कहानी उस महिला की जिसने टाटा स्टील कंपनी को दी थी अलग पहचान। टाटा ग्रुप कंपनी से तो आज हम सब वाकिफ हैं। इस कंपनी ने देश के लिए कई दान-धर्म के काम किए हैं। एक वक्त ऐसा भी था,जब यह कंपनी डूबने के कगार पर थी।
उस समय जो महिला सबसे आगे निकल कर आई थीं, वह महिला थीं मेहरबाई टाटा उनकी बदौलत टाटा स्टील कंपनी को आज अपनी अलग पहचान मिली है। उन्होंने अपनी सबसे बेशकीमती चीज को गिरवी रख कंपनी को आर्थिक तंगी से बचाया था।
लेडी मेहरबाई टाटा जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा की पत्नी थीं। उस दौर में ही उनकी सोच बहुत आगे बढ़कर थी। उन्होंने बाल विवाह, महिला मताधिकार, लड़कियों की शिक्षा से लेकर पर्दा प्रथा तक को हटाने में भी अपनी आवाज बुलंद की थी।
उन्हें खेल में भी बहुत रुची थी। शुरू से उन्हें टेनिस, घुडसवारी और पियानो बजाने का शौक था। उन्होंने टेनिस टूर्नामेंट में 60 से अधिक पुरस्कार अपने नाम किए थे। इसके अलावा ओलम्पिक में टेनिस खेलने वाली भी वो पहली भारतीय महिला थीं। खास बात यह है कि वो सारे टेनिस मैच पारसी साड़ी पहनकर खेलती थीं।
लेडी मेहरबाई टाटा का जन्म 1879 में हुआ था। मेहरबाई टाटा (1879-1931) जमशेदजी टाटा की बहू और बडे बेटे दोराबजी टाटा की पत्नी थी और नारी शक्ति की प्रतीक थी। वह खुले विचार की थी और आगे चलकर महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई के लिए उन्होंने अपनी आवाज बुलंद भी की। खेल के प्रति रुचि रखने वाली मेहरबाई बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी। शुरू से उन्हें टेनिस, घुडसवारी और पियानो बजाने का शौक था।
कोहिनूर से बड़ा हीरा था उनके पास
हरीश भट्ट ने अपनी किताब TataStories: 40 Timeless Tales To Inspire You में बताया है, कैसे ‘लेडी मेहरबाई टाटा’ ने कंपनी को बचाया था। दोराबजी टाटा लेडी मेहरबाई के लिए लंदन के व्यापारियों से 245.35 कैरेट जुबली हीरा खरीदकर लाए थे, जो कि कोहिनूर हीरा से दोगुना बड़ा था। 1900 के दशक में इसकी कीमत लगभग 1,00,000 पाउंड थी। विशेष प्लेटिनम चेन में लगा यह हीरा देख सभी चकित हो जाते थे। लेडी मेहरबाई टाटा इसे विशेष आयोजनों में ही पहना करती थीं।
बाल विवाह अधिनियम बनाने में सहयोग किया
साल 1929 में भारत में बाल विवाह अधिनियम पारित किया है, जिसे शारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है। इस अधिनियम को बनाने में मेहरबाई ने भी अपना सहयोग दिया था। उन्होंने भारत और विदेशों में छुआछूत और पर्दा व्यवस्था के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी। वह भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध थीं और नेशनल काउंसिल ऑफ वीमेंस की संस्थापक भी रही थीं।
लेडी मेहरबाई टाटा ग्रुप के साथ हमेशा खड़ी रहीं और वह देश की महिलाओं के लिए एक मिसाल बनीं। आपको लेड मेहरबाई टाटा के बारे में पढ़कर कैसे लगा हमें जरूर बताएं। ऐसे अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
लेडी रतन टाटा कौन है?
लेडी मेहरबाई टाटा उन लोगों में से एक थीं, जिनसे 1929 में पारित शारदा अधिनियम या बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम के लिए परामर्श किया गया था. उन्होंने भारत के साथ साथ विदेशों में भी इसके लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया. वह राष्ट्रीय महिला परिषद और अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का भी हिस्सा थीं.
तस्वीर मे इन्होंने गले मे पति दोराबजी द्वारा भेंट किया गया 245 कैरेट का प्रसिद्ध जुबली डायमंड जो की वजन मे कोहिनूर से दोगुना था, पहना है।
जमशेदजी टाटा का धर्म क्या था?
जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा का जन्म 3 मार्च 1839 में दक्षिणी गुजरात के नवसारी में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम नुसीरवानजी तथा माता का नाम जीवनबाई टाटा था।
मेहरबाई टाटा की मृत्यु कैसे हुई?
मेहरबाई टाटा की 1931 में 52 वर्ष की आयु में ल्यूकेमिया से मृत्यु हो गई। इनकी कैंसर से असमय मृत्यु के बाद यह हीरा बेचकर ही दोराबजी टाटा ने टाटा मेमोरियल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की थी। उनकी मृत्यु के कुछ समय बाद, दोराबजी ने रक्त की बीमारियों के अध्ययन को आगे बढ़ाने के लिए लेडी टाटा मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना की। प्रेम के लिये बनाया गया यह स्मारक मानवता के लिये एक उपहार है।
विडम्बना देखिये हम प्रेम स्मारक के रुप मे कब्रों को महिमामंडित करते रहते हैं और जो हमें जीवन प्रदान करता है, उसके बारे मे जानते तक नहीं।