सुन नाथ अरज अब मेरी,
में शरण पड़ा प्रभु तेरी ,,,,,
तुम मानुष तन मोहे दीन्हा,
भजन नही तुम्हरौ कीन्हा,
विषयों ने लई मति घेरी ,
में शरण पड़ा प्रभु तेरी ,,,,,
सुत दारादिक यह परिवारा,
सब स्वारथ का है संसारा,
जिन हेतु पाप किये ढेरी,
में शरण पड़ा प्रभु तेरी ,,,,,
माया में ये जीव भुलाना ,
रूप नही पर तुम्हरौ जाना ,
पड़ा जन्म मरण की फेरी,
में शरण पड़ा प्रभु तेरी ,,,,,,
भवसागर में नीर अपारा ,
मोहे कृपालु प्रभु कर उबारा ,
ब्रह्मानंद करो नही देरी ,
में शरण पड़ा प्रभु तेरी ,,,,,,,,