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Tag Archives: shri

लोकसंग्रह और भगवान श्रीकृष्ण

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लोकसंग्रह की पद्धति ठीक तरह से समझ में आ जाएं, इसके लिए एक नियम है, और वह यह है कि जिस प्रकार अज्ञानी पुरुष मन में धन और कीर्ति की अभिलाषा रखकर, स्वार्थ के लिए, पूरी सावधानी के साथ कर्म करता है उसी प्रकार ज्ञानी पुरुष को भी उतनी ही सावधानी के साथ, पर निष्काम बुद्धि से कर्म करना चाहिए …

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लोकनायक श्रीकृष्ण

Aisi Lagi Lagan , Merya Ho Gayi Magan

कहा जाता है कि जिसे किसी का आसरा नहीं उसे महादेव के यहां आश्रय मिलता है । अंधे, पंगु, अपंग और पागल ही नहीं बल्कि भूत – प्रेत, विषधर सर्प वगैरह भी महदेव के पास आश्रय पा सकते हैं । विष्णु की कीर्ति इस रूप में नहीं गायी गयी, फिर भी वह दीनानाथ हैं । श्रीकृष्णावतार तो दीन दुखी और …

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भगवान की एक लीला

chalo man shri vrindavan dham bhajan

पुराणों में भगवान की लीलाओं का वर्णन है । परंतु आजकल इतिहास पुराण ग्रंथों पर से लोगों की श्रद्धा घटती जाती है । उनका पठन – पाठन, उनकी कथा धीरे – धीरे लोप हो रही है । यहीं कारण है कि जनसाधारण में से स्वधर्म का त्रान नष्ट हो रहा है और धार्मिक प्रवृत्ति भी मंद हो गयी है । …

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सुंदरकांड का धार्मिक महत्त्व क्यों ?

vande santan hanumantan

सुंदर कांड वास्तव में हनुमान जी का कांड है । हनुमान जी का एक नाम सुंदर भी है । सुंदर कांड के लिए कहा गया है – सुंदरे सुंदरे राम: सुंदरे सुंदरीकथा । सुंदरे सुंदरे सीता सुंदरे किम् न सुंदरम् ।। सुंदर कांड में मुख्य मूर्ति श्री हनुमान जी की ही रखी जानी चाहिए । इतना अवश्य ध्यान में रखना …

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एकमात्र श्रीकृष्ण ही धन्य एवं श्रेष्ठ हैं

एकमात्र श्रीकृष्ण ही धन्य एवं श्रेष्ठ हैं

एक कथा आती है कि देवर्षि नारद ने एक बार गंगा – तट पर भ्रमण करते हुए एक ऐसे कछुए को देखा, जिसका शरीर चार कोस में फैला हुआ था । नारद जी को उसे देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ, वह उस कछुए से बोले, हे कूर्मराज ! तू धन्य एवं श्रेष्ठ है, जो इतने विशाल शरीर को धारण किए हुए …

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गरुड, सुदर्शनचक्र और श्रीकृष्ण की रानियों का गर्व – भंग

HANUMAN JI

एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने गरुड को यक्षराज कुबेर के सरोवर से सौगंधित कमल लाने का आदेश दिया । गरुड को यह अहंकार था कि मेरे समान बलवान तथा तीव्रगामी प्राणी इस त्रिलोकी में दूसरा कोई नहीं है । वे अपने पंखों से हवा को चीरते हुए तथा दिशाओं को प्रतिध्वनित करते हुए गंध मादन पर्वत पर पहुंचे और पुष्पों …

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भक्त अर्जुन और श्रीकृष्ण

Abhimanu Mahabharat Mahakavye

एक बार कैलाश के शिखर पर श्री श्री गौरीशंकर भगवद्भक्तों के विषय में कुछ वार्तालाप कर रहे थे । उसी प्रसंग में जगज्जननी श्री पार्वती जी ने आशुतोष श्रीभोलेबाबा से निवेदन किया कि भगवान ! जिन भक्तों की आप इतनी महिमा वर्णन करते हैं उनमें से किसा के दर्शन कराने की कृपा कीजिए । आपके श्रीमुख से भक्तों की महिमा …

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गणेश जी पर शनि की दृष्टि

Jai Ganesh Bhajan

एक बार कैलाश पर्वत पर, महायोगी सूर्यपुत्र शनैश्चर शंकरनंदन गणेश को देखने के लिए आये । उनका मुख अत्यंत नम्र था, आंखें कुछ मुंदी हुई थीं और मन एकमात्र श्रीकृष्ण में लगा हुआ था, अत: वे बाहर – भीतर श्रीकृष्ण का स्मरण कर रहे थे । वे तप: फल को खाने वाले, तेजस्वी, धधकती हुई अग्नि की शिखा के समान …

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श्रीराधातत्त्व

khud to baahar hee khade rahe

श्रीराधा के संबंध में आलोचना करते समय सबसे पहले वैष्णवों के राधातत्त्व के अनुसार ही आलोचना करनी पड़ती है । वायुपुराण आदि में राधा की जैसी आलोचना है, इस लेख में हम उसका अनुसरण न कर वैष्णवोचित भाव से ही कुछ चर्चा करते हैं । राधातत्त्व के इतिहास के संबंध में किसी दूसरे निबंध में आलोचना की जा सकती है …

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द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अर्चा विग्रह – 2) श्री मल्लिकार्जुन

Dvadash Jyotirling

दक्षिण भारत में तमिलनाडू में पाताल गंगा कृष्णा नदी के तट पर वृपवित्र श्रीशैल पर्वत है, जिसे दक्षिण का कैलास कहा जाता है । श्रीशैल पर्वत के शिखर दर्शन मात्र से भी सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और आवागमन के चक्र से मुक्ति मिल जाती है । इसी श्रीशैल पर भगवान मल्लिकार्जुन का ज्योतिर्मय लिंग स्थित है । मंदिर …

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