कहा जाता है कि राम द्वादश कला के पूर्ण अवतार थे और कृष्ण षोड्श कला पूर्ण थे, परशुराम जी चार ही कला के बतलाये जाते हैं। क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता, कि राम कृष्ण से छोटे थे और परशुराम जी उन दोनों से भी छोटे थे। इस तरह कलाओं के तारतम्य से एक ही परमात्मा छोटा बड़ा और मंझोला नाना प्रकार का बन जाता है- यह क्यों?
िदयासिलाईकी प्रत्येक तिल्ली में समस्त ब्रह्मांड भर के काष्ठ-संचय को फूंकने की शक्ति है इस अंश में कोई भी बुद्धिमान विप्रतिपन्न नहीं हो सकता। परंतु संंयोगवश जिस सलाई को जितना काष्ठ-कदम्ब प्राप्त होगा उस काष्ठ के परिणाम के अनुसार ही वहां उतना बड़ा अग्निकाण्ड समझा जाएगा। कहना न होगा कि अग्निकाण्ड का न्यूनाधिक अग्नि की दाह शक्ति के न्यूनाधिक का परिचायक नहीं,किन्तु लक्कड़ आदि दाह्ाद्रव्यों के न्यूनाधिक का ही परिचायक है, परन्तु व्यवहार में छोटा सा अग्निकाण्ड और बड़ा भयंकर अग्निकाण्ड- ऐसा बोलने में आता है। ठीक इसी प्रकार परमात्मा के सभी अवतार समान शक्ति सम्पन्न होते हैं। उन में शक्ति के न्यूनाधिक्य के कारण छोटाई बड़ाई का कोई प्रसंग नहीं। परंतु संयोगवश जिस अवतार को जितना अधिक भूभार उतारने का, जितनी अधिक लीलाएं प्रकट करने का और अपनी जितनी अधिक विभिन्न कलाओं के प्रदर्शन का अवसर मिला तदनुसार व्यवहार में उसको उतनी ही कला का कहा जाने लगा। इसलिए अमुक अवतार इतनी कला का है- इस का अर्थ यह नहीं कि कलाओं की संख्या के अनुसार उसके छोटे-बड़े होने का अनुमान दिया जाए। किंतु कौन अवतार संयोगवश कितनी लीलाएं कर पाया है, यही उन कलाओं के तारतम्य का तात्पर्य है।
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