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शेखचिल्ली की कहानी : खिचड़ी!!

शेखचिल्ली एक बार अपनी सास से मिलने के लिए ससुराल गया। दामाद के आने की खबर मिलते ही सासु मां ने शेख के लिए खिचड़ी बनाना शुरू कर दिया। शेख भी कुछ देर बाद ससुराल पहुंच गए। वहां पहुंचते ही सासु से मिलने के लिए शेख सीधे रसोई में चला गया। सास से बातें करते हुए अचानक शेखचिल्ली का हाथ ऊपर लगा और घी से भरा एक डब्बा सीधे खिचड़ी पर गिर गया। सास को काफी गुस्सा आया, लेकिन दामाद पर वो गुस्सा नहीं कर पाई।

गुस्से को दबाकर शेखचिल्ली को उसकी सासु मां ने प्यार से खिचड़ी खिलाई। उसे खाते ही शेख खिचड़ी के दिवाने हो गए, क्योंकि पूरा एक डब्बा घी गिरने के कारण खिचड़ी और स्वादिष्ट हो गई थी। शेख ने सासु से कहा कि इसका स्वाद मुझे काफी पसंद आया है। आप मुझे इसका नाम बता दीजिए, ताकि मैं भी घर जाकर इसे बनाकर खाऊं।

शेखचिल्ली को उसकी सासु मां ने बताया कि इसे खिचड़ी कहते हैं। शेख ने कभी खिचड़ी शब्द नहीं सुना था। वो ससुराल से अपने घर की ओर जाते हुए इस शब्द को बार-बार दोहराने लगा, ताकि नाम भूल न जाए। खिचड़ी-खिचड़ी-खिचड़ी कहते हुए शेखचिल्ली अपने ससुराल से थोड़ा आगे ही बड़ा था कि वो किसी जगह पर कुछ देर के लिए रूका। इस दौरान शेख खिचड़ी का नाम रटना भूल गया।

जैसे ही उसे याद आया, तो वो खिचड़ी को ‘खाचिड़ी-खाचिड़ी’ कहने लगा। इस शब्द को रटते हुए शेखचिल्ली रास्ते पर आगे बड़ा। कुछ दूरी पर एक किसान अपनी फसल को चिड़िया से बचाने के लिए ‘उड़चिड़ी-उड़चिड़ी’ कह रहा था। तभी पास से ही शेखचिल्ली ‘खाचिड़ी-खाचिड़ी’ कहते हुए गुजरने लगा। यह सुनकर किसान को गुस्सा आ गया।

उसने दौड़कर शेखचिल्ली को पकड़ा और कहा कि मैं यहां चिड़िया से फसल बचा रहा हूं। उन्हें उड़ाने की कोशिश में लगा हूं, लेकिन तू मेरी फसल को ‘खाचिड़ी-खाचिड़ी’ कह रहा है। तुझे उड़चिड़ी कहना चाहिए। अब तू सिर्फ उड़चिड़ी कहेगा।

अब शेखचिल्ली आगे चलते हुए किसान की बात सुनकर ‘उड़चिड़ी-उड़चिड़ी’ ही कहने लगा। उस शब्द को रटते हुए वो एक तालाब के पास पहुंचा। वहां एक आदमी काफी देर से मछली पकड़ने की कोशिश कर रहा था। उसने शेखचिल्ली को उड़चिड़ी-उड़चिड़ी रटते हुए सुन लिया। उसने शेखचिल्ली को पकड़कर सीधे कहा कि तुम उड़चिड़ी नहीं कह सकते हो। तुम्हारी बातें सुनकर तो तलाब की सारी मछलियां भाग जाएंगी। अब तू सिर्फ ‘आओ फंस जाओ’ ही बोलेगा।

शेखचिल्ली के दिमाग में यही चीज बैठ गई। आगे बढ़ते हुए शेख ‘आओ फंस जाओ’ ही रटने लगा। कुछ देर आगे बढ़ने पर उसके सामने से चोर गुजरे। उन्होंने शेख के मुंह से ‘आओ फंस जाओ’ सुनकर उसे पकड़कर पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि हम चोरी करने के लिए जा रहे हैं और तू कह रहा है ‘आओ फंस जाओ।’ हम फंस गए, तो क्या होगा। अब से तू सिर्फ यही कहेगा ‘आओ रख जाओ।’

पिटाई होने के बाद शेखचिल्ली ‘आओ रख जाओ’ कहते हुए आगे बढ़ना लगा। उस वक्त रास्ते में शमशान पड़ा। वहां लोग मृत आदमी को लेकर आए थे। ‘आओ रख जाओ’ सुनकर उन सभी को बुरा लगा। उन्होंने कहा, “अरे! भाई तू ये क्या बोल रहा है। जैसा तू बोल रहा है वैसा हो गया, तो कोई जिंदा नहीं बचेगा। तू आगे से सिर्फ ये बोलेगा कि ‘ऐसा किसी के साथ न हो।’

शेखचिल्ली यही कहते हुए आगे की ओर बढ़ने लगा। तभी रास्ते में एक राजकुमार की बारात निकल रही थी। बारात में खुशी-खुशी नाचते जा रहे लोगों ने शेख के मुंह से ‘ऐसा किसी के साथ न हो’ सुना। सभी को बहुत बुरा लगा। उन्होने शेख को पकड़कर कहा कि तू ऐसे शुभ समय में इतना बुरा क्यों बोल रहा है। अब से तू सिर्फ यही कहेगा ‘ऐसा सबके साथ हो।’

चिल्ली अब यही कहते-कहते अपने घर थका हारा पहुंच गया। वो घर तो पहुंच गया था, लेकिन उसे खिचड़ी का नाम याद नहीं रहा। कुछ देर आराम करने के बाद उसने अपनी पत्नी को कहा कि आज तुम्हारी मां ने मुझे खूब स्वादिष्ट चीज खिलाई। अब तुम भी मुझे वही बनाकर खिलाना। यह सुनते ही पत्नी ने उस व्यंजन का नाम पूछा। शेखचिल्ली ने दिमाग पर जोर डाला, लेकिन उसे खिचड़ी शब्द याद नहीं आया। उसके दिमाग में आखिर में रटने वाले शब्द ही थे।

तब उसने गुस्से में पत्नी से कहा कि मुझे कुछ नहीं पता बस तुम वो चीज मुझे बनाकर खिलाओगी। पत्नी गुस्सा करते हुए बाहर निकल गई। उसने कहा कि जब मुझे पता ही नहीं है कि क्या बनाना है, तो मैं कैसे बनाऊंगी। उसके पीछे-पीछे शेखचिल्ली भी चलने लगा। वो रास्ते में धीरे-धीरे अपनी पत्नी को कहता, चलो घर चलते हैं और तुम मुझे वो व्यंजन बनाकर खिला देना। पत्नी और गुस्सा हो गई।

पास से ही एक महिला दोनों को देख रही थी। शेख को धीमी आवाज में पत्नी से बात करते देख उस महिला ने शेख से पूछा कि क्या हुआ है, तुम दोनों यहां रास्ते पर खड़े होकर क्या खिचड़ी पका रहे हो। जैसे ही शेखचिल्ली ने खिचड़ी शब्द सुना उसे याद आ गया कि सासु मां ने भी व्यंजन का यही नाम बताया था। उसने उसी समय अपनी पत्नी को बताया कि उस व्यंजन का नाम खिचड़ी है। व्यंजन का नाम पता चलते ही शेख की पत्नी का गुस्सा ठंडा हो गया और दोनों खुशी-खुशी घर लौट आए।

कहानी से सीख :

किसी की बोली हुई बात या नए शब्द को भूलने का डर हो, तो उसे लिखकर रख लेना चाहिए। सिर्फ उसे रटते रहने से शब्द गलत और अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

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