इब्राहिम बल्ख के बादशाह थे। सांसारिक विषय- भोगों से ऊबकर वे फकीरों का सत्संग करने लगे। बियाबान जंगल में बैठकर उन्होंने साधना की । एक दिन उन्हें किसी फरिश्ते की आवाज सुनाई दी, ‘मौत आकर तुझे झकझोरे, इससे पहले ही जाग जा । अपने को जान ले कि तू कौन है और इस संसार में क्यों आया है। ‘ यह …
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ज्ञान का ढिंढोरा !!
आध्यात्मिक विभूति श्री हनुमानप्रसाद पोद्दार से मिलने कलकत्ता के एक धनाढ्य परिचित पहुँचे। उन्होंने कहा, ‘जब मैं किसी तीर्थ में जाता हूँ, तो दान अवश्य करता हूँ।’ उन्होंने एक अखबार भी दिखाया, जिसमें किसी को कपड़े दान करते हुए उनका चित्र छपा था। पोद्दारजी ने कहा, ‘तुमने तो अपने दान को एक ही दिन में निष्फल बना डाला, जबकि दान …
Read More »नैतिक शिक्षा का महत्त्व !!
आचार्य विनोबा भावे अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने विभिन्न धर्मों, मत-मतांतरों के साहित्य का अध्ययन किया था। बड़े-बड़े शिक्षाविद् ज्ञान का लाभ अर्जित करने उनके पास आया करते थे । विनोबाजी संस्कारों को सबसे बड़ी धरोहर मानते थे । एक बार महाराष्ट्र के किसी विश्वविद्यालय में उन्हें आमंत्रित किया गया। विनोबाजी वहाँ पहुँचे। उन्होंने प्राचार्य से बातचीत के दौरान …
Read More »हरिनाम की महिमा !!
गुरु तेगबहादुरजी भक्ति और शक्ति के उपासक थे। उन्होंने 1675 में धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली में बलिदान देकर यह सिद्ध किया कि एक धर्मगुरु और कवि – साहित्यकार समय आने पर धर्म की रक्षा के लिए सिर भी कटा सकता है। बलिदान देने से पूर्व अनेक वर्षों तक गुरु तेगबहादुरजी ने देश का भ्रमण कर असंख्य लोगों को …
Read More »शहीद की कामना !!
मदनलाल ढींगरा लंदन के इंडिया हाउस से जुड़े रहकर भारत की स्वाधीनता के लिए प्रयासरत थे। विनायक दामोदर सावरकर से प्रेरणा लेकर उन्होंने 1 जुलाई, 1909 को इंपीरियल इंस्टीट्यूट में आयोजित समारोह में सर कर्जन वायली पर सरेआम गोलियाँ बरसाकर उसकी हत्या कर दी। उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई । मदनलाल ढींगरा ने जेल से एक वक्तव्य जारी कर …
Read More »कुत्ता मेरा ही स्वरूप था !!
साईं बाबा शिरडी की मसजिद में रहा करते थे। वे उसे ‘द्वारका माई’ कहा करते थे । बाबा सत्संग के लिए आने वालों से अकसर कहा करते कि प्रत्येक प्राणी भगवान् का स्वरूप है। जीव मात्र से प्रेम और दुखियों की सेवा करके ही भगवान् की कृपा प्राप्त की जा सकती है । एक बार साईं बाबा के प्रति अटूट …
Read More »भजन से पहले भोजन !!
वृंदावन के एक आश्रम में संकीर्तन का कार्यक्रम चल रहा था । हरि बाबा घंटा बजाकर ‘हरिबोल – हरिबोल’ की ध्वनि के बीच मस्त होकर झूम रहे थे। विरक्त संत उड़िया बाबा स्वयं भगवत् नाम के संकीर्तन का आनंद ले रहे थे। अचानक चार-पाँच व्यक्ति वहाँ पहुँचे। उन्हें देखते ही उड़िया बाबा समझ गए कि ये लोग बीमार और भूखे …
Read More »नाम की अनूठी महत्ता !!
गुरु नानकदेवजी एक बार किसी तीर्थस्थल पर गए हुए थे। अनेक व्यक्ति उनके सत्संग के लिए वहाँ जुट गए । एक व्यक्ति ने हाथ जोड़कर प्रश्न किया, ‘बाबा, मुझ जैसे साधारण गृहस्थ के कल्याण का सरल उपाय बताएँ । ‘ गुरुजी ने कहा, ‘ईश्वर को हरदम याद करनेवाला और सादा व सात्त्विक जीवन जीने वाला व्यक्ति सहज ही अपना कल्याण …
Read More »साधु के लक्षण !!
एक दिन कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर में कुछ साधु संन्यासी स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पास सत्संग के लिए पहुँचे। एक सद्गृहस्थ स्वामीजी के सान्निध्य में रहकर पिछले काफी समय से साधना कर रहा था । स्वामीजी उसकी सादगी, निश्छलता और भक्ति भावना से बेहद प्रभावित थे | किसी साधु ने अचानक स्वामीजी से प्रश्न किया, ‘महाराज, सच्चा साधु कौन है? …
Read More »संन्यासी की क्षमा याचना !!
स्वामी विवेकानंद नए-नए संन्यासी बने थे। उस समय तक उन्होंने प्राणिमात्र में समान भाव से ईश्वर के दर्शन के संदेश का गंभीरता से अध्ययन नहीं किया था। स्वामीजी युवावस्था में काफी समय तक ग्रामीण अंचलों का भ्रमण करने में लगे रहे। वे गाँवों की स्थिति का अध्ययन करने तथा लोगों को सदाचारी बनने और दुर्व्यसनों से दूर रहने का उपदेश …
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