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घण्टी काम आयेगी

फेसबुक का सैर करूँ और चुप रहूँ, ऐसी मेरी आदत नहीं! फेसबुक ही नहीं जिंदगी के हर अवसर पर हर मिलने जुलने वालों से बात करने का प्रयास करता हूँ!ऐसे मे कभी कभार ऐसा हो जाता है कि क्या कहूँ कुछ समझ मे नहीं आता! जैसा कि अभी हुआ है!

फेसबुक खोल बैठा हूँ, लिखना चाहता हूँ, मगर क्या लिखूँ समझ मे नहीं आ रहा! इस समय छोटे पुत्र के पास आया हूँ! रेल टिकट न मिलने के कारण बस से सफर किया हूँ!जहाँ तक याद है आखिरी बार बस से दिल्ली 2010 मे आया था’ वह भी परिचालक की नौकरी करते हुए! आदमी स्वस्थ हो तो दिल्ली तक की बस यात्रा बुरी नही |

इस बस के सफर की लिखने लायक एक ही बात है! वह यह कि रास्ते मे अपनी एक पसंदीदा डिश बहुत दिनों के बाद पेट भर कर खाया! प्याज की पकौड़ी और रोटी! अब दोनों एक साथ नहीं मिल पाती! एक मिलती तो दूसरी नहीं!

ऐसी बातों से फेसबुक की पोस्ट पूरी नहीं होती! मेरे पास मेरे पोते सम्मोहन जी जो अभी 02 माह के है लेटे थे! यह महोदय रोते और सोते ज्यादा हैं! बहू-बेटे ने बताया कि घंटी की आवाज सुनकर चुप हो जाते हैं! थोड़ी देर पहले यह रो रहे थे और मैं घंटी बजाकर इन्हें चुप कराने की नाकाम कोशिश कर रहा था! इस समय सम्मोहन जी अपनी माताश्री के पास है, और मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ!

सोच रहा हूँ आज इस घंटी पर ही कुछ लिखूँ! घंटी से तो आप सभी परिचित हैं! छोटी का घंटी, बड़ी को घंटा-घड़ियाल कहते हैं! हर धर्म में इसका धार्मिक महत्व है! हम हिन्दुओं के घर और मंदिर तो इसके बिन नहीं रहते!

हम हिंदुओं के तो जन्म मरण से लगायत दाहसंस्कार तक इसका साथ मिलेगा | गांव मे जब घंटा(घड़ियाल) की ध्वनि जब रुक रुक कर आने लगती है तो सहज ही यह अनुमान कर लेते हैं कि किसी का स्वर्ग वास हुआ है|

साथियों कालेज में शिक्षा ग्रहण के समय की घंटी की याद आ रही है! तीसरी घंटी के बाद बलरामपुर के एमपीपी इण्टर कालेज से ना जाने कितनी बार कदम बगल में स्थित राजे टाकिज की तरफ बढ़ गये याद नहीं! घंटी छोड़कर ही इज्जत, चाचा-भतीजा, हिंदुस्तान की कसम, कर्तब्य, नागिन, चोर सिपाही, बलम परदेसिया आदि अनेक फिल्में देखी थी! जिसका परिणाम लगभग 23 साल बस की सीट पर बिना बिस्तर के सोते और होटलों की खट्टी बासी दालें सब्जी खाते बीता!और आज तक की जिन्दगी घण्टा हिलाते बीत गयी!

इस घण्टी पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है! साइकिल की घण्टी बजाने से मोबाइल की घण्टी बजते सुनाई देने के मध्य! मगर उन बातों की चर्चा बेमानी है!घण्टी पर एक सार्थक कहानी सुनाकर पोस्ट साझा करता हूँ!

एक परिवार मे पति पत्नी अपने 7 साल के बेटे के साथ रहते थे! पति महोदय की माताजी भी जीवित थीं और साथ में रहती थीं! उम्र ज्यादा हो जाने के कारण चलने फिरने से लाचार हो गयी थीं! हमेशा कुछ न कुछ बोलती रहती थीं! इनके बोलने से परेशान होकर बहू बेटे ने इन्हें अलग कमरे में जहाँ से आवाज कम आये रख छोड़ा था! एक घण्टी दे रखा था! भूख प्यास लगने पर इसी घण्टी को उन्हें बजाना होता था! बेचारी ना जाने किस पाप की सजा भोग रहीं थी!

पुण्य का हो या पाप का खजाना जब उसमें कुछ जोडा न जाये और खर्च किया जाये तो उसे खत्म होना ही है! एक दिन बुढिया के संचित पाप खत्म हुए और ईश्वर ने उसे अपने धाम को बुला लिया! जैसा कि होता है परिवार मे रोने धोने का नाटक हुआ बुढिया के शव को फूलों फलों से सजाकर बेटा घाट की तरफ चला! बहू अपने आंसू पोछ बुढिया के कमरे की साफ सफाई मे लगीं! बुढिया के इस्तेमाल शुदा सारी बस्तु को एक बोरे मे रख बाहर फेकवा दिया!

रात को बेटा बहू उस कमरे मे गये! साथ मे उनका बेटा भी था! बहू बोली बहुत गंदा हो गया था कमरा! सांस लेने मे मुश्किल हो रही थी! बहुत मुश्किल से सारा सामान बोरी मे रख बाहर फेकवायी हूँ! मगर एक बात ताज्जुब की रही, बहुत खोजा मगर घण्टी नहीं मिली! ना जाने जमीन खा गयी या आसमान निगल गया!

यह सुनते ही उनका बेटा बोला मां मैंने वह घण्टी छुपाकर रख दी है! जब तुम दोनों दादी जैसे हो जाओगे तब यह घण्टी काम आयेगी!

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