जिन भगवान शंकर के ऊपर की ओर गजमुक्ता के समान किंचित श्वेत – पीत वर्ण, पूर्व की ओर सुवर्ण के समान पीतवर्ण, दक्षिण की ओर सजल मेघ के समान सघन नीलवर्ण, पश्चिम की और स्फटिक के समान शुब्र उज्जवल वर्ण तथा उत्तर की ओर जपापुष्प या प्रवाल के समान रक्तवर्ण के पांच मुख हैं । जिनके शरीर की प्रभा करोड़ों …
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भक्त अर्जुन और श्रीकृष्ण
एक बार कैलाश के शिखर पर श्री श्री गौरीशंकर भगवद्भक्तों के विषय में कुछ वार्तालाप कर रहे थे । उसी प्रसंग में जगज्जननी श्री पार्वती जी ने आशुतोष श्रीभोलेबाबा से निवेदन किया कि भगवान ! जिन भक्तों की आप इतनी महिमा वर्णन करते हैं उनमें से किसा के दर्शन कराने की कृपा कीजिए । आपके श्रीमुख से भक्तों की महिमा …
Read More »आल्हा ऊदल की कथा
ऋषियों ने पूछा – सूतजी महाराज ! आपने महाराज विक्रमादित्य के इतिहास का वर्णन किया । द्वापरयुग के समान उनका शासन धर्म एवं न्यायपूर्ण था और लंबे समय तक इस पृथ्वीपर रहा । महाभाग ! उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अनेक लीलाएं की थीं । आप उन लीलाओं का हमलोगों से वर्णन कीजिए, क्योंकि आप सर्वज्ञ हैं । ‘भगवान नर …
Read More »शिव और सती
सिव सम को रघुपति ब्रतधारी । बिनु अघ तजी सती असि नारी ।। भगवान शिव और माता सती देवी की असीम महिमा बड़े ही सुंदर ढंग से प्रतिपादित की है । भगवान शिव के लिए है क्योंकि संसार में सब धर्मों का सार, सब तत्त्वों का निचोड़ भगवत्प्रेम ही निश्चय किया गया है । भगवान परब्रह्म में दृढ़ निष्ठा …
Read More »कैसे करें महाशिवरात्री की पूजा
यह व्रत फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को किया जाता है । इसको प्रतिवर्ष करने से यह ‘नित्य’ और किसी कामनापूर्वक करने से ‘काम्य’ होता है । प्रतिपदादि तिथियों के अग्नि आदि अधिपति होते हैं । जिस तिथि का जो स्वामी हो उसका उस तिथि में अर्चन करना अतिशय उत्तम होता है । चतुर्दशी के स्वामी शिव हैं (अथवा शिव की तिथि …
Read More »क्यों मनाते हैं महाशिवरात्रि ?
इस व्रत की दो कथाएं है । एक का सारांश यह है कि एक बार एक धनवान मनुष्य कुसंगवश शिवरात्रि के दिन पूजन करती हुई किसी स्त्री का आभूषण चुरा लेने के अपराध में मार डाला गया, किंतु चोरी की ताक में वह आठ प्रहर भूखा – प्यासा और जागता रहा था, इस कारण स्वत: व्रत हो जाने से …
Read More »द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अर्चा विग्रह – 4) श्री ओंकारेश्वर या ममलेश्वर
भगवान शिव का यह परम पवित्र विग्रह मालवा प्रांत में नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है । यहीं मांधाता पर्वत के ऊपर देवाधि देव शिव ओंकारेश्वर रूप में विराजमान हैं । शिवपुराण में श्रीओंकारेश्वर तथा श्रीअमलेश्वर के दर्शन का अत्यंत माहात्म्य वर्णित है । प्रसिद्ध सूर्यवंशीय राजा मांधाता ने, जिनके पुत्र अबरीष और मुचुकुंद दोनों प्रसिद्ध भगवद्भक्त हो गये …
Read More »भगवान विष्णु का स्वप्न
एक बार भगवान नारायण अपने वैकुंठलोक में सोये हुए थे। स्वप्न में वे क्या देखते हैं कि करोड़ों चंद्रमाओं की कांतिवाले, त्रिशूल-डमरूधारी, स्वर्णाभरण-भूषित, सुरेंद्र वंदित, अणिमादि सिद्धिसेवित त्रिलोचन भगवान शिव प्रेम और आनंदातिरेक से उन्मत्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे हैं। उन्हें देखकर भगवान विष्णु हर्ष-गद्गद हो सहसा शय्या पर उठकर बैठा गए और कुछ देर तक ध्यानस्थ बैठे …
Read More »पितृभक्त बालक पिप्पलाद
वृत्रासुर ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। इन्द्र देवताओं के साथ स्वर्ग छोड़कर भाग गये थे। देवताओं के कोई भी अस्त्र-शस्त्र वृत्रासुर को मार नहीं सकते थे। अन्त में इन्द्र ने तपस्या तथा प्रार्थना करके भगवान् को प्रसन्न किया। भगवान् ने बताया कि महर्षि दधीचि की हड्डियों से विश्वकर्मा वज्र बनावे तो उससे वृत्रासुर मर सकता है। महर्षि दधीचि …
Read More »परमभक्त हनुमान्
हनुमान् जी महाराज भगवान् के परम भक्त थे। उनमें तीन बात विशेष थी- १- भगवान् के चरणों में रहते थे। भगवान् को छोड़कर एक क्षण भी अलग नहीं होना चाहते थे। जब भगवान् की आज्ञा होती थी, तभी भगवान् की आज्ञा पालन के लिये चरणों से अलग होते थे। २- जब भगवान् की आज्ञा हो गयी तो साथ में रहने …
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