हसीद फकीर हुआ, बालसेन। उससे मिलने कुछ औरहसीद फकीर आए हुए थे। चर्चा चल पड़ी—— एक बड़ी दार्शनिक चर्चा ——परमात्मा कहां है?
किसी ने कहा, पूरब में, क्योंकि पूरब से सूरज ऊगता है। और किसी ने कहा कि जेरूसलम में, क्योंकि यहूदी ही परमात्मा के चुने हुए लोग हैं, और परमात्मा ने ही मूसा के द्वारा यहूदियों को जेरूसलम तक पहुंचाया। जरूर परमात्मा जेरूसलम में होगा, जेरूसलम के मंदिर में होगा!
और किसी ने कुछ, किसी ने कुछ…। जो जरा और ऊंची दार्शनिक उड़ान भर सकते थे, उन्होंने कहा, परमात्मा सर्वव्यापी है; सब जगह है; ये क्या बातें कर रहे हो—— जेरूसलम, कि पूरब! परमात्मा सर्वव्यापी है, सब जगह है। बालसेन चुपचाप सुनता रहा। बालसेन अदभुत फकीर था। ऐसे ही जैसे पलटू, जैसे कबीर। सब ने फिर बालसेन से कहा, आप चुप हैं, आप कुछ नहीं बोलते; परमात्मा कहां है? बालसेन ने कहा, अगर सच पूछते हो तो परमात्मा वहां होता है जहां आदमी उसे घुसने देता है।
बड़ा अदभुत उत्तर दिया! तुम घुसने ही न दो तो परमात्मा भी क्या करेगा? तुम अपने हृदय में आने दो, तो। मगर कौन उसके लिए क्षार खोलेगा? भक्ति जहां है, वहां भगवान है। लोग पूछते हैं: भगवान कहां है?
लोग भगवान को देखने भी आ जाते हैं, मेरे पास आ जाते हैं कि भगवान दिखा दें! जैसे अंधा प्रकाश देखना चाहे। जैसे बहरा संगीत सुनना चाहे। जैसे गूंगा गीत गाना चाहे। बिना इसकी फिक्र किए कि मैं अंधा हूं, कि बहरा हूं, कि गूंगा हूं।
लंगड़ा ओलंपिक में भाग लेने जाना चाहता है; बिना इसकी फिक्र किए कि मैं लंगड़ा हूं। उठ सकता नहीं, चल सकता नहीं, ओलंपिक में भाग लेना है! पूछते हैं लोग: ईश्वर कहां है? मैं उनसे कहता हूं: यह सवाल ही मत उठाओ। पहले यह बताओ: भक्ति है? वे कहते हैं, भक्ति कैसे हो? पहले भगवान का पता होना चाहिए, तो हम भक्ति करेंगे। इस भेद को खयाल में रखना।
परमात्मा का पता जो पहले मांगता है, फिर कहता है भक्ति करेगा, वह कभी भक्ति नहीं करेगा। क्योंकि परमात्मा का पता भक्ति के बिना चलता ही नहीं। भक्ति की आंख ही उसे देख पाती है। भक्ति के हाथ ही उसे छू पाते हैं। भक्ति के लबालब हृदय में ही उसकी तरंग उठती है। जहां भक्ति है, वहां भगवान है। -ओशो”
परमात्मा कहां है?
हसीद फकीर हुआ, बालसेन। उससे मिलने कुछ औरहसीद फकीर आए हुए थे। चर्चा चल पड़ी—— एक बड़ी दार्शनिक चर्चा ——परमात्मा कहां है?
किसी ने कहा, पूरब में, क्योंकि पूरब से सूरज ऊगता है। और किसी ने कहा कि जेरूसलम में, क्योंकि यहूदी ही परमात्मा के चुने हुए लोग हैं, और परमात्मा ने ही मूसा के द्वारा यहूदियों को जेरूसलम तक पहुंचाया। जरूर परमात्मा जेरूसलम में होगा, जेरूसलम के मंदिर में होगा!
और किसी ने कुछ, किसी ने कुछ…। जो जरा और ऊंची दार्शनिक उड़ान भर सकते थे, उन्होंने कहा, परमात्मा सर्वव्यापी है; सब जगह है; ये क्या बातें कर रहे हो—— जेरूसलम, कि पूरब! परमात्मा सर्वव्यापी है, सब जगह है। बालसेन चुपचाप सुनता रहा। बालसेन अदभुत फकीर था। ऐसे ही जैसे पलटू, जैसे कबीर। सब ने फिर बालसेन से कहा, आप चुप हैं, आप कुछ नहीं बोलते; परमात्मा कहां है? बालसेन ने कहा, अगर सच पूछते हो तो परमात्मा वहां होता है जहां आदमी उसे घुसने देता है।
बड़ा अदभुत उत्तर दिया! तुम घुसने ही न दो तो परमात्मा भी क्या करेगा? तुम अपने हृदय में आने दो, तो। मगर कौन उसके लिए क्षार खोलेगा? भक्ति जहां है, वहां भगवान है। लोग पूछते हैं: भगवान कहां है?
लोग भगवान को देखने भी आ जाते हैं, मेरे पास आ जाते हैं कि भगवान दिखा दें! जैसे अंधा प्रकाश देखना चाहे। जैसे बहरा संगीत सुनना चाहे। जैसे गूंगा गीत गाना चाहे। बिना इसकी फिक्र किए कि मैं अंधा हूं, कि बहरा हूं, कि गूंगा हूं।
लंगड़ा ओलंपिक में भाग लेने जाना चाहता है; बिना इसकी फिक्र किए कि मैं लंगड़ा हूं। उठ सकता नहीं, चल सकता नहीं, ओलंपिक में भाग लेना है! पूछते हैं लोग: ईश्वर कहां है? मैं उनसे कहता हूं: यह सवाल ही मत उठाओ। पहले यह बताओ: भक्ति है? वे कहते हैं, भक्ति कैसे हो? पहले भगवान का पता होना चाहिए, तो हम भक्ति करेंगे। इस भेद को खयाल में रखना।
परमात्मा का पता जो पहले मांगता है, फिर कहता है भक्ति करेगा, वह कभी भक्ति नहीं करेगा। क्योंकि परमात्मा का पता भक्ति के बिना चलता ही नहीं। भक्ति की आंख ही उसे देख पाती है। भक्ति के हाथ ही उसे छू पाते हैं। भक्ति के लबालब हृदय में ही उसकी तरंग उठती है। जहां भक्ति है, वहां भगवान है। -ओशो”