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तीन ज्ञानवर्धक प्रेरक प्रसंग

Teen Gyan Vardhak Parsang Story

प्रेरक प्रसंग १ –  स्वर्ग- नरक

शास्त्रों में निपुण, प्रसिद्ध ज्ञानी एवं प्रख्यात संत श्री देवाचार्य के शिष्य का नाम महेन्द्रनाथ था। एक शाम महेन्द्रनाथ अपने साथियों के साथ उद्यान में टहल रहे थे। और आपस में वे किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। चर्चा का विषय था- स्वर्ग-नरक। किसी एक साथी ने महेन्द्रनाथ से पूछा- “क्यों मित्र! क्या मैं स्वर्ग जाऊंगा?”

महेन्द्रनाथ ने उत्तर देते हुए कहा- “जब मैं जायेगा, तभी आप स्वर्ग जाओगे।” उसके मित्र ने सोचा कि महेन्द्रनाथ को अभिमान हो गया है और सारे मित्रों ने मिलकर महेन्द्रनाथ की शिकायत अपने गुरु श्री देवाचार्य से कर दी।

गुरुदेव को पता था कि उनका शिष्य महेन्द्रनाथ न केवल निरहंकारी है बल्कि अल्प शब्दों में गंभीर ज्ञान की बातें बोलने वाला है। उन्होंने महेन्द्रनाथ को बुलाकर इस घटना के बारे में पूछा, और उसने अपना सिर हिलाकर इस बात की पुष्टि की। अन्य शिष्यों में इस घटना को देखने के बाद कानाफूसी शुरू हो गयी। श्री देवाचार्य ने मुस्कुराते हुए दोबारा वही प्रश्न पूछा- “अच्छा ये बताओ महेन्द्रनाथ! क्या तुम स्वर्ग जाओगे?” महेन्द्रनाथ ने कहा- “गुरुदेव! जब मैं जायेगा, तभी तो मैं स्वर्ग जा पाउँगा। “

श्री देवाचार्य शिष्यों को समझाते हुए बोले- “शिष्यों, इनके कहने का मतलब है जब “मैं” जाएगा यानि जब अहंकार जायेगा, तभी तो हम स्वर्ग के अधिकारी बन पाएंगे। जब-जब आपके मन में ये बातें आएंगी कि मैंने ऐसा किया, मैंने इतने पुण्य किये, मैंने सब किया। उस स्थिति में स्वर्ग के बारे में सोचना भी गलत है।

प्रेरक प्रसंग २ –  माँ की सीख

ईश्वरचंद विद्यासागर के बचपन की यह एक सच्ची घटना है। एक सवेरे उनके घर के द्वार पर एक भिखारी आया। उसको हाथ फैलाये देख उनके मन में करुणा उमड़ी। वे तुरंत घर के अंदर गए और उन्होंने अपनी माँ से कहा कि वे उस भिखारी को कुछ दे दें। माँ के पास उस समय कुछ भी नहीं था सिवाय उनके कंगन के। उन्होंने अपना कंगन उतारकर ईश्वरचंद विद्यासागर के हाथ में रख दिया और कहा-” जिस दिन तुम बड़े हो जाओगे, उस दिन मेरे लिए दूसरा बनवा देना अभी इसे बेचकर जरूरतमंदों की सहायता कर दो।”

बड़े होने पर ईश्वरचंद विद्यासागर ने अपनी पहली कमाई से अपनी माँ के लिए सोने के कंगन बनवाकर ले गए और उन्होंने माँ से कहा- माँ! आज मैंने बचपन का तुम्हारा कर्ज उतार दिया । उनकी माँ ने कहा- “बेटे! मेरा कर्ज तो उस दिन उतर पायेगा, जिस दिन किसी और जरूरतमंद के लिए मुझे ये कंगन दोबारा नहीं उतारने होंगे। “

माँ की सीख ईश्वरचंद विद्यासागर के दिल को छू गयीं और उन्होंने प्रण किया कि वे अपना जीवन गरीब-दुखियों की सेवा करने और उनके कष्ट हरने में व्यतीत करेंगे और उन्होंने अपना सारा जीवन ऐसा ही किया।

महापुरूषों के जीवन कभी भी एक दिन में तैयार नहीं होते। अपना व्यक्तित्व गढ़ने के लिए वे कई कष्ट और कठिनाइयों के दौर से गुजरते हैं और हर महापुरूष का जीवन कहीं न कहीं अपनी माँ की शिक्षाओं से बहुत प्रभावित रहता है।

प्रेरक प्रसंग ३ – बरगद का पेड़

किसी गांव में बरगद का एक पेड़ बहुत वर्षों से खड़ा था। गांव के सभी लोग उसकी छाया में बैठते थे, गांव की महिलाएं त्यौहारों पर उस वृक्ष की पूजा किया करती थीं। ऐसे ही समय बीतता गया। और कई वर्षों बाद वृक्ष सूखने लगा। उसकी शाखाएं टूटकर गिरने लगीं और उसकी जड़ें भी अब कमजोर हो चुकी थीं। गांववालों ने विचार किया कि अब इस पेड़ को काट दिया जाये और इसकी लकड़ियों से गृहविहीन लोगों के लिए झोपड़ियों का निर्माण किया जाये।

गांववालों को आरी-कुल्हाड़ी लाते देख, बरगद के पास खड़ा एक वृक्ष बोला- “दादा! आपको इन लोगों की प्रवृत्ति पर जरा भी क्रोध नहीं आता, ये कैसे स्वार्थी लोग हैं, जब इन्हें आपकी आवश्यकता थी तब ये आपकी पूजा किया करते थे, लेकिन आज आपको टूटते हुए देखकर काटने चले हैं।”

बूढ़े बरगद ने जवाब दिया- “नहीं बेटे! मैं तो यह सोचकर बहुत प्रसन्न हूँ कि मरने के बाद भी मैं आज किसी के काम आ सकूंगा। ” असल बात यह है कि परोपकारी व्यक्ति सदा दूसरों के प्रति करुणा का भाव रखते हैं और उनकी ख़ुशी और उनके सुख में अपना सुख समझते हैं।

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