सभी धर्मशास्त्रों में धन-संपत्ति तथा अन्य सांसारिक पदार्थों के प्रति तृष्णा को पतन का मूल कारण बताया गया है। महाभारत के वन पर्व में कहा गया है, तृष्णा ही सर्वपापिष्ठा अर्थात् तृष्णा सर्वाधिक पापमयी है। तृष्णा के कारण मानव घोर पाप कर्म करने में भी नहीं हिचकिचाता। विष्णु पुराण में कहा गया है, ‘जो व्यक्ति धन-संपत्ति को भगवान् की धरोहर …
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पैतृक धन
एक बार की बात है कृष्णदेव राजा के दरबार में एक व्यक्ति आया। उस व्यक्ति के हाथ में एक लोहे का बक्सा था। जिसमे ताला लगा हुआ था। वह राजा से बोला की इस बक्से में मेरे पूर्वजो की धन सम्पति है। आप इसको अपने पास रख लो जिससे की मै उत्तर भारत के सभी मंदिरों में दर्शन के लिए …
Read More »पायो जी मैंने राम रतन धन पायो
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो | वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु | कृपा कर अपनायो || जन्म जन्म की पूंजी पाई | जग में सबी खुमायो || खर्च ना खूटे, चोर ना लूटे | दिन दिन बढ़त सवायो || सत की नाव खेवटिया सतगुरु | भवसागर तरवयो || मीरा के प्रभु गिरिधर नगर | हर्ष हर्ष जस गायो …
Read More »चाणक्य नीति : दसवां अध्याय (Chanakya Niti: tenth chapter)
जिसके पास धन नहीं है वो गरीब नहीं है, वह तो असल में रहीस है, यदि उसके पास विद्या है. लेकिन जिसके पास विद्या नहीं है वह तो सब प्रकार से निर्धन है. हम अपना हर कदम फूक फूक कर रखे. हम छाना हुआ जल पिए. हम वही बात बोले जो शास्त्र सम्मत है. हम वही काम करे जिसके बारे …
Read More »चाणक्य नीति : प्रथम अध्याय (Chanakya Niti: The First Chapter)
१. तीनो लोको के स्वामी सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु को नमन करते हुए मै एक राज्य के लिए नीति शास्त्र के सिद्धांतों को कहता हूँ. मै यह सूत्र अनेक शास्त्रों का आधार ले कर कह रहा हूँ। 2. जो व्यक्ति शास्त्रों के सूत्रों का अभ्यास करके ज्ञान ग्रहण करेगा उसे अत्यंत वैभवशाली कर्तव्य के सिद्धांत ज्ञात होगे। उसे इस बात का …
Read More »चार आने का हिसाब
बहुत समय पहले की बात है , चंदनपुर का राजा बड़ा प्रतापी था , दूर-दूर तक उसकी समृद्धि की चर्चाएं होती थी, उसकेएक दिन भेष बदल कर राजा अपने राज्य की सैर पर निकला। घूमते- घूमते वह एक खेत के निकट से गुजरा , तभी उसकी नज़र एक किसान पर पड़ी , किसान ने फटे-पुराने वस्त्र धारण कर रखे थे …
Read More »व्यर्थ है मोह का बंधन
इतना मिल गया, इतना और मिल जाए फिर ऐसा मिलता ही रहें – ऐसे धन, जमीन, मकान, आदर, प्रशंसा, पद, अधिकार आदि की तरह बढ़ती हुई वृत्ति का नाम ‘लोभ’ है । जहां लड़ाई होती है, वहां समय, सम्पत्ति, शक्ति का नाश हो जाता है । तरह – तरह की चिंताएं और आपत्तियां आ जाती हैं । दो मित्रों में …
Read More »गुणनिधि पर भगवान शिव की कृपा
पूर्वकाल में यज्ञदत्त नामक एक ब्राह्मण थे । समस्त वेद शास्त्रादि का ज्ञाता होने से उन्होंने अतुल धन एवं कीर्ति अर्जित की थी । उनकी पत्नी सर्वगुणसंपन्न थी । कुछ दिनों के बाद उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम गुणनिधि रखा गया । बाल्यावस्था में इस बालक के कुछ दिन तो धर्मशास्त्रादि समस्त विद्याओं का अध्ययन किया, परंतु बाद …
Read More »वेदमालि को भगवत्प्राप्ति
प्राचीन काल की बात है । रैवत मन्वंतर में वेदमालि नाम से प्रसिद्ध एक ब्राह्मण रहते थे, जो वेदांगों के पारदर्शी विद्वान थे । उनके मन में संपूर्ण प्राणियों के प्रति दया भरी हुई थी । वे सदा भगवान की पूजा में लगे रहते थे, किंतु आगे चलकर वे स्त्री, पुत्र और मित्रों के लिए धनोपार्जन करने में संलग्न …
Read More »आरोग्य – सुभाषित – मुक्तावली
सुख – दु:ख का कर्ता व्यक्ति स्वयं ही होता है, ऐसा समझकर कल्याणकारी मार्ग का ही अवलंबन लेना चाहिए, फिर भयभीत होने की कोई बात नहीं । परीक्षक – विवेकीजन ठीक – ठाक परीक्षा करके हितकर मार्ग का सेवन करते हैं, परंतु रजोगुण और तमोगुण से आवृत बुद्धिवाले लौकिक मनुष्य (हिताहितका विचार न करके तत्काल) प्रिय (मालूम होने वाले आचार …
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