बहुत पुरानी बात है कि चीन में एक बौद्ध भिक्षुणी रहती थीं। उनके पास गौतम बुद्ध की एक सोने की मूर्ति थी जिसकी वह दिन-रात पूजा करती थीं। जब चीन में महाबुद्ध उत्सव की शुरूआत हुई तो वहां कई लोग आए।
वहां भिक्षुणी भी बुद्ध की मूर्ति लेकर पहुंची। बौद्ध भिक्षुणी चाहती थी, कि वह जो साम्रगी अपने साथ लाई हैं। उससे सिर्फ उसकी बुद्ध प्रतिमा की ही पूजा हो। उसने सोचा कि यदि मैं अपना धूप-दीप सबके सामने जलाउंगी तो अन्य प्रतिमाएं भी उसकी सुगंध लूट लेंगी।
ऐसी परिस्थिति से बचने के लिए उस भिक्षुणी ने बांस की एक पोंगली को स्वर्ण प्रतिमा के साथ सटाकर अपने धूप का धुआं रोक दिया। थोड़ी देर में धुएं के कारण स्वर्ण निर्मित प्रतिमा का मुंह काला हो गया। मुखाकृति काली होने के कारण दर्शकों को बौद्ध प्रतिमा कुरुप लगने लगी।
ऐसे में उस प्रतिमा को लाने वाली और उसे पूजने वाली भिक्षुणी की हर जगह आलोचना होने लगी। ऐसी स्थिति में वह खिन्न हो गई। भिक्षुणी ने आयोजक से शिकायत की। तब उन्होंने जांच-पड़ताल की।
और कहा, संकीर्णता एवं प्रदर्शन वृति के कारण उपासना प्रभावहीन और आडंबर मात्र रह जाती है। जीवन के फैलाव ही प्रगति का पहला कदम है। जो लोग इस तथ्य को नहीं समझते वे निंदा एवं आलोचना के पात्र बन जाते हैं।
संक्षेप में
यानी धर्म का अर्थ है सदाचरण। लेकिन कई बार वह प्रदर्शन की चीज बनकर रह जाता है। अतः मनुष्य को अपने जीवन में इससे बचना चाहिए।
Hindi to English
It is very old that a Buddhist monk lived in China. He had a gold statue of Gautam Buddha which he worshiped day and night. When the start of the Mahabud celebration in China, many people came there
There the monk came along with the Buddha statue. The Buddhist monk wanted that the material that he brought with him Only his Buddha statue is worshiped. He thought that if I burn my sun-lamp in front of everyone, then other idols will also loot his fragrance.
In order to avoid such a situation, that monk stopped a pongali of a bamboo with a golden statue and prevented the smoke from its sun. Due to smoke in a while, the golden-built statue has turned black. Due to the appearance of black face, the Buddha statue began to look ugly.
In such a situation, the devotee who brought that statue and worshiped him started criticizing everywhere. In such a situation, he became depressed. The monk complained to the organizer. Then they investigated
And said, because of narrow-mindedness and performance, the worship remains unprincipled and bitter. Spread of life is the first step in progress. Those who do not understand this fact become eligible for condemnation and criticism.
in short
That is, religion means righteousness. But many times it remains a performance thing. Therefore man should avoid this in his life.