह है कि लोग इस तरह से एक दूसरे को बद्दुआएं दे देते हैं। दुःख तो इस बात का है कि उस किन्नर ने बद्दुआ तो मुझे दी थी, फिर ये हादसा स्वाति के साथ क्यों हुआ ? ये हादसा, जिसकी चुभन मै हर पल सहता रहा हूं और ताउम्र सहता रहूंगा। उस हादसे ने मुझसे मेरा अभिमान हमेशा-हमेशा के लिए छीन लिया। जी हां, स्वाति मेरा अभिमान ही तो थी।