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Tag Archives: Vrindavan

सानू तेरे ही मिलन दा चा

sanu-tere-naal

आ सजाना तेरे रही बैठे काले नैना दे दीवे नित नित दर्द बिछोड़ा तेरा मेरा खून जिगर दा पीवे तेरे दीद दा चाह नजराना छुड़ा एक पल आराम न कीवी,

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भक्त की भावना, पहुंचा सकती है परमधाम

bhagwan

एक गांव में एक पंडित जी रहते थे। किसी गांव में जाकर एक बार वो कथा सुना रहे थे। प्रसंग में श्रीकृष्ण जी के ऐश्वर्य जीवन और उनके विलक्षण आभूषणों का वर्णन का पाठ चल रहा था। वहां कई श्रोता पंडित जी की कथा सुन रहे थे। उनमें से एक डाकू भी था। जब पंडित जी घर जाने लगे तो …

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विवेकानंद कहते थे – बंदरों की तरह होती हैं कठिनाइयां

monkeys

घटना तब की है जब स्वामी विवेकानंद वृंदावन में थे। सड़क पर चल रहे थे। कुछ लाल मुंह के बंदर उनके पीछे पड़ गए। स्वामीजी भागने लगे। बंदर भी उन पर तेजी से आक्रमण करने लगे। तभी एक समझदार व्यक्ति ने कहा, भागो मत। इनके सामने डट कर खड़े रह जाओ। मुकाबला करो। स्वामीजी ने वैसा ही किया और बंदर …

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भक्त यदि सच्चा हो तो उसके बुलाने पर आते हैं कृष्ण

He lent five hundred rupees to Seth for the marriage of his daughter.

एक बार एक गरीब किसान था। उसने अपनी बेटी की शादी के लिए सेठ से पांच सौ रुपए उधार लिए। गरीब किसान ने अपनी बेटी की शादी के बाद धीरे-धीरे सब पैसा ब्याज समेत चुकता कर दिया। लेकिन उस सेठ के मन में पाप आ गया। उसने सोचा ये किसान अनपढ़ है। इसे लूटा जाए। गरीब किसान ने कहा की …

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Publications of Swami Akhandanand ji

Life of akhandanand

  Swami Akhandanand Ji (1864-1937) twentieth century; a well-known exponent of Shrimad Bhagvata and a scholar of Vedanta and Bhakti Shastras. He was known as “Maharajshri” to his followers and friends. Maharajshri mentored many on the spiritual path, including the past and present generations of Grihasthas, Sanyasi Mahatmas, and Shankaracharyas. Maharajshri’s discourses were loved by all – Mahatmas and Scholars …

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Achievements of Swami Akhandanand ji

story of akhandanand

Swami Akhandanand Ji (1864-1937) In his youth, Akhandanand went to Jhusii, to meet Brahmachari Prabhudatta, a saint. There, he met Udiya Baba, and had discussed Vedanta. He was captivated by Udiya Baba’s conviction in the principle of non-dual reality. He received initiation for Sanyas (monkhood) from the Shankaracharya of Jyotishpeethadhishver, Brahmanand Saraswati in February 1942, following which his name was …

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Life of Swami Akhandanand ji

Life of akhandanand

  Swami Akhandanand Ji (1864-1937) He was born on Friday, 25 July 1911 in Pushya Nakshatra (Shravana Amavasya v.s. 1968 per Vikram Calendar) in the village of Maharai in the district of Varanasi. His Saryupareen Brahmin family named him Shantanu Behari, after the god of the same name.[citation needed] He was aged 10 when his grandfather made him read the …

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Swami Akhandanand ji

Life of akhandanand

  Swami Akhandanand Ji (1864-1937) He was born on Friday, 25 July 1911 in Pushya Nakshatra (Shravana Amavasya v.s. 1968 per Vikram Calendar) in the village of Maharai in the district of Varanasi. His Saryupareen Brahmin family named him Shantanu Behari, after the god of the same name.[citation needed] He was aged 10 when his grandfather made him read the …

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वेदांतमत और वैष्णवमत

Suni Kanha Teri Bansuri

सगुण ब्रह्म ईश्वर हैं, वे सर्वशक्तिमान हैं, आत्मा में जो एक अप्रतिहत शक्ति सहज ही रहती है, वह ईश्वर की कला है । वहीं अप्रतिहत शक्ति जब एक से अधिक होती है तब उसे अंश कहते हैं । जिनमें संपूर्ण अप्रतिहत शक्ति होती हैं, उन्हें पूर्ण कहते हैं । जीव में साधारणत: कोई भी शक्ति अप्रतिहत नहीं है । योगबल …

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भगवान श्रीकृष्ण और उनका दिव्य उपदेश

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कांतिदी के सुरम्य तट पर संयुक्त प्रांत की मथुरा नगरी में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था । उन्होंने शैशवकाल में ही अनेक बार अपनी अतिमानुष एवं अलौकिक शक्तियों को दिखलाकर सबको चकित कर दिया था । अनेक भयानक पक्षियों, वन्य पशुओं और यमुना जी में रहने वाले कालिय – सर्प को मारकर लोगों को निर्भय किया था । उनके …

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