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शेर का तीसरा पुत्र!!

एक जंगल में एक शेर अपनी शेरनी के साथ रहता था। दोनों में बहुत ही बड़ा प्रेम था। दोनों शिकार के लिए साथ-साथ जाते और शिकार मारकर साथ ही खाया करते थे।

कुछ दिनों बाद शेरनी ने दो बच्चों को जन्म दे दिया। शेर ने कहा, “अब तुम शिकार के लिए मत चला करो। घर पर ही रहकर बच्चों की देखभाल करो। में अकेला शिकार के लिए जाऊंगा और तुम्हारे लिए भी शिकार में आऊंगा।”
उस दिन से शेर अकेला ही शिकार के लिए जाने लगा। शेरनी घर पर रहकर दोनों बच्चों का पालन पोषण करने लगी।

एक दिन जब शेर शिकार के लिए गया, तो पुरे दिन घूमने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिला। वापस लौटते समय उसने लोमड़ी के बच्चे को अकेले घूमते हुए देखा। आज शेरनी के लिए कुछ भोजन नहीं मिला है, क्यों न इस लोमड़ी को ले चलु। ऐसा सोचके शेर ने उस बच्चे को पकड़ लिया।

शेर लोमड़ी के बच्चे को लेकर घर पहुंच गया। “आज जंगल में इसके आलावा कुछ नहीं मिला। बच्चा समझकर मैं इसे मारकर खा नहीं सका। तुम इसे मारकर खा जाओ।” शेर ने कहा।

शेरनी बोली, ” जब तुम इसे बच्चा समझकर मार नहीं सके, फिर मुझसे क्यों कह रहे हो की मैं इसे मारकर खाऊं? मैं इसे मारकर नहीं खाऊंगी। जिस प्रकार मैं अपने दो बच्चों का पालन-पोषण करती हूँ, उसी प्रकार इसका भी पालन-पोषण करूंगी। आज से मेरे तीन बच्चे हो गए है। “
शेरनी उसी दिन से अपने पुत्रों के सामान ही लोमड़ी के बच्चे का भी पालन-पोषण करने लगी ।

लोमड़ी का बच्चा भी शेर के दोनों बेटों के साथ पलने-बढ़ने लगा, जब तीनों कुछ बड़े हुए तो साथ-साथ खेलने-कूदने लगे। शेर के बच्चे यह नहीं समझते थे की वो दोनों शेर के बच्चे है और यह तीसरा लोमड़ी का बच्चा है। इसी प्रकार लोमड़ी का बच्चा भी अपने को शेर से बच्चों से अलग नहीं समझता था।

कुछ और बड़े होने पर तीनों बच्चे एक दिन खेलने के लिए जंगल में गए। वह उन्होंने एक हाथी को देखा। शेर के दो बच्चे तो हाथी के पीछे लग गए। पर लोमड़ी का बच्चा उसे देखकर भयभीत हो गया। उसने शेर के बच्चों को रोकते हुए कहा, “अरे, उसके पीछे मत जाओ। वह हाथी है, तुम दोनों को पैरों से कुचल देगा।”

परंतु शेर के बच्चों ने लोमड़ी के बच्चे की बात नहीं मानी। वे हाथी को मारने के लिए उसके पीछे लग गए। परंतु लोमड़ी का बच्चा डरकर अपने माँ के पास आ गया।

कुछ देर बाद शेर के दोनों बच्चे लौटकर अपनी माँ के पास आ गए। उन्होंने अपनी माँ को कहा की “हमें जंगल में हाथी मिला। हम दोनों तो उसके पीछे भाग गए लेकिन हमारा तीसरा भाई डरकर घर आ गया।”   

लोमड़ी के बच्चे को गुस्सा आ गया ” तुम दोनों अपने आप को वीर और कायर बता रहे हो, हिम्मत है तो आ जाओ। दोनों को जमीं पर गिरा दूंगा ” 
शेरनी ने लोमड़ी के बच्चे को समझाते हुए कहा ” तुम्हे अपने भाइयों के लिए ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। वे मुझसे तुम्हारी शिकायत नहीं बल्कि सच बता रहे है। क्या तुम हाथी को देखकर डर नहीं गए थे?” 

शेरनी की बात लोमड़ी के बच्चे को बिलकुल अच्छी नहीं लगी, वह और गुस्से से बोला ” मैं हाथी को देखकर डर गया? आपका कहना है की मैं डरपोक और वे दोनों बहादुर है? मैं अकेला उन दोनों को ज़मीं पर गिरा सकता हु।

तब शेरनी बोली “देखो बेटा, अधिक बढ़-बढ़कर बाते करना अच्छी नहीं होता। यह तो सच ही है की तुम्हारे वंश के लोग हाथी को देखकर डर जाया करते है।”
शेरनी की बात सुनकर लोमड़ी के बच्चे ने बड़े आश्चर्य-भरे स्वर में कहा “क्या कह रही हो? आपकी बात से लगता है की मेरा वंश और उन दोनों का वंश अलग है। सच बताओ क्या बात है?”

शेरनी लोमड़ी के बच्चे को अलग ले गई और उसे समझाती हुए बोली “देखो, तुम्हारा जन्म लोमड़ी के वंश में हुआ था और उन दोनों का जन्म शेर के वंश में हुआ है। मैंने तुम पर दया करके अपने बच्चों के सामान ही तुम्हे पाला है। अब तुम बड़े हो गए हो। मैंने तुम्हारा पालन पोषण तो किया है, परंतु तुम्हारे सभी गुण लोमड़ी जैसे ही है। इसलिए तुम उस हाथी से डर गए।”

“मैंने इस भेद को अभी तक अपने बच्चों से छिपा रखा है। जब उन्हें यह बात मालुम हो जाएगी की तुम लोमड़ी के बच्चे हो, तो वे तुम्हे मारकर खा जायेंगे। इसलिए अच्छा है की भेद प्रकट होने से पहले ही तुम यहाँ से भाग जाओ”

शेरनी की बात सुनकर लोमड़ी का बच्चा डर गया, और वहा से चुपके से भाग गया।

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