समदर्शिता भगवान श्रीकृष्ण समदर्शी थे, और उनकी समदर्शिता की सीमा में केवल मनुष्य – समाज ही आता हो, सो बात नहीं, पशु – पक्षी, लता – वृक्ष आदि सभी के लिए उसमें स्थान था । उन्होंने गौओं की सेवा कर पशुओं में भी भगवान का वास दिखलाया । कदंब आदि वृक्षों के तले वन में विहार कर, उभ्दिज्ज – जगत …
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चक्रिक भील
ब्राह्मण, श्रत्रिय, वैश्य, शूद्र और जो अन्य अन्त्यज लोग हैं, वे भी हरिभक्तिद्वारा भगवान की शपृरण होने से कृतार्थ हो जाते हैं, इसमें संशय नहीं है । यदि ब्राह्मण भी भगवान के विमुख हो तो उसे भी चाण्डाल से अधिक समझना चाहिए और यदि चाण्डाल भी भगवान का भक्त हो तो उसे भी ब्राह्मण से अधिक समझना चाहिए । द्वापर …
Read More »भगवान की न्यायकारिता एवं दयालुता
भगवान दयालु हैं या न्यायकारी हैं । हम तो यह मानते हैं कि वे दयालु भी हैं, न्यायकारी भी हैं । दो बात एक जगह कैसे रह सकती है ? मनुष्य में भी रह सकती है, फिर भगवान में रहनी कौन कठिन बात है । जब न्याय ही करते हैं, कर्मों के अनुसार ही फल देते हैं तब दया क्या …
Read More »सुदामा की कथा
सुदामा एक अत्यंत दीन ब्राह्मण थे । बालकपन में उसी गुरु के पास विद्याध्ययन करने गये थे जहां भगवान श्रीकृष्ण चंद्र अपने जेठे भाई बलराम जी के साथ शिक्षा ग्रहण करने के लिए गये थे । वहां श्रीकृष्ण चंद्र के साथ इनका खूब संग रहा । इन्होंने गुरुजी की बड़ी सेवा की । गुरुपत्नी की आज्ञा से एक बार सुदामा …
Read More »भक्त हनुमान
हनुमान जी महाराज भगवान के परम भक्त थे । उनमें तीन बात विशेष थी – 1. भगवान के चरणों में रहते थे । भगवान को छोड़कर एक क्षण भी अलग नहीं होना चाहते थे । जब भगवान की आज्ञा होती थी, तभी भगवान की आज्ञा पालन के लिये चरणों से अलग होते थे । 2. जब भगवान की आज्ञा हो …
Read More »आध्यात्मिक रहस्य
यह सुदामा कौन हैं ? उनकी पत्नी कौन हैं ? वे तन्दुल कौन से हैं ? इत्यादि । यदि अंत:प्रविष्ट होकर देखा जाएं तो सुदामा की कथा में एक आध्यात्मिक रूपक है – भक्त और भगवान के परस्पर मिलन की एक मधुर कहानी है । इसी रहस्य का किच्छित उद्घाटन थोड़े में किया जाएंगा । ‘दामन’ शब्द का अर्थ है …
Read More »कण- कण में है भगवान्
हमलोग मान लें की भगवान् हैं। अनुभव नहीं भी हो तो शास्त्रों को सुनने से मान लें, दूसरों के कहने से मान लें। सब जगह भगवान् हैं, यह मानते हैं, किन्तु भगवान् दिखते नहीं, सब जगह संसार दिखता है, यदि सब जगह प्रत्यक्ष भगवान् दिखने लग जाय तो यह दानना है। पहले मानना होता है, पीछे जानना होता है। शब्द …
Read More »पितृभक्त बालक पिप्पलाद
वृत्रासुर ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। इन्द्र देवताओं के साथ स्वर्ग छोड़कर भाग गये थे। देवताओं के कोई भी अस्त्र-शस्त्र वृत्रासुर को मार नहीं सकते थे। अन्त में इन्द्र ने तपस्या तथा प्रार्थना करके भगवान् को प्रसन्न किया। भगवान् ने बताया कि महर्षि दधीचि की हड्डियों से विश्वकर्मा वज्र बनावे तो उससे वृत्रासुर मर सकता है। महर्षि दधीचि …
Read More »महात्माओं का प्रभाव
महात्मा पुरुषों की कोई सीमा नहीं होती, जो साधारण महात्मा होते हैं, उनके गुण, प्रभाव, रहस्य कोई नहीं बता सकता और जो भगवान् के भेजे हुए महापुरुष होते हैं उनकी तो बात ही क्या है, वे तो भगवान् के समान होते हैं। यह कह दें तो भी कोई आपत्ति नहीं। भगवान् के दर्शन, भाषण से जो लाभ मिलता है उनके …
Read More »प्रथम पूज्य श्रीगणेश जी
यज्ञ, पूजन, हवनादि के समय पहले किस देवता की पूजा की जाय?’ इस प्रश्न पर देवताओं में मतभेद हो गया। सभी चाहते थे कि यह सम्मान मुझे मिले। जब आपस में कोई निपटारा न हो सका, तब सब मिलकर ब्रह्माजी के पास गये, क्योंकि सबके पिता-पितामह तो ब्रह्मा जी ही हैं और सत्पुरुष बड़े-बूढों की बात अवश्य मान लिया करते …
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