एक बार आचार्य चाणक्य से किसी ने प्रश्न किया, ‘मानव को स्वर्ग प्राप्ति के लिए क्या-क्या उपाय करने चाहिए?’ चाणक्य ने संक्षेप में उत्तर दिया, ‘जिसकी पत्नी और पुत्र आज्ञाकारी हों,
सद्गुणी हों तथा अपनी उपलब्ध संपत्ति पर संतोष करते हों, वह स्वर्ग में नहीं, तो और कहाँ वास करता है! आचार्य चाणक्य सत्य, शील और विद्या को लोक-परलोक के कल्याण का साधन बताते हुए नीति वाक्य में लिखते हैं,
‘यदि कोई सत्यरूपी तपस्या से समृद्ध है, तो उसे अन्य तपस्या की क्या आवश्यकता है? यदि मन पवित्र और निश्छल है, तो तीर्थाटन करने की क्या आवश्यकता है? यदि कोई उत्तम विद्या से संपन्न है, तो उसे अन्य धन की क्या आवश्यकता है?’
वे कहते हैं, ‘विद्या, तप, दान, चरित्र एवं धर्म (कर्तव्य) से विहीन व्यक्ति पृथ्वी पर भार है। संसार में विद्यावान की सर्वत्र पूजा होती है। विद्यया लभते सर्व विद्या सर्वत्र पूज्यते। यानी विद्यारूपी धन से सबकुछ प्राप्त होता है।
आचार्य सदाचार व शुद्ध भावों का महत्त्व बताते हुए लिखते हैं, ‘भावना से ही शील का निर्माण होता है। शुद्ध भावों से युक्त मनुष्य घर बैठे ही ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।
ईश्वर का निवास न तो प्रतिमा में होता है और न मंदिरों में। भाव की प्रधानता के कारण ही पत्थर, मिट्टी और लकड़ी से बनी प्रतिमाएँ भी देवत्व को प्राप्त करती हैं, अतः भाव की शुद्धता जरूरी है।
आचार्य चाणक्य का यह भी कहना है कि यदि मुक्ति की इच्छा रखते हो, तो विषय वासनारूपी विद्या को त्याग दो। सहनशीलता, सरलता, दया, पवित्रता और सच्चाई का अमृतपान करो।
English Translation
Once someone asked Acharya Chanakya, ‘What measures should a human take to attain heaven?’ Chanakya replied in short, ‘one whose wife and son are obedient,
Be virtuous and be content with your available possessions, where else does he reside, if not in heaven! Acharya Chanakya, describing truth, modesty and learning as the means of welfare of the people and the afterlife, writes in the policy sentence,
If one is rich in the form of austerity of truth, then what is the need of other penance? If the mind is pure and unblemished, then what is the need to perform pilgrimage? If one is endowed with excellent knowledge, what other money does he need?’
He says, ‘A person devoid of knowledge, austerity, charity, character and dharma (duty) is a burden on the earth. The learned man is worshiped everywhere in the world. Vidyaya labhte sarva vidya sarvatra pujyaate. That is, everything is attained by the wealth of education.
Describing the importance of good conduct and pure feelings, Acharya writes, ‘Shila is formed only by feeling. A person with pure feelings can attain God by sitting at home.
The abode of God is neither in idols nor in temples. Due to the predominance of Bhava, idols made of stone, clay and wood also attain divinity, so purity of Bhava is necessary.
Acharya Chanakya also says that if you wish for liberation, then give up the knowledge of the subject. Drink the nectar of tolerance, simplicity, kindness, purity and truth.